सुरा एवं सुंदरी दो चीजें अनादी काल से राजा-महाराजा व धनपतियों के
लिए मनोरंजन का सर्वोतम साधन रहा है| मदिरा ने घनानंद जैसे शक्तिशाली राजा को भी
अंपने नशे में इतना चूर कर दिया की वह सबकुछ खो बैठा| खैर
ये सब तो इतिहास की ज्ञात हकीकत है की शराब पहले अहंकार को जन्म देती है और फिर
अच्छे-अच्छों को नष्ट कर देती है| फिर भी तो हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, जहाँ
शराब इंसान से वो सब कुछ करवा रही है जो हमारे समाज को चंद वर्षों में बर्बाद कर
के रख देखा| थोड़ी सी मस्ती के लिए शराब क्या यहां चरस, गांजा, हेरोइन,
स्मैक, सिंथेटिक जैसे कई अत्याधुनिक नशाओं से मुर्ख मानव अपना अस्तित्व ख़त्म करने
पर तुला है| जिसके कारण हमारा समाज टूट रहा है, संबंध बिखर रहे हैं, घरेलु झगडें
बढ़ते जा रहे हैं और नशा इन्सान की सोंचने-समझने की शक्ति लीलती जा रही है| नतीजा
क्या हो रहा है? इंसान के अन्दर क्रूरता, निर्दयता बढती जा रही है और वह जरा-जरा
सी बात पर हत्याएं करने लगा है, बीबी-बच्चों को घर से बाहर करने लगा है| ऐसा नहीं
है की ये सारी चीजें एकदम अभी शुरू हुई, क्योंकि शराब का प्रचलन तो काफी पुराना
है| फिर भी सोंचना होगा की हम इंसानों को नशासेवन इतना मदहोश क्यूँ कर दे रहा है
की हमारी इंसानियत, हमारी विरासत खतरे में पड़ने लगी है? इसमें गलती किसकी है, शराब
बेचने वाले में या पिने वाले में?
बिहार में 1 अप्रैल से शराबबंदी की घोषणा हुई है| मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार ने अपने कार्यकाल में कई सराहनीय व प्रभावी कदम उठाये हैं, लेकिन एक महिला
की आवाज पर उन्होनें शराबबंदी की घोषणा करके राज्य, समाज और परिवारों के हित में
असाधारण निर्णय लिया है| मैं बिहार के अतीत में नहीं जाना चाहता की भठीयां किसने
खुलवाई या किसने शराब को गाँव-गाँव में प्रचलित बनाया? पर सवाल ये है की क्या बिहार जैसे पिछड़े व अशिक्षित राज्य में इसे लागू
करा पाना संभव है? ऐसा इसलिए की एक आंकड़ों के अनुसार बिहार की कुल आबादी के 54%
लोग व 4% औरतें नशे के आदि हैं| चौंकाने वाली रिपोर्ट है की 18 से 35 वर्ष के 65%
युवा किसी न किसी नशे का शिकार हैं| हमारे
6 फीसदी नौनिहाल मजे से हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाते चले जा रहे हैं| परेशानी ये की नशे का सेवन करने वालों में 48 फीसदी लोग
शिक्षित हैं तो 52 फीसदी अशिक्षित| यानी शिक्षित भी आदतों से खुद को
अनपढ़ घोषित करने को बेताब हैं...
क्या ऐसे बढेगा हमारा बिहार? क्या शराब पर निर्भरता से हमारी GDP
तरक्की कर रही है या उससे होनेवाली बिमारियों पर सरकार खर्च करके जीडीपी कमजोर कर
रही है? तमाम सवाल हैं| जनता को सरकार से सवाल पूछने का बेशक हक़ है, क्यूंकि पिछले
दिनों इसी तरह से गुटखे पर भी प्रतिबन्ध लगे थे पर आज भी गुटखे की बिक्री खुलेआम
है| लेकिन नीतीश कुमार ने ये फैसला करके नशेरियों से ज्यादा शराब कारोबारियों से जो
पंगा लिया है वो कोई साधारण बात नहीं है| नीतीश कुमार के लिए आने वाले दिन आसान
नहीं होंगें| शराबबंदी से ज्यादा शराबियों के लत को छुड़ाना लगभग असंभव सा काम
होगा| बिहार के ग्रामीण इलाकों में प्रतिबन्ध लगा दिए जाने से मुझे नहीं लगता की
शराबियों को बहुत ज्यादा परेशानी होगी या फिर शराब मिलना ही बंद हो जाएगा| गांवों
में लोग महुआ आदि चीजों से आसानी से घर में ही देशी शराब बना लेते हैं और मज़े से
महीनों तक पीते हैं|
शराब बंद कराने की पूरी जिम्मेवारी पुलिस पर सौंपकर सरकार अपने
कर्तव्यों से इतिश्री न करे| क्योंकि पुलिस की कार्यप्रणाली हमेशा संदिग्ध रही है,
वसूली करने वाली की रही है या माफियाओं के लिए काम करने वाली रही है| अगर सरकार ये सोंचती है की वो फाँसी, उम्रकैद, जुर्माना आदि
के दम पर शराबियों की लत छुडवा सकती है तो ये मुर्खता है| डंडे की जोर पर शरीर को
तकलीफ पहुंचाई जा सकती है मगर मन-मस्तिष्क को नहीं| क्योंकि फाँसी, उम्रकैद या
जुर्माने जैसे कई सजा कानून में पहले से चलन में है फिर भी आजतक मर्डर, रेप,
अपहरण, रंगदारी, धमकी या छेड़खानी की घटनाओं में क्या जरा भी कमी आई है? नहीं!
बल्कि, इनकी रफ़्तार तो चीते की चाल जैसी है...
इसलिए ये कहना मुश्किल है की
पुलिस की लाठी या जेल के डर से कोई अपनी आदत बदल डाले, असंभव है| क्योंकि जेल में भी
तो हर चीज (नशा) का व्यापक इंतजाम होता है... सरकार जहाँ ले जाए लेकिन कुत्ते की
दूम की तरह इंसान की लत सीधी हो ही नहीं सकती| फिर भी इतना साहसिक फैसला लेने के
लिए नीतीश कुमार जी को मेरा सॉल्युट...
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना ( आशा करता हूँ की शराब बंद सफल हो, इससे
ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक स्थिति सुधरेगी, उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित होगा
और उनकी आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर होगी...)
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