कल
सुबह पटना क्षेत्र में वोटिंग का दिन था। मैं नहा-धोकर वोटिंग करने निकला था पर, उत्सुकतापूर्वक अपने आसपास के बूथों के
बाहर जमें लोगों की गतिविधियाँ देखने में लग गया। एक तरफ से मतदाता आते और लगभग 200-300 मी० की दुरी से ही उन्हें बरगलाने की
कोशिश की जाती। केंद्र की सामने वाली गली में दिन-भर खाने-पीने का इंतज़ाम था, पीने का मेरा मतलब पानी के साथ-साथ
शराब भी। गली-गली में नाश्ते से भरे डब्बे घरों तक पहुँचाये जा रहे थे। बीस-पच्चीस
लोगों का हुजूम सुबह-सुबह से ही अपनी जाति वाले मतदाताओं के घर पर जाकर अपनी ही
जाति के उम्मीदवार को वोट देने की सलाह दे रहे थे। और हाँ न मानने पर पैसे का भी
पूरा बंदोबस्त था।
ये
सब देखते हुए मैं वहां से कुछ दूर स्थित अपने बूथ पर चला। मैंने आजतक ये सारी
चीजें किताब और टीवी-रेडियो में ही सुनी थी, लेकिन
कल मैंने अपनी आँखों से देखी। मैं सकपका
गया, मुझे चुनाव आयोग की मासूमियत और उसके
ओवर कॉन्फिडेंस पर तरस आ रहा था। मेरा मन अपने अंतर्द्वंदों से लड़ता हुआ बार-बार
सवाल करने लगा की क्या बिहार की जनता ऐसे लुच्चे-लफंगों के सरदार को चुनकर वाकई
अपना भला कर लेगी या लोकतंत्र का भला कर देगी? या सबकुछ वैसा ही रहने वाला है जैसा
पहले था? खुद को राजनीति का तीस मार खां समझने वाले बहुत सारे लोग ट्रेनों में
या चाय के दुकानों पर शोर के सहारे अक्सर इन सारे पहलुओं को भुला देने का प्रयास
करते हैं। सभी की कमियां निकालते हैं, लेकिन
कल मैं उन्ही जैसे लोगों को भी उसी आधार पर अपना वोट कास्ट करने को कहते देखा, जिससे न तो कभी भारत की इस गरीब जनता
का भला हो सकता है और न ही लोकतंत्र का।
कुल
मिलाकर, इस चुनाव में पैसे पानी की तरह बहाए
गए। लेकिन इस पानी से कुछ निहायत गरीबों की क्षण भर की प्यास बुझती देखी तो दिन तो
पलभर ही सही सुकून तो आया। नाश्ते के डब्बे को देखकर एक दिन ही सही उनके बच्चों की
चहचहाट से उनका घर सराबोर तो हुआ! लेकिन
बिहार की जनता का भारत की राजनीति में जितना कद है उस अनुसार वो नाममात्र भी अपने
दायित्व का निर्वहन नहीं कर पायी। इसलिए
कहा जा सकता है की बिहार की जनता अपने लिए कोई अच्छा खड़ा करने की दृढ़ता ही नहीं
दिखा पायी, गुंडों को टिकट दिए गए, कारोबारी पैसे के दम पर टिकट पा गए और
बड़े नेता अपने भोन्दु से लाडले को चुनाव लड़ा गए।
बेशक, बिहार की जनता जिसे चुने, वह अच्छा नहीं चुन पाएगी। बिहार में
जाति का गठबंधन लड़ा भी, उसे वोट पड़ा भी और जाति का गठबंधन
जीतेगा भी.… (और... स्वाभाविक है, मैं भी अच्छा नहीं चुन पाया…..)
लेखक:-
अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर 'कहने का मन करता है'(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं....
मूर्खिस्तान
ReplyDeleteमानवता की परिपाटी
को गये जमाने बीत
हिंसा और आतंकवाद को
मिली है व्यापक जीत....I
🔫
मिली है व्यापक जीत
बात यह चिंतित करती
बहु बमबारी प्रतियोगिता
मीडिया प्रस्तुत करती....I
👀
बुढबक काका खैनी दाबे
उगल रहे हैं ज्ञान
अभिनेता औ लेखक दीर्घा
फिटिक रहे सम्मान....I
🏆
फिटिक रहे सम्मान
है मेटर सहिस्नुता का
या है मसला दरबारी
बे-घर होने का.....I
👽
मूर्खिस्तानी प्रेत आत्मा
है भटक रही चहुओर
खुद की रक्षा करने का
स्टेप करिए इनस्योर;
बाद मे मेरे पास शिकायत
मत ले आना.......I
प्रभू आपने नही बताया
मत चिल्लाना......II
😜😜😜
सबल मिश्र-