भगवा रंग तो त्याग और
बलिदान का प्रतीक है भला इससे किसी को क्या परेशानी होती होगी? ऐसे सवाल मन में जरूर आते
हैं जब हम खुद को राजनीतिक या सांप्रदायिक नजरिये से कुछ पल के लिए अलग कर लेते
हैं। इस देश में रंग, धर्म, जाति और मजहब की विवेचना
करने वाले लोगों की कमी नहीं है। सभी की इन मुद्दों के प्रति अपनी अलग-अलग राय
होती है पर, कुछ
लोगों के विचार बड़े ही अटपटे और मूर्खतापूर्ण होते हैं। भारत की विविधता हमेशा ही
सारे संसार के लिए कौतहूल का विषय रही है, आखिर इतने सारे धर्म-मजहब को मानने वाले लोग एक साथ एक देश में कैसे
रह लेते हैं जिनके धार्मिक कार्यकलाप एक -दूसरे से तनिक भी नहीं मिलते! लेकिन भारत की
ये छवि धीरे-धीरे मैली होती चली जा रही है। इसका जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि वही
हैं जिनके फैसले से ये देश चलता है, जिनके पास इस छवि को बरकरार रखने की जिम्मेदारी है, यानी नेतातंत्र …
कोई आदमी मजबूर नहीं होता, उसे मजबूर बनाया जाता है। मुसलमानों को उकसाया जाता है की देखो ये RSS है, येलोग तुम्हे यहाँ नहीं
रहने देंगे, तुम्हारे
मजहब का सफाया ही इनलोगों का एकमात्र लक्ष्य है! पर हकीकत में ऐसा कुछ है ही नहीं।
दुनिया में बहुत से धर्म हैं लेकिन उदारता में हिन्दुओं के सामने सब बौने हैं।
भारत के हिन्दू ये जानते हुए भी की पाकिस्तान में हिन्दुओं पर कैसे-कैसे अत्याचार
किये जाते हैं, हिन्दू
धर्म का मजाक बनाया जाता है, देवताओं
के नग्न तस्वीरें भी बनाई जाती है फिर भी सड़कों नमाज पढ़ने दिया जाता है। फिर भी
खुलेआम लाउडस्पीकर पर ये कहने दिया जाता है की 'अल्लाह के सिवा इस दुनिया में कोई भगवान ही नहीं'। ऐसा क्यों? जबकि
फिल्मों में कुरान जलती दृश्य देखने के बाद सारे मुसलमान हिंसक हो उठते है, सैकड़ों गैर-मुसलमानों की
हत्याएं कर दी जाती है, पैगम्बर
का कार्टून बनाने वालों को सरेआम गोलिओं से भून दिया जाता है, तीर्थयात्रियों से भरी
ट्रैन में आग लगाकर 59 निर्दोषों
का कत्लेआम कर दिया जाता है सिर्फ इसलिए की वो हिन्दू थे। हज़ारों की जान
लेने वाले आतंकवादी को जब फांसी दी जाती है तो कहा जाता है की देश सुलग जाएगा, घाटी रक्तरंजित कर दी
जायेगी। लेकिन, किसके
खून से? वहॉं तो
गैर सिर्फ कश्मीरी पंडित ही हैं। याकूब मेमन, कसाब या अफजल की फाँसी के बाद मोमबती लेकर दुःख जातने सड़कों पर
निकलने वाले तथाकथित देशभक्त असल में देश के अंदर शान्ति आने ही नहीं देना चाहते।
इस्लाम और जिहाद नाम पर क्रूरता की पराकाष्ठा पार करने वाले इन आतंकवादियों की
फाँसी का विरोध करने के बजाय तत्काल फाँसी दिए जाने की मांग करते तो उनकी छवि न
सिर्फ हिन्दुओं के बीच बल्कि समूचे विश्व में बेहतर होती। ऐसे ही गौमांस
खाने का विवाद मुसलमानों का खुद को कट्टरपंथी साबित करने का जड़ है।
भारत ऋषि-मुनियों और महात्माओं की धरती है। जहाँ दुनिया में सबसे
ज्यादा धर्म पैदा हुए और पनपे,
लेकिन इस्लाम का इस देश में कोई जड़ नहीं। उसे तो यहाँ जबरदस्ती लाकर
कबूल कराया गया। धर्म के ही बिसात पर देश में बंटवारा हुआ, देश के टुकड़े कर डाले गए।
ऐसे में किसी धर्म की आस्था से उन्हें खिलवाड़ करने का कोई हक़ नहीं। ये सब इसलिए
नहीं कह रहा हूँ की इस्लाम का जन्म यहाँ नहीं हुआ बल्कि, हिन्दू धर्म का जहाँ गाय को
माता समान माना जाता है, उसकी
पूजा की जाती है उसे काटकर खाने में इन क्रूरों को जरा भी शर्म या दया नहीं आती।
अगर ये हिन्दुओं के लिए गोमांस खाना बंद कर दे तो सारी विवाद की मूल जड़ें ही ख़त्म
हो जायेगी। हिन्दू मुसलमान से हटे-हटे सिर्फ इसलिए रहते हैं की वे गो-मांस खाते
हैं। अधिकतर दंगों के पीछे का सच गो-मांस ही होता है।
कारण जो भी हो लेकिन, अगर उनके ऐसा करने से शांति-सौहार्द का माहौल बनता है तो यह हिन्दू
और मुसलमान दोनों के लिए गर्व का विषय बन जाएगा। काश, ये अलग-अलग कानूनों का बंधन
टूट जाता, मुस्लिम
महिलाओं को शरीयत से आजाद कर दिया जाता, हिन्दू न तो हरे रंग से नफरत करते और न मुसलमान भगवा रंग से। कितना
अच्छा हो जाता हमारा भारत जहाँ न तो भक्ति की आड़ में गाय काटी जाती न ही
लाउडस्पीकर उतारे जाते.... और सारे सेकुलरों की दुकानें हमेशा के लिए बंद हो जाती … काश ऐसा मेरा भारत होता ……
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग
पर “कहने का मन करता है....” (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक
हैं.....
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