कश्मीर में देशद्रोही गतिविधियों का इतिहास पुराना रहा है| धर्म,
जिहाद या पाकिस्तानपरस्ती की आड़ में देश के विरूद्ध साजिश रचना और घाटी को अशांत
करने की कोशिश उनकी पैदाइशी फितरत बना चुकी है| चंद अलगाववादी नेताओं और हुर्रियत
की मनोदशा हमेशा उसे पाकिस्तान का अंग बनाने की रही है| सरकार के साथ कई बातचीत के
दौर के बावजूद भी न तो कश्मीरी मुसलमानों की मानसिकता में कोई परिवर्तन आया और न
ही उनके देशद्रोही रवैये में|
क्या इसे हमारी सरकार की असफलता कही जा सकती है जिसने इन 5-6 दशकों
में अरबों-खरबों रुपये कश्मीरी लोगों, युवाओं को मुख्याधारा में लाने के नाम पर
बर्बाद की फिर भी उनका शांति-सन्देश, देशप्रेम और अरबों रूपये धर्म, जूनून और
जिहाद के पागलपन के आगे फीका पड़ गया| दुनिया की वर्तमान वैश्विक हकीकत है की
इस्लाम की सोच, उसकी विचारधारा शांति से नफरत करती है| इतिहास गवाह है की किस तरह
घाटी से कश्मीरी पंडितों को काफिर के नाते भगाया गया, उनकी इज्जत लुटी और धन-दौलत
को अपना बनाया| बुरहान वाणी तो कश्मीर के आतंक का एक छोटा सा आइकॉन था| उसकी आतंक
के अलावे कोई अपनी खुराफाती विचारधारा भी नहीं थी जैसा की भारत सरकार के पैसों और
सुरक्षा से पल रहे गिलानी, मसूद जैसे हुर्रियत नेताओं की है| या फिर मुफ़्ती और
अब्दुल्ला की दबी जुबान से है|
सेना को मारना, उन पर पत्थर बरसना उनका अधिकार है, पर सेना का पैलेट
गन चलाना अधिकारों का हनन| शायद कानून इस बात से अनजान है की राजकाज चलाने के लिए
सारे जुर्म, हनक और कारवाई जायज होती है जैसा चुनाव जितने में होता है| लेकिन
मानवाधिकार की चिंता करने को उनलोगों को कतई अधिकार नहीं है जो नुमाइंदे या रक्षक
के नाम पर ठंढे एसी कमरों में बैठकर हजारों किलोमीटर दूर की वास्तविकता पर सही-गलत
की निर्णय लेता है| देश की सुरक्षा, उसकी एकता और अखंडता को सुनिश्चित कराने की
जिम्मेदारी सेना की है, सरकार और कोर्ट की नहीं| इसलिए सेना के कार्यों में बेवजह
हो रही दखलंदाजी हमारे लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा कर सकता है... फिर तो जनता मौज
मना सकती है... किसलिए? आप जानते हैं...
लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं...
ब्लॉग पर आते रहिएगा...
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