हर पीर फ़कीर कोठी में लेकिन राम हमारे तम्बू में| क्या दुनिया के किसी
और धर्मं में ऐसा हो सकता है की उसके आराध्य प्रतिकृति को तम्बू में बांस और
तिरपाल के सहारे टिकाया जाए| या दुनिया के करोड़ों वर्ष पुराने धर्मं के लिए अपने
भगवान् के प्रत्यक्ष जन्मस्थल पर पूजा करने को यूँ 1500 साल पुराने धर्म से इजाजत
लेनी पड़े| जिसके धर्म की नींव ही क्रूरता-धूर्तता की बिसात पर खड़ा हो| नहीं!
मर्यादा पुरुषोतम भगवान् राम की जन्मस्थली अयोध्या आज हमारे राम-लला के लिए
सुरक्षित नहीं है| 100 करोड़ हिन्दुओं का विश्वास तम्बू
में धुल फांक रही है... सरयू नदी की कलकल बहती धारा व अयोध्या की पतली-पतली
गलियां आज भी भगवान राम के प्रत्यक्ष होने का एहसास कराती है|
हम हिन्दू अपने धर्मं पर कितना भी गौरव क्यूँ न करें या
हिन्दू होने का गर्व क्यूँ न माने पर वर्तमान भारत की हकीकत है की हिन्दू आज के
क़ानून, संविधान और उसकी अल्पसंख्यक नीतियों की गुलाम है| हम कितना भी क्यूँ न
फड़फडायें लेकिन धर्म के स्वछन्द आकाश में उड़ नहीं सकते इसलिए की हमारे पैरों में
सेकुलरिज्म की बेड़ियाँ बंधी है और जिसकी आजादी की चाभी उनलोगों के पास है जो कभी
हिन्दू की उड़ान बर्दाश्त नहीं कर सकते| उसे असहाय देखना चाहते हैं, उसके
आचार-विचारों का इस्लामीकरण चाहते हैं या वो चाहते हैं की सदा श्रेष्ठ सनातनी
हिन्दू इस्लाम के झूठे इतिहास से डर जाए, मूल छोड़ दे अन्यथा ऐसा न करना हराम होगा|
कौन हैं ये लोग और ऐसा चाहते क्यूँ हैं की भारतवर्ष अपने वीर सपूतों
पर गर्व न करके वे उन बाबर, अकबर या औरंगजेब पर गर्व करे जिन्होंने भारत की
सभ्यता, संस्कृति या इसके गौरवमयी इतिहास को इस्लामी तलवार के जोर पर लोगों की
आस्था बदल डालने की हर एक कोशिश की पर अफ़सोस की वे वीर हिन्दू भगवाधारियों के साहस
के आगे ऐसा न कर सके| आज के सेक्युलर, बुद्धिजीवी
इस्लाम के किस पुण्यता की बात करते हैं? की कोई गजनी की औलाद भारत आता है और 17
बार मंदिर को लूटता है| कोई तुर्क भगोड़ा बाबर आता है और हमारे भगवान राम के
जन्मस्थली को तोड़ देता है| कोई औरंगजेब हजारों महिलाओं-बच्चों को इस्लाम न स्वीकारने
पर जलती चिता में फूंक देता है| क्या इस्लाम का यही गौरवमयी इतिहास है?
मैं इस्लामी रीती-रिवाजों या घिनौनी प्रथाओं की चर्चा भी नहीं कर रहा|
हम हिन्दू की श्रेष्ठता है की इतने जघन्य इतिहास के बावजूद भी हमने
इस्लाम को मान्यता दी, इसे अपने धर्म से कही ज्यादा सहूलियत देने को स्वीकार किया|
उनकी हर छोटी-बड़ी गलती पर अपनी आँखें बंद रखी| फिर भी क्या वो हमारे अयोध्या को
मुक्त नहीं देखना चाहते? जिसकी इंटें भी तब की बनी है जब बाबर के सैकड़ों परदादाओं
का भी जन्म नहीं हुआ होगा| मुसलमानों को सोंचना होगा की अगर अयोध्या भगवान राम की
जन्मस्थली न होकर पैगम्बर मोहम्मद का जन्मस्थल होता तो क्या वे हिन्दुओं के जैसे
सहनशीलता दिखा पाते? नहीं! क्या वो कछुए के जैसे भारतीय अदालतों का इंतज़ार कर
पाते? नहीं! कभी नहीं!
अयोध्या विवाद हिन्दुओं के लिए आजादी के बाद से ही प्रतिष्ठा का
प्रश्न है, भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल है| 1990 के
दशक में रामजन्मभूमि मसला हिन्दुओं को साहस दे गया| उसे अपने धर्म के भविष्य को
लेकर चिंता हुई इसलिए की इतिहास गवाह रहा है, जहाँ भी इस्लाम पनपा वहां साम्राज्य
विस्तार की कोशिश की गयी, नरसंहार किया गया| इसलिए हिन्दुओं में भी ये खौफ बना की
अगर सजग नहीं हुए तो आज राममंदिर कल वृन्दावन, अमरनाथ, काशी आदि भी हाथ से निकल
जाएगा| उस दशक में राम मंदिर आंदोलन ने इसलिए भी जोर पकड़ा क्यूंकि उसी
वक्त रामानंद सागर कृत ‘रामायण’ सीरिअल घर-घर में भगवान राम के आदर्शों की एक अलग
छवि दे रही थी| कार सेवकों पर गोलीबारी और रामायण सीरिअल का परिणाम ही बजरंग दल के
रूप में उभर कर सामने आया| रथयात्रा का व्यापक समर्थन अखिल भारतीय स्तर पर भगवा
झंडे को हिन्दूवाद का प्रतीक बना गया|
पर अफ़सोस की आज अयोध्या के पावन धरती पर हमारे रामलला तंबू में खड़े
हैं| प्लास्टिक की तिरपाल फट चूकी है और उसे मात्र बदलने के लिए कोर्ट हमें आदेश
देती है| क्या अयोध्या काबा होता तो ऐसा होता?
क्या अयोध्या जेरुशेलम होता तो क्या जीसस तंबू में धुल फांकते? रोम, वेटिकन जैसे
कितने नाम गिनाऊं सब अपने आप में अपने धर्म को अपने तरीके से चलाने के लिए
स्वतंत्र है| सिर्फ हिन्दू को छोड़कर| यहाँ तक की हमारे सेक्युलर भारत
में मस्जिद या मदरसा किसी भी गतिविधियों या अर्नगल फतवों के लिए स्वतंत्र है| पर
दुनिया के सबसे पुराने सनातन धर्म और इसके लाखों-करोड़ों वर्ष पहले के सनातनी आस्था
वाले हिन्दू को मात्र 66 साल का संविधान व इसके कानून हिन्दू के आचार-विचारों और
आस्था को दिशा दिखाता है| सही-गलत तय करता है पर सिर्फ हिन्दू के लिए ही| मतलब
संविधान के आगे लाखों वर्षों के हकीकत की कोई अहमियत नहीं|
कई बार तो लगता है की हम लोग राम के नहीं पांडवों के वंशज हैं जो की
भरी सभा में द्रौपदी के चीरहरण पर भी चुप्पी साधे बैठे रहे| समय रहते सही
प्रतिक्रिया जताना तो हमारे डीएनए में है ही नहीं... फिर भी हम संभलेंगें, अपने
धर्म के लिए जिम्मेदार बनेंगें और एक सचमुच सेक्युलर राष्ट्र बनायेंगें... जय श्री राम...
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं...
ब्लॉग पर आते रहिएगा...
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