02 September 2016

भारत अमेरिका का दास या अनुयायी

Image result for india america defence imageवैश्विक पटल पर दुनिया के ताकतवर देशों का बदलता कुटनीतिक मिजाज हमें चर्चा के लिए बाध्य कर रहा है| इसलिए की अमेरिका का भारत जैसे देशों की तरफ हो रहा झुकाव विश्वशांति, भाईचारे के तकाजे से है या सामरिक, आर्थिक स्वार्थ की भावना लिए है इसे हमें समझना होगा| दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका, जिसने न जाने कितने देशों की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक आजादी नष्ट कर दी वहीँ चीन जैसे देशों को संपन्न भी बनाया| आजादी के बाद से भारत और अमेरिका की दूरी पंचशील, निर्गुट, शीतयुद्ध और सोवियत संघ पर नेहरु के फैसले से रही| वहीँ साम्यवादी चीन इस दौरान राजनीति से दूर अपनी सम्पन्नता के रास्ते तलाशता रहा| पर भारत भाईचारा, विश्वशांति और पिछड़े देशों का अगुआ बनने का ढोल पिटता रहा| 

हाल के वर्षों में मोदी सरकार ने अमेरिका के साथ जितनी तीव्र गति से सामरिक और आर्थिक समझौते किये हैं, उनके कई मायने हैं| भारत के लिए चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों से निपटने का एकमात्र जरिया अमेरिका है तो अमेरिका के लिए भी भारत एक बड़ा बाजार, रक्षा खरीददार, भरोसेमंद समर्थक और चीन के मुकाबले खड़े होने की जरूरतें पूरी करता है| जिस चीन को अमेरिका ने एशिया का महाशक्ति बनाया वही चीन ड्रैगन बनकर फुफकार रहा है| जो अमेरिका को तनिक भी नहीं सुहा रहा| दक्षिण चीन सागर जैसे अहम् मुद्दों पर वह विश्व पंचाट, आसियान जैसे संगठनों को धमका रहा है, उसे कूड़ेदान बता रहा है| वियतनाम, फिलीपिंस, दक्षिण कोरिया पर चीन की दादागिरी से एशिया में तनाव का माहौल पनप रहा है| इनसब के बीच चीन पाकिस्तान में जो कॉरिडोर बना रहा है, उससे उसकी पहुंच सीधे हिन्द महासागर तक हो जायेगी| फिर तो हिन्द महासागर में चीन की दादागिरी पूरे मध्य एशिया को अशांत कर देगी| चीन के इस रवैये का भारत सिर्फ विरोध ही कर सकता है, लेकिन चीन को सबक सिखाने के लिए उसे अमेरिका की सख्त दरकार है|

Image result for india america imageदूसरी तरफ अमेरिका एशिया और दक्षिण चीन सागर में चीन की बढती मनमानी को रोक नहीं पा रहा| इस स्थिति में उसने भारत के साथ जो एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल की संधि की है वो हर हाल में चीन के लिए चिंता पैदा करेगा| संभव है की भारत के बाजारों पर चीन का प्रभुत्व कम करने की दिशा में अमेरिका कोई कारगर कदम जरूर उठाएगा|
                                                 
इस तरह निष्कर्ष है की भारत की अमेरिका पर बढती निर्भरता हमारे लिए कुटनीतिक और सामरिक मोर्चे पर फायदेमंद है| उत्तर कोरिया और पाकिस्तान को मोहरा बनाकर विश्व शांति भंग करने की चीन की साजिश को दुनिया को नाकाम करना होगा| फिर भी हमें अमेरिका के स्वार्थी इतिहास को देखकर उससे दुरी बनाकर चलनी होगी और इनसब के बीच अपना हित तलाशना होगा...

लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...


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