लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मीडिया यानी सूचनातंत्र को कहा जाता है| देश
और दुनिया के महत्वपूर्ण ख़बरों को निष्पक्षता, बेबाकी और विश्वसनीयता के साथ जनता
को रूबरू कराना| लेकिन पिछले एक दशक से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की छवि
राजा-रानी की कहानियां, ग्लैमर और टीआरपी की चकाचौंध में धूमिल होती चली जा रही
है| बिना रोक-टोक जनता को सारी सच्चाई से अवगत कराने के जिम्मेवारी लिया
मीडियातंत्र ने (राजनीति नहीं) राजनेताओं से प्रेरित संपादकों और एंकरों के सहारे
अपनी डोर राजनीतिक दलों के हाथों में सौंप दी है| ऐसे में वो दल अपने ख़ास चैनल या
अखबार को अपने तरीके से नचाकर जनता के सामने अपनी मनचाही छवि बना लेता है| ऐसे लोग
खुद को राजा हरिश्चंद्र का अवतार और विरोधियों को शैतान बताते नहीं थकते| लोग ख़बरों
के लिए पूरी तरह से समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों पर आधारित हो चुके थे| जनता को
किसी ख़ास दल के लिए अच्छा सोचनें पर मजबूर किया जा रहा था और स्वाभाविक तौर पर
विपक्षी दल का डर दिखाकर अखंड भारत को टूटने का खतरा भी हमें दिखाया जाता था| लोग
बोर हो चुके थे| कोई उम्मीद नहीं थी जिसके सहारे लोग बिना लाठी खाए, बिना मार खाए
शासन की नींव हिला डाले| सरकार को ये सोंचने को मजबूर किया जाए की आखिर उनकी जनता
उस मुद्दे पर सोचती क्या थी? शायद कोई नहीं जानता था की आगे क्या होने वाला है?
देश में इंटरनेट चलानेवालों की तादाद 2009 के बाद काफी तेज़ी
से बढ़ी| देश का युवा नौजवान कौतहुलवश फेसबुक, ट्विटर से जुड़ता चला गया और शायद जब
मैं भी सोशल मीडिया से जुड़ा था तो दोस्तों के देखा-देखी ही| वर्ष 2013 आते-आते
फेसबुक पर लोग बेबाकी से अपने विचार रखने लगे लगे थे| सरकार
के निकम्मेपन की मुखर आलोचना सरकार को परेशान करने लगी थी| पहले लोग पाकिस्तान की
खुनी हिमाकत पर किसी चौक-चौराहे के बीच प्रदर्शन करते और न्यूज़ वालों से फोटो
खिंचवाकर वापस घर लौट आते थे| अगर कुछ जज्बाती युवा शासन को अपनी चीखों से उनकी
शांति-वार्ता में भंग डालने की कोशिश करता तो उनके वर्दी वाले तथाकथित रक्षक पहले
तो लाठियों से कितनों का सर फोड़ देते और हाँ न मानने पर गोलियां भी चला देते!
समूचा देश कांग्रेस के लगातार दुसरे कार्यकाल में मची लुट-खसोट से
खदबदाया हुआ था| माहौल गर्म हो रहा था और सोशल मीडिया देश में अपनी फैलती
लोकप्रियता से कामयाबी के झंडे गाड़ रहा था| फिर हम सब जानते हैं की किस तरह से
सोशल मीडिया में नरेन्द्र मोदी एक बेजोड़, साहसी और पराक्रमी नायक की तरह उभरे और
देश की सत्ता तक पहुँच गए| लोग कहते हैं की मोदी की पीएम बनने का रास्ता यूपी होकर
जाता है लेकिन वास्तविकता यही है की देश में उनकी 282 सीटों का रास्ता सोशल मीडिया
ने ही तैयार किया था, गुजरात का गुणगान किया, भरोसा दिलाया और सबसे महत्वपूर्ण एक
सच्चे हिन्दू को राजा बना डालने की रुपरेखा भी तैयार की थी|
आज भले ही भाजपा अपने बूते सत्ता पाने की ताल ठोकती हो, राम मंदिर से
किनारा करती हो, कश्मीर पर मौन बन जाती हो लेकिन सारा देश जानता है की सत्ता तक
बहने वाली नदी में अपने चेहते को नाव में बिठाकर देश का मुखर युवा, धारा बनकर
दिल्ली के सिहांसन तक बिना थके पूरे चुनाव में बहता रहा| पर अफ़सोस, की उन युवाओं
के भविष्य की चिंता किसी को नहीं है जो बेरोजगार है, घर का सामान लाकर दस-बीस
बचाकर सौ रुपये का इंटरनेट रिचार्ज कराता था उनपर इन्होने टैक्स लादकर उसकी कीमत
दुगुनी तक बढ़ा दी|
सोशल मीडिया की ताकत से भलीभांति परिचित सरकार अब अपनी आलोचना से
घबराने लगी है! क्या उसे अब युवाओं का पाक से उसी के जैसे वर्ताव करना, कश्मीर को
पाक से आजाद कराने व दिल-तोड़ देने वाली कश्मीरी पंडितों की रक्षा की बात करना
सरकार से बर्दाश्त नहीं? हमारी शांतिप्रिय सरकार और प्रधानमंत्री से अनुरोध है की
वे अपने तोता-रटंत प्रवक्ताओं और फेसबुक पेज चलने वाले एडमिनों को सलाह दें की ये
कायरों की धरती नहीं है| भले ही हम दाल के दाम बढ़ने पर गुस्सा दिखाएँ, पेट्रोल की
कीमत कम न होने की नाराजगी दिखाएँ लेकिन हम इतने भी गांधीवादी नहीं की कोई दोनों
गालों पर चांटा जड़कर चला जाए तब भी हम चुपचाप सिर झुकाकर ‘बुधं शरणम् गच्छामि’
शांति का पाठ करें| याद रहे की हम उस सनातन धर्म के
वंशज है जो कभी किसी चींटी के गलती से दबकर मर जाने पर अफ़सोस जाहिर करता है लेकिन
धर्म के लिए या देश के लिए किसी की जान ले लेना उससे भी श्रेष्ठ समझता है| इसलिए
किसी को टमाटर या प्याज की आड़ में युद्ध न लड़ सकने की देशभक्ति पर सवाल उठाने का
किसी को क्या अधिकार है?
पठानकोट में अभी क्या हुआ? मालदा में अभी क्या हुआ, पूर्णिया में क्या
हुआ? कोई नहीं जानता था! सब के मुंह पर पट्टी बाँधी जा चुकी थी| लेकिन वक्त रहते
सोशल मीडिया ने उस पट्टी को खोला| लोगों को पल-पल की वास्तविक हकीकत से रूबरू
कराया और युवा गुस्से से उबलने लगा| अंततः मीडिया और सरकार मजबूर हो गयी| कई कठिन
मौकों पर सोशल मीडिया अंधे राजनीतिक भक्तों के लिए छड़ी का सहारा बनी है| राजदीप,
बरखा जैसे सेक्युलरों को सवाल के सहारे कंपकंपी छुड़ा देना हमारी फितरत रहेगी जबतक
सहिष्णुता के दलालों को बिना जांचे-परखे जहर उगलने से पहले सोशल मीडिया का खौफ न
हो जाए| हाँ सोशल मीडिया में अफवाह फ़ैलाने वाले भी बहुत ऐसे है जो इस राष्ट्र को
हमेशा बर्बाद करने की महत्वाकांक्षा पाले मौके की तलाश में बैठे हैं| लेकिन ‘अखंड
भारत’ का प्रायोजन साधू-संतों का नहीं है, बल्कि युवा नौजवानों का है| जो सेक्युलर
हैं, सामने वाले से बराबरी का बर्ताव करने का क्षमता रखता है और इनमें भी कुछ कायर
और डरपोक भी हैं| गुण के साथ अवगुण तो प्रकृति का नियम ही है|
खैर सोशल मीडिया भारत की वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में
अहम रोल निभा रहा है उसमें न तो पूर्वाग्रह से ग्रसित असहिष्णुओं के लिए कोई जगह
है और न ही इस महान भारत पर राज करते रहे की मंशा पाले नेताओं के लिए, जिनके लिए
देश से ज्यादा राजनीतिक नफा-नुकसान ज्यादा मायने रखता है| हमें किसी से देशभक्ति
का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए| क्योंकि हम सेक्युलर हैं, आधुनिक हैं और शांतिप्रिय भी,
लेकिन वक्त आने पर हम चरखे से भी शिकार कर सकते हैं..... (और... हम सवाल उठाते आये हैं और उठाते
रहेंगे, तभी तो गलतियाँ कम होंगी... और हाँ अच्छे कामों की प्रशंसा भी कर दिया
करेंगे...है ना!)
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना (बहुत गुस्सा आता है जब किसी की
देशभक्ति पर
प्याज और दाल के सहारे ऊँगली उठाई जाती है| महत्वकांक्षाओं और
उम्मीदों के सहारे जीनेवाले हम युवा गिलहरी की भाँति ही सही लेकिन सुधार और
आत्मसम्मान के सेतु को विकसित करने में बेशक अपनी भूमिका निभाते रहेंगे और
मुखरता-बेबाकी से अपने ब्लॉग ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) पर लिखते रहेंगे....)अपना प्यार हमें इसी तरह देते रहिएगा...
प्याज और दाल के सहारे ऊँगली उठाई जाती है| महत्वकांक्षाओं और उम्मीदों के सहारे जीनेवाले हम युवा गिलहरी की भाँति ही सही लेकिन सुधार और आत्मसम्मान के सेतु को विकसित करने में बेशक अपनी भूमिका निभाते रहेंगे और मुखरता-बेबाकी से अपने ब्लॉग ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) पर लिखते रहेंगे....)अपना प्यार हमें इसी तरह देते रहिएगा...
No comments:
Post a Comment