बेशक, इतिहास उठाकर देख लें की सिवाय इंदिरा गाँधी के युद्ध लड़ने की
महत्वाकांक्षा किसी प्रधानमंत्री में नहीं रही| उफ़, वो ताबड़तोड़ फैसले, पाक को बाँट
देने से लेकर इमरजेंसी लगाने तक और इतना होने के वाबजूद भी सत्ता में वापस लौट
जाने का दमखम! आप सोंच रहे होंगे की मैं कांग्रेस का गुणगान कब से करने लगा| वो
कांग्रेस जिसने देश को बंटवाया, जिसके नाती-पोतों ने इस देश को कभी तोप के बहाने
तो कभी टेलीफ़ोन के बहाने देश को भेडिये की तरह नोंच डाला और तो और इसी के वंशजों
ने ही देश को आपातकाल दिखाकर लोकतंत्र की हत्या कर डाली थी|
कैसा लोकतंत्र, काहे का लोकतंत्र, काहे का संविधान, काहे का नेता, जब
देश का आत्मसम्मान ही न बचे! सोचें की कभी हम विदेश जाएँ और बातचीत के
क्रम में विदेशी हमारे निकम्मेपन का मखौल उडायें तो हमपर क्या गुजरेगी? हमारी सारी
महानता युद्ध के मोर्चे पर हमारी उदारता के नीचे दब जाती है| और ऐसा प्रवासी
भारतियों के साथ घटित भी हो रहा है| कभी चाणक्य ने कहा था की सांप कितना भी विषहीन
हो, लेकिन उसे फुंफकारना नहीं छोड़ना चाहिय| फिर भी भारत एक शेर होकर भी नख-दन्त
विहीन भेडिये की शक्ल में छुपे भेंड से डर रहा है और भेंड को भेड़िया समझाने की भूल
कर रहा है|
भारत बुद्ध की धरती है ‘बुद्हम शरणम् गच्छामि’, हम सर झुकाकर चुपचाप
शांति का राग अलापने में माहिर हैं| हम अहिंसा के पैगम्बर गाँधी के पदचिन्हों पर
चलने वाले हैं, जहाँ विदेशी आक्रमणकारियों को भी महान बताया जाता है उसकी वीरता के
गाथाएं स्कूलों में बच्चों से रटवाए जाते हैं| भारत युद्ध लडेगा भी नहीं क्यूंकि
जो हमपर शासन कर रहे हैं वो कभी शहीदे-आजम के प्रवर्तक हुआ करते थे लेकिन आजकल
उन्होंने लोकतंत्र की महिमामंडन के रास्ते अपना रखे हैं| देश के राजनीतिक दल कभी किसी
भी परिस्थिति में युद्ध से किनारा करते आये हैं, इसलिए की वे जानते है युद्ध होने
पर आम जनता से ज्यादा असुरक्षित वही लोग होंगे! विशिष्ट और गणमान्य लोग युद्ध के
वातावरण में दुश्मन के निशाने पर रहते हैं ये सबको पता है|
इसलिए मैं दाद देता हूँ इंदिरा गाँधी को, लाल बहादुर शास्त्री को,
पोखरण के नायक वाजपेयी को| इंदिरा ने युद्ध के मोर्चे पर कभी तो देश का सिर शर्म
से तो झुकने नहीं दिया| तब भारत पूर्ण परमाणु शक्ति भी नहीं था और सेना ने
अंग्रेजों वाली एनफील्ड राइफलों, तोपों के सहारे ही पाक को सांप सुंघा दी थी| उनकी
बहादुरी और आक्रामकता के आगे दुश्मनों ने घुटने टेक दिए थे| इंदिरा ने तो
पाकिस्तान को ऐसी सबक सिखाई की पाक अबतक उस गम से उबर नहीं पाया है| पाकिस्तान के
दो हिस्से कर दिए उन्होंने| देश को एक नई इंदिरा की तलाश है जो इस बिना ओर-छोड़ के
संविधान में बदलाव दिला दे, मीडिया के अहंकार को चूर कर दे और एक विकसित,
सुव्यवस्थित राष्ट्र का निर्माण करे| एक ऐसी सरकार का गठन हो जो हर फैसले के लिए
अमीर-रईसों के विचारों (राज्यसभा) पर निर्भर न रहे, जनसँख्या नियंत्रण का क़ानून
बने, यूनिफार्म सिविल कोड लागू हो और देश के सारे नागरिकों को एक-दुसरे के साथ
शांति से बिना धर्म विस्तार की मंशा लिए सभी धर्मों की इज्जत करे|
और हाँ, देश में ये इच्छाशक्ति हो की आँखे दिखाने वाले की आँखें
निकालकर उसके हाथ में दे दे| लेकिन ऐसा हो नहीं सकता... इन भैसों के आगे बेकार की
बिन बजा रहा हूँ.....
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं...
आते रहिएगा...
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