24 November 2022

न्यायतंत्र

डी वाई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के नये मुख्य न्यायाधीश बने ! यह जानकारी बेहद दिलचस्प है कि उनके पिता वाई चंद्रचूड़ भी भारत के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं..

ये कोई व्यंग नहीं है.. सच्चाई है देखिए और सिस्टम को नज़दीक से समझिये !

मेरा इशारा सीधा और स्पष्ट है की भारत की जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनी गई संसद के पास आज कॉलेज़ियम का कोई विकल्प नहीं है ! एक स्वघोषित शक्तिशाली संस्था के सामने सरकारें पंगु दिखती है..

ये किसकी नाकामी है की लोकतंत्र की रक्षा करने वाला यह अंग जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं है..

कोई सिटीजन चार्टर यहाँ लागू नहीं होता की न्याय की सर्विस आपको कितने दिनों में प्रदान की जाएगी, और अगर सर्विस डिलीवर नहीं हुई तो जनता के पास क्या अतिरिक्त विकल्प दिये गये ! सेवा की गारंटी यहाँ नहीं मिलती..

लोकसभा, राज्यसभा के क़रीब 800 सांसदों और राष्ट्रपति की सहमति से बना हर एक क़ानून आज 3 या 5 व्यक्ति विशेष द्वारा परखी जाती है ! अपनी विचारधारा के अनुसार फिट नहीं बैठी तो क़ानून अवैध हो जाता है..

इनके लिए बने NJAC को ये ख़ुद अवैध घोषित कर देते हैं..

बावजूद इसके की एक विस्तृत तंत्र संसद के अंदर जाँच पड़ताल के लिए पहले से बनी है.. JPC और डिपार्टमेंटल पार्लियामेंट्री कमेटी जैसी व्यवस्था इनके ज्ञान के सामने कुछ नहीं हैं..

कई डिसिशन पढ़ो तो ऐसा प्रतीत होता है की ये देश चलाना चाहते हैं, क़ानून लिखना चाहते हैं… चाहते हैं की पब्लिक नेताओं जैसी इज्जत दे, देखते ही जयकारे लगाने शुरू कर दे.. इनके विचारों को सुनकर जनता लहालोट हो जाये..

मगर अफ़सोस, नेता पब्लिक सेंटीमेंट के मामले में हज़ार गालियाँ मतदाताओं से खा लेंगे लेकिन इन मामलों में एकाधिकार किसी को नहीं देते !

लार्ड साहब को उनकी चहारदीवारी के बाहर कोई वैल्यू नहीं देता, ख़ुन्न्स में IAS IPS को हाज़िर करा डाँटते दिखते.. लेकिन ये अफ़सर भी घाघ.. डाँट सुन लेंगे मगर पब्लिक में भौकाल ख़ुद का ही रखेंगे, उसमें कोई शेयरिंग नहीं करते !

न्यायपालिका का जनता के प्रति उत्तरदायी न होना, भारत के लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर रहा है ! एक अपारदर्शी और मेघावी लोगों से अन्याय करने वाले चयन तंत्र अपना कर रखना बहुत ख़तरनाक है.. जनता को जस्टिस डिलीवरी करने की जगह अधिकतम समय बेवजह के मटकी, पटाखे आदि में लगे रहना फिर ऊपर से दो महीने की ख़ुद से छुट्टी घोषित करके जनता के पैसे से मस्ती सैर सपाटा करना उद्देश दिखता है !

वंशवाद का ट्रेंड ऐसा है की नेता भी एक बार को शर्मा जाए.. फिर भी नेता सेट करने में बहुत मेहनत करता है और अपने लौंडे को शुरू से ही फील्ड में उतार कर रखता है… सेवा भावना सिखाता है…

जब से इंटरनेट आया है तब से नेतागीरी बहुत टफ़ काम हो चला है..

ज्यूडिशरी बहुत बड़े सुधार की माँग कर रही है.. एक चुनी हुई सरकार का यह दायित्व है की एक ऐसी संस्था जिसपर न्याय करने की ज़िम्मेदारी है वह अपने दायित्वों का निर्वहन के लिए हर वक्त जनता के प्रति उत्तरदायी हो.. उसके संवैधानिक अधिकार या writ की शक्ति अपने निजी कुंठा के लिए इस्तेमाल करने की जगह उसका दायरा बने ! writ, चुनावी विवाद और मानवाधिकार हनन आदि के मामले के अतिरिक्त अन्य किसी भी मामले में बेवजह संसद के काम में दख़लंदाज़ी रोकनी होगी !

क्योंकि ये चुनकर नहीं आते.. इन्हें जनता के बीच नहीं जाना होता.. चोर हो लुटेरा हो जो भी है हमारा नेता हमारे सामने झुकता है, खरी खोटी सुनाओ तो सह लेता न की कंटेम्प्ट की धमकी देता है !

इसलिए एक जबावदेह और punctual ज्यूडीशरी की बेहद ज़रूरत इस राष्ट्र को है.. अन्यथा 3 या 5 व्यक्ति के निर्णयों से हमारे क़ानून तय होते रहेंगे और ये राष्ट्र को अपने हिसाब से नियंत्रित करने की कोशिश करते रहेंगे…

 

No comments:

Post a Comment