24 February 2016

भारत माँ की औलाद हूँ

हे भारत माँ, मैं शर्मिंदा हूँ की मैंने अबतक की जिन्दगी में आपकी सुरक्षा, आत्मसम्मान की रक्षा के लिए कुछ नहीं किया| पढाई-लिखाई से फुर्सत मिल जाने पर ब्लॉग लेखन के माध्यम से अपने स्वयंस्फूर्त विचारों को लोगों तक पहुंचता हूँ| आपकी इस पावन धरती पर कई अंग्रेजों के औलादों ने अपने स्वार्थ के लिए इसे अपनों में लड़ाकर मलिन किया है, और आज भी कई काले अंग्रेजों की औलादें अपने कुकर्म से इसे मलिन करना चाहता है, इसे खंडित करना चाहता है| भारतवर्ष की सोंधी मिट्टी को खून से भिगों देना चाहता है| पर माँ, हम सभी आपको विश्वास दिलाते हैं की इसे तोड़ने की मंशा पालने वालों को अब हमसे सामना करना होगा| आपकी संतान अब काफी समझदार हो गयी है, हाईटेक हो गयी है, उसमें अपनी भारत माँ की प्रतिष्ठा समाहित हो गयी है| सारे गद्दार छुपने के लिए संविधान का सहारा लेते हैं, कानून को मोहरा बनाते हैं तो कभी साम्प्रदायिकता के बुरके में छिपने की नाकाम कोशिश करते हैं| पता है की उन्हें छिपने के जगह क्यूँ नहीं मिल रही?

Image result for deshbhaktiImage result for deshbhaktiक्योंकि मेरे जैसे करोड़ों युवा अखंड भारत का सपना लिए आगे बढ़ रहे हैं| इस भीड़ का नेतृत्व कोई साधू-संत नहीं कर रहा बल्कि, युवा हिन्दू मुखर नौजवान कर रहा है| जो हर किसी से आँखें मिलाकर बात करना चाहता है तो पाकिस्तान से खून का बदला खून में चाहता है, तो वहीँ मुसलमानों को गले भी लगाना चाहता है| बदले में मिले सारे खंजरों के इतिहासों को भुलाना चाहता है, फिर भी कोई ऐसा है जो ये होने नहीं दे रहा| हाँ, आपकी एक ख़ास संतान ‘मोदी’ जिन्हें आपने किस मकसद से भेजा है समूचा संसार जानता है, फिर भी चुप इसलिए बैठा है ताकि आपकी आँचल भारतवर्ष के सपूतों से रक्तरंजित न हो जाए| हम युवा देशभक्ति सिद्ध करने के लिए न तो सड़क पर उतारकर एक दुसरे से लड़ते हैं और न ही किसी को हानि पहुँचाने में विश्वास रखते हैं| हमें जितना भगवा रंग से मोहब्बत है उससे कहीं ज्यादा हरे रंग से प्यार है...  यहाँ तक की बिना घरवालों को भी बताये हमारे जैसा युवा सोशल मीडिया के सहारे भारत मां के तमाम गुनाहगारों की ऐसी हालत करता है की वो जिन्दगी भर रोये तो भी पश्ताप न हो| फिर भी कुछ लोग हैं जिनका खानदान आपकी इस धरती पर स्वार्थों के सहारे राज करता आया है और कुछ ऐसे भी हैं जो राज करने की मंशा पाले बैठे हैं| और हम कुछ नहीं कर पाते...

हे भारत माँ, भारतवर्ष के इस धरती पर देश का नमक खाकर दूसरों का गुणगान करने वालों को सद्बुद्धि दो| मैं अपनी इस 19 वर्ष की जिंदगी में हज़ारों जवानों को शहीद होते देखा है| फिर भी फक्र है मुझे उन हजारों शहीद माँ भारती के वीर सैनिक पर|  लेकिन मैं टूट जाता हूँ जब किसी शहीद जवान बेटे को तिरंगे में लिपटा देखकर उसका वृद्ध बाप उसे सोलूट करता है| उसकी विधवा बीबी रोने की जगह नाज़ करती है अपने पति की शहादत पर, और उसकी बूढी माँ ममता के कोमल हृदय को भी कठोर बना लेती है... फिर भी रोती है...    ओ राजनेताओं, शिमला-मनाली में छुट्टियाँ बिताने वाले रईसों, जाओ कभी किसी शहीद के घर और देखो उनका समर्पण! देखो उनका राष्ट्रप्रेम, देखो उनकी कठोरता और देखो उनके परिवारों का साहस...
 किसी ने कहा है...
                “जमाने भर में मिलते हैं आशिक कई,
               मगर वतन से खुबसूरत कोई सनम नहीं होता,
             नोटों में भी लिपट कर सोनों में सिमटकर मरें हैं कई,
               मगर तिरंगे से खुबसूरत कोई कफ़न नहीं होता”

मन करता है की हर उस व्यक्ति को गोली मारूं जो शहीदों की वीरता का मजाक बनाता है, एक पल में शहीदों को श्रद्धांजली देता है तो अगले ही पल देशद्रोहियों के लिए धरने पर बैठ जाता है| संवेदनहीनता और प्रपंच के इस पाखण्ड को नेताओं और अफसरों से ज्यादा कोई नहीं बुझ सकता| लेकिन भारत मां, आपकी कई संतान मुर्खता में आपका उपहास उड़ाते है, मजाक बनाते हैं| जिस धरती पर खेलकर वे बड़े हुए उसे ही दगा दे जाते हैं क्यूँ? पता है आपको की वे ऐसा कैसे कर पाते है? क्योंकि आपकी लगभग आधी औलादें आलसी हो गयी है| उसमें नेताओं वाली मौकापरस्ती के गुण आ गए हैं और जानने के लिए खुद को मीडिया के ऊपर छोड़ रखा है| फिर भी हम जितने हैं उतने ही देश के गद्दारों के लिए काफी हैं|

हमें किसी दल का समर्थक मानने वाले ये जान जाएँ की मैं किसी पार्टी या नेता का समर्थक रहूँ न रहूँ लेकिन भारत मां का समर्थक बेशक रहूँगा और आखिरी साँस तक रहूँगा| और हाँ इस ब्लॉग को महज एक लेख समझने वाले जान लें की मालदा, जेएनयू जैसी घटनाओं पर ऐसी-ऐसी लेखों के बाद ही सरकार को कारवाई के लिए मजबूर होना पड़ा...
और चलते-चलते ये भी बता दूँ की हम युवाओं को फिल्मों से देशप्रेम और राष्ट्रभक्ति सिखने की जरूरत बिलकुल नहीं| हमारे खून में भारत माँ का DNA बहता है... गद्दारों के लिए इतना जानना ही काफी है...
किसी कवि ने क्या खूब कहा है,
           
           || “जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं,
            वो हृदय नहीं वो पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं” ||


Image result for deshbhaktiलेखक:- अश्वनी कुमार, पटना (जिसके पास राष्ट्रप्रेम का सबूत देने को जूनून के अलावा कुछ नहीं है... मेरा ब्लॉग समर्पित है देश के लिए...) 

पत्निव्रता पति हिन्दू ही बनते हैं...

Image result for indian wife quarrelइस संसार में रहनेवाले अधिकतर लोग नारी शक्ति की जटिल मस्तिष्क की गुत्थी सुलझाने में खुद को असमर्थ पाते हैं| सुलझाना तो दूर उसे समझ लेना भी पतियों के लिए मंगल ग्रह से यात्रा करके वापस लौट जाने के समान है| सुखी-संपन्न देशों में ख़ास करके पुरुषों में हाइपरटेंशन या तनाव जैसी बीमारियों की जड़ पत्नियों से होने वाली रोज-रोज के विवाद है| फिर भी तो हमारे इंडिया में हम हिन्दुओं को छोड़कर बाकी धर्मों के लिए वैवाहिक क़ानून बेहद लचीले हैं, और हिन्दुओं के लिए? सोंचना ही मुर्खता है! नारी सशक्तिकरण लिए देश में बहुत सारे फेमिनिस्ट अलग-अलग संगठन बनाकर महिलाओं के बेहतरी के लिए, उत्थान के लिए झूठी आवाज बुलंद करते हैं| चीखते है, चिल्लाते हैं और फिर एकाएक चुप होकर बैठ जाते हैं| किसे दबाव में? किसके पक्ष में और किसके लिए? जानता सब है लेकिन कोई नहीं बताता!
                                                                      
हमारी सरकार ने देश और राज्य स्तर पर महिला आयोगों की स्थापना की, देश के लगभग हर एक जिले में महिला थाना बनाने की सफल कोशिश की है| लेकिन महिला थाने तक अपने पति के परिवार को घसीटने वाली 80 फीसदी महिलायें अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करती है| देश के सामाजिक-पारिवारिक बंधन से इतर होकर आजकल की महिलायें घर में अपना शासन चलाना चाहती है, जॉइंट फॅमिली से उसे नफरत होने लगी है तो वहीँ चाहती है की उसका पति हर चीज उसी की निर्देश से करे| ऐसा नहीं है की महिलाओं को उसके अधिकार से वंचित रखा जाना चाहिए या उसे पुरुषों के बराबर नहीं होने देना चाहिए| बल्कि मैं तो चाहता हूँ की नारी सशक्तिकरण का लक्ष्य पुरुषों से भी ज्यादा ऊंचाई हासिल करने की हो, इसके लिए हमारे संविधान ने उन्हें काफी अधिकार भी दिए हैं| लेकिन सिर्फ हिन्दू महिलाओं को ही| क्या मुस्लिम या अन्य धर्म का पालन करने वाली हर एक नारी की अधिकारों को एक किताब या सिद्धांत के धकोंसले के बलबूते उसकी मौलिकता का हनन हो? क्यूँ इसके लिए कभी कोई आयोग नहीं बनायीं जाती?

रही बात पहनावे की तो आजकल की महिलायें जींस-टीशर्ट पहनकर पुरुषों की बराबरी करना चाहती है, लेकिन मैंने तो कभी नहीं सुना की जींस-टीशर्ट पहनने से लड़कियां इतिहास रच लेती है, या कोई बड़ा मैदान मार लेती है| अगर ऐसा होता तो रानी लक्ष्मीबाई ने रणभूमि में जींस-टीशर्ट तो नहीं पहना था फिर भी कैसे जीत गयी? इंदिरा गाँधी, सरोजनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित या फातिमा बीबी जैसी सफल महिलाओं ने तो जींस-टीशर्ट पहनकर इतनी उंचाई हासिल नहीं की बल्कि ये सभी व्यवहारीक वस्त्र ही पहनती थी...

ऐसा नहीं है की हर घरेलु झगड़ों में सिर्फ महिलायें ही दोषी होती है| समाज में मैंने अबतक अपने जीवन के 19 वसंत की अनुभवहीन अवधि बिताई है फिर भी काफी कुछ देखा और सिखा है| मैंने समाज में बहुत सी नारियों को देखा जिन्होंने दुसरे का घर बर्बाद कर रखा था और कई मर्दों को भी जिन्होंने अपनी पत्नी का जीना दूभर कर रखा था| लेकिन हैरानी ये थी की हर एक ऐसे बिगरैल पतियों की डोर किसी न किसी महिला के हाथ में जरूर थी जो उसे मनचाहे तरीके से नचा लेती थी|

बीबियों का गुलाम बन जाना हम मनुष्यों को वरदान तो नहीं फिर भी हम हिन्दुओं की फितरत जरूर है| चाहे क़ानून के डर से, समाज के डर से या बीबी के ही डर से लेकिन हम गुलाम बन जाते हैं| मुझे समझ नहीं आता की गलती किसकी है?  इसलिए की हिन्दू धर्मं किसी एक किताब के सहारे नहीं टिका है, किसी ख़ास सिद्धांत पर नहीं चलता या इसलिए की हिन्दू धर्म को दिशा दिखाने वाला संसद, नेता या सुप्रीम कोर्ट के अलावा कोई नहीं है? कभी औरों पर भी चाबुक चलाकर देखिये! इसके बाद सहिष्णुता की परिभाषा वही समझायेंगे...

लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... आते रहिएगा...