मोदी सरकार हाल ही में लोकसभा के अंदर जन विश्वास बिल लेकर आई है. ये अकेला बिल 42 अलग अलग क़ानूनों के विभिन्न प्रावधानों में संशोधन कर देगा. मतलब 42 बार संशोधन क़ानून लाने की कोई ज़रूरत नहीं.
सरकार ने एक शानदार शॉर्टकट तरीक़ा ढूँढा है लोकसुधार / व्यापार की रास्ते में आने वाली बेमतलब के क़ानूनों को आसानी से ख़ात्मे की.
मोदी सरकार की ये पूरी क़वायद ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस के लिए है.
हमारे आसपास के लोग जो हमेशा चीखते हैं की चीन के जैसे हमारे यहाँ निवेश क्यों नहीं आता, हम अमेरिका क्यों नहीं बन जाते.. वैसे लोगों की बातों पर सरकार गंभीर हो चली है. चीन में फ़ैक्टरियाँ डाल कर बैठी विदेशी कंपनियाँ वहाँ की राजनीतिक अस्थिरता और निरंकुशता से डरकर भागने की फ़िराक़ में है.
इधर भारत ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस के लिए मंच ठोकता दिख रहा है.
जन विश्वास क़ानून के प्रथम चरण में 19 मंत्रालयों के अन्तर्गत 42 वैसे वैसे अधिनियमों के प्रावधानों को या तो डीक्रिमिनाइज़ (अपराध से बाहर) किया है या तो सीधे हटा डाला है जो अकेले सरकारी तंत्र द्वारा व्यापार को ऐसी तैसी करने की शक्ति देता था.
हाल ही में इसने जीएसटी में दो करोड़ तक के टैक्स चोरी के संभावित मामले को क्रिमिनल ऑफ़ेन्स से बाहर कर दिया. यानी मालिक को सीधे जेल में डालने का प्रावधान ही ख़त्म कर दिया. छोटी मोटी टैक्स चोरी के मैटर में जीएसटी अधिकारियों को सहयोग न करने पर पहले इसे अपराध माना जाता था और पुलिस सीधे अंदर कर देती थी, अब ये मोनोपॉली भी ख़त्म हो गई.
मतलब ऐसा नहीं है की व्यापारी अब खुलेआम लैस लूटेंगे और टैक्स चोरी करने की छूट सरकार ने दे दी है. जबकि इन सारे मामले को सिविल अपराध की श्रेणी में रखा गया है.
जाँच चलेगी और जो मूलधन समेत जुर्माना बनेगा सरकार निर्ममता से वसूल ही लेगी, लेकिन आप बिना मतलब व्यापारियों को जेल में डालकर उसके बिज़नेस की लंका अब नहीं लगा सकते. हाँ बड़े चोरी के मामले में सरकार अब भी सख़्त है और मनी लाउंड्रिंग में संलिप्त हुए तो पाई पाई ज़ब्त करने से नहीं चूकेगी..
चूँकि भारत में 10-15 करोड़ लोग सीधे सीधे ऑर्गनाइज़ सेक्टर यानी छोटी बड़ी फ़ैक्टरी कंपनियों में काम करते है. उनके परिवार समेत कुल मिलाकर देखें तो 40-50 करोड़ का जीवन यापन सीधे जुड़ा है. रोज़गार के लिए सीधे अपने मालिक पर निर्भर हैं..
केंद्र के अकेले 1305 क़ानून देश में लागू हैं. एक राज्य को भी जोड़े तो 200-300 उसके भी बने होंगे. अधिकांश अंग्रेजों वाले नियम लदे पड़े है, इसमें इंस्पेक्टर राज का इतना बोलबाला है की अगर सही से जाँच कर ले तो बड़ी से बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियाँ भी हज़ार से ज़्यादा क़ानूनों का उल्लंघन करती रहती है.
प्रावधान इतने लेंथी, अतार्किक हैं की चाहकर कोई पालन नहीं कर सकता और अगर करेगा तो इतने कम्पटीशन के दौर में बिज़नेस बंद होने से कोई नहीं रोक सकता.
अब कोई अथॉरिटी ढंग से जाँच कर दे तो कम से कम चार पाँच सौ प्रावधान सीधे सीधे कंपनी के मेन गेट पर ताला मार देने की शक्ति ज़रूर देता है. हो गया व्यापार…
व्यापारी जीएसटी भरे, कॉर्पोरेट टैक्स भरे, फिर कुछ पर्सनल बचा तो इनकम टैक्स सेस के साथ भरे..
सैंकड़ों लाइसेंस राज की जटिल प्रक्रिया से निपटे इसके अतिरिक्त इंस्पेक्टरों को मैनेज करने में धन लुटाये..
अगर आपको यह सब नहीं पता या मज़ाक़ लगता है तो शायद आपको बिज़नस का कोई आईडिया नहीं है या आप वामपन्थ, शुतुरमुर्ग विचारधारा वाले आदमी है. सरकार का विरोध करना अलग बात है लेकिन राष्ट्र को सुधार के राह पर ले जाने वाली कदमों को तो निष्पक्षता से देखना चाहिए ये आपका मूल कर्तव्य भी है..
सरकार ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस यानी व्यापार की राह आसान करने को रनवे पर आ चुकी है. केंद्र सरकार सारी लाइसेंसिंग प्रक्रिया को National Singal Window System पोर्टल द्वारा एक जगह ला रही है. सारी सरकारी अप्रूवल निर्धारित टाइम लिमिट के अंदर ऑनलाइन होगी. सिर्फ़ एक जगह पोर्टल पर आवेदन करेंगे, आपके बिज़नेस खोलने के लिए क्या क्या ज़रूरी है सब डॉक्युमेंट्स अपलोड करें.. आगे का काम अपने अधिकारियों से सरकार चुटकियों में करा लेगी.
लेबर एक्ट रिफॉर्म्स को सरकार धीरे धीरे पटरी पर ले आएगी. क्योंकि लेबर का मामला बहुत सॉफ्ट टारगेट होता है, उन्हें सिखाना बहुत आसान है की सरकार तुम्हारी चमड़ी उधेड़ने के लिए मालिकों को छूट दे रही है, अब तुमसे बैल की तरह काम कराया जायेगा, सैलरी कम कर देगा..
जबकि दूसरा पक्ष यह है की अगर सरकार व्यापार के लिए नॉर्म्स को आसान ना करे तो विदेशी कंपनियाँ अपना धन यहाँ क्यों लगाएगी.
हड़ताल के लिए 14 दिन पहले नोटिस देना और समझौता कराने का नियम न लाया जाये तो छोटी छोटी डिमांड पर लेबर कंपनी का प्रोडक्शन बंद कर देगा और मालिक की लंका लगा देगा.
फिर भी सरकार किसी क़ानून उल्लंघन के लिए तगड़े जुर्माने का प्रावधान रख रही है. बार बार गलती के मामले में जेल का प्रावधान अब भी है.
सोशल सिक्योरिटी के लिए मालिकों पर दबाब बरकरार है.
स्पष्ट है कि भारत सिर्फ़ कृषि से आगे नहीं बढ़ने वाला.. हम सिर्फ़ अनाज फल और सब्ज़ी खाकर खेतों में दिन काटने गप्प लड़ाने वाली आबादी नहीं हैं. आज की पीढ़ी सरकारी नौकरी करना चाहती है, न मिला तो कॉर्पोरेट कंपनियों में सूट टाई वाले जॉब चाहते है, सोशल सिक्योरिटी चाहते हैं, मोबाइल इंटरनेट के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं है..
कपड़े विदेशी ब्रांड पहनने की शौक़ पाल रहे है.. रेस्टूरेंट कल्चर आम बात हो गई है.. बर्थडे मनाना ग़रीबों का भी शौक़ हो चला है.. मुफ़्त में राशन हर किसी को चाहिए, लेकिन टैक्स चोरी करेंगे.. ऐश के सारे साधन सरकार को उपलब्ध कराना चाहिए ये मानसिकता है हमारी.
रोज़गार के लिए सरकार को कोस रहे लेकिन आईडिया कोई नहीं देगा. सब हवा में बात करेंगे कुतर्क करेंगे…
व्यापारिक क़ानूनों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना इस सरकार का रिवोल्यूशनरी कदम है.
इनका लक्ष्य है की विदेशी कंपनियों को किसी तरह स्थापित कराना है, come and Make in India का नारा साकार हो.. इनकी यही बात और राष्ट्र के लिए दूरदर्शी सोच जनता में विश्वास पैदा करता है न की ईवीएम हैक हो जाती है..
व्यापारी जानबूझकर टैक्स चोरी करे, प्रावधानों का उल्लंघन करे तो दस गुना जुर्माने ठोको. मगर उसे बिज़नेस चलाने दो.. दुधारू गाय की तरह टैक्स पर टैक्स देने वाले सेक्टर को चलने दो.
सोने की अंडा दे रही मुर्गी का पेट फाड़ देना मूर्खता है.. चालाकी इसमें है की मुर्गी गलती करे तो जुर्माने में दो अंडा अधिक वसूल लो लेकिन उसका अंडे देने यानी बिज़नेस चलाने में सहयोग करो…