20 January 2016

हाँ भैया, बिहार में गोलियों की बौछार है...

रंगदारी, लूट, मर्डर जैसे शब्दों की दहशत बिहारवासियों के मन-मस्तिष्क पर फिर से छाने लगी है| क्या वाकई बिहार जंगलराज की तरफ लौट रहा है? या लूट-हत्या जैसी घटनाएं पहले भी होती थी लेकिन इस बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना विरोधियों की साजिश हो सकती है की लालू सत्ता में बने हैं, इसलिए बिहार की दशा-दिशा बदली नज़र आ रही है! तमाम सवाल उठ रहे हैं नीतीश के कुशल नेतृत्व पर| सच ये है की राजधानी पटना की सड़कों पर रात 9 से 10 बजते-बजते रास्ते सुनसान पड़ने लगे हैं, कुत्ते की भौंकने की गूंजें सन्नाटे को चीरती हुई शहर के आलीशान खिडकियों से टकराकर प्रतिध्वनि पैदा करने लगी है| तमाम मोहल्ले वासी जरा सी आहट पर चौंक उठते हैं| चोरों के आतंक की ख़बरें नियमित कार्यक्रम की तरह अखबार में जगह बनाए हुए है| हर एक चौक-चौराहे पर डंडे लिए सिपाही खड़े होते हैं, जैसे किसी गाय-भैंस को रोकना हो| सीसीटीवी कैमरे लगे हैं यहाँ तक की इन पहरेदारों की रात में जांच करने खुद एसएसपी या डीआईजी अक्सर निकलते रहते हैं| कुल मिलाकर सुशासन का नारा कमजोर पड़ने लगा है और यदि आगे भी यही स्थिति रही तो यक़ीनन ये नारा अपने वीरगति को प्राप्त हो जाएगा|

दरभंगा में सरेआम दो इंजीनियर को गोलियों से भून देना, वैशाली में दारोगा की गोली मारकर हत्या करना हो या पटना में सरेआम दूकान में घुसकर स्वर्ण व्यवसायी को गोली मार देना, सारी घटनायों में अधिकतर वजह रंगदारी ही है| दो बैंकों में लगातार दो दिन लूट मचा पाना कतई संभव नहीं हो पाता, जबतक क़ानून का राज होता- पुलिस का खौफ होता| पुलिस के वरीय अधिकारियों के तबादले मात्र से मुख्यमंत्री अपने जिम्मेदारियों से इतिश्री नहीं कर सकते| उनकी छवि राज्य में सुशासन लाने की है जिसके लिए जनता ने उन्हें वोट भी दिया और सत्ता भी दिलाई| पुलिस-प्रशासन में राजनीतिक हक्षतेप का इतिहास काफी पुराना रहा है, पर मुख्यमंत्री के खुली छुट देने के बावजूद भी बड़े-बड़े गुंडों को पकड़ना तो दूर उनपर मुक़दमे दर्ज करने में पुलिस के पसीने छूटने लगते हैं| अगर ऐसा ही था तो क्यों  एक मामले में जदयू की मौजूदा विधायक के पति को पुलिस ने गिरफ्तार करके थाने में उसके साथ फोटो शूट करा रहे थे?

‘लालू इज किंग’ के उद्घोष के साथ लालू की राजद अध्यक्ष पद पर दिखावे के लिए ताजपोशी की गई| ‘राजद’ गरीबों की पार्टी है, जिसकी मीटिंग शहर के फाइव स्टार होटलों में होती है| बेशक, लालू किंग हैं अगर नहीं हैं तो किंग मेकर जरूर हैं\ किंग ही मानिए क्योंकि दोनों राजकुमारों की ताजपोशी भी हो चुकी है| चाहे उन राजकुमारों को भले ही तलवार चलाना न आता हो, घुड़सवारी न आती हो या राज-काज चलाना न आता हो, लेकिन राजा तो वही बनेगे क्यूंकि राजा की बेटे जो हैं| सैनिक है न तलवार चलाने के लिए! उनका हर आदेश राज्य की जनता को मानने होगा चाहे वे इसे चाहें या न चाहें| यही सच है बिहार की जीवंत राजपरिवार के पिछड़े राजनीति की| लालू कितनी भी बार पिछड़ों को अधिकार दिलाने का श्रेय खुद को देकर ताल ठोकते रहें लेकिन सिर्फ अधिकार ही नहीं दिया बल्कि लाठी-डंडे, गोली, बन्दुक चला डालने की पूरी आजादी भी दी| 15 सालों में बिहार लहूलुहान हो गया, चलने लायक भी नहीं था| अहंकार रोम-रोम से टपकता था की ‘जबतक रहेगा समोसे में आलू, तबतक रहेगा बिहार में लालू’|

Image result for bihar blood crime imageहालात जिस तरीके से बदल रहे हैं उसका श्रेय किसे जाता है ये तो जनता तय करेगी, लेकिन अगले 5 साल के बाद ही| तबतक उसे सबकुछ सहना होगा, देखना होगा| बेशक क्यूंकि जनता ने खुद पर राज करने वालों को खुद से ही चुना है| एक समय था जब माओ ने कहा था की सत्ता बंदूक की नाली से निकलती है| पर वर्मान दौर में बंदूक की नली से पैसे निकालकर पूंजीवाद को भी बढ़ाया जा रहा है वही बंदूक की नली से समाजवाद को दबाया भी जा रही है| उससे भी ज्यादा असहनीय पीड़ा नेताओं के बेलगाम जुबान देते हैं| और उससे भी ज्यादा दर्द पत्रकारों के राज-भक्ति से होती है| 
इंतजार हम सभी को है की बिहार की धरती देश की अघोषित राजनीतिक आपातकाल को कब तक झेलती है, जिसमें सत्ता का नशा भी है तो सत्ता से दूर रहने का गम भी और उसे पाने की ललक भी चाहे कितना भी खून बहे...

लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...


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