24 November 2022

लिव इन

लिव इन रिलेशन का बढ़ता चलन लड़कों की तुलना में लड़कियों के लिए ज़्यादा घातक है. मॉडर्न लाइफस्टाइल और कूल दिखने की सनक में लड़कियाँ फँसती जा रही है. ये अमेरिकन, ब्रिटिश क्रिश्चियन कल्चर को अपनाने की धुन में भूल जाती है की इन भारतीय युवतियों का पालन पोषण भारतीय समाज में हुआ है और यहाँ के मूल्यों, समाज के नियम एकाध परसेंट भी अगर डीएनए में रह गये तब शुरू होता है स्त्री मन और ब्रेन में इमोशनल महत्वकांक्षा का खेल.

इतना आसान भी नहीं है की दुनिया के सबसे शानदार सभ्यता के मूल्यों को एक जन्म में कोई मिटा पाये यह लगभग असंभव बात है.

पूरा का पूरा तंत्र एक दूसरे से इतना गुँथा हुआ है की परिवार, त्योहार, रिश्ते, नाते जन्म से ही दिमाग़ में इनबिल्ट होए रहते है..

बाद में भले आधुनिक बन गये, बीच पर धूँप सेंकने वाला कल्चर पसंद आने लगे, लिव इन में रहो.. मौज करो, शराब पिओ, नाईट क्लब जॉइन करो नाचो.. मतलब फ़ुल वोक बनी होती है.

मगर एक वक्त आता है जब लड़कियों को चुल्ल मचती है विवाह की..

बच्चे का शौक़ उबाल मारता है, रिश्तों की फ़िक्र होने लगती है. क्योंकि यह सपने तो प्राकृतिक रूप से इनबिल्ट होती है उसके अंदर.

अब उसकी उम्मीदें पुरुष से बंधने लगती है की पार्टनर उसे अपनाये.. इस रिश्ते को मान्यता दे.

बस यही से खेल बिगड़ता है. जबकि ब्रिटिश अमेरिकन कल्चर की महिलाओं में ये भावना जल्दी नहीं आती, ये उनके संस्कृति के मूल में नहीं है. वहाँ पुरुष भी आज़ाद होते, आज इसके साथ कल कोई और..

यहाँ के लड़कों के भी सपने दस दस गर्लफ्रेंड घुमाने और पार्टनर बनाने से कम थोड़ी ना होती. चूँकि नर की प्रकृति ही है ऐसा और इसे अमानवीय भी नहीं कह सकते.

सनातन संस्कृति ऐसी उद्दंडता से बांध कर रखती है इसलिए हम सभ्य बने घूमे रहे..

सामाजिक पतन का डर है जानते हैं की ऐसा करेंगे तो समाज लहुलुहान कर देगा.. इसलिए मजबूरी में बंध कर सही रास्ते पर चल रहे हैं.

जैसे ही इस समाज का कोई व्यक्ति वोक कल्चर में घुसा या कूल ड्यूड बनकर वोक गर्ल्स का साथ देने लगा,

समझ लीजिए वो भेड़िया बन गया..

उसे कोई मतलब नहीं की स्त्री को स्त्री समझेगा, कोई फ़र्क़ नहीं की किसी को रिश्ते निभाने है, घर बसाना है. समाज से कटे पुरुषों के दिल में इमोशन की कोई जगह नहीं होती.

उसकी प्रकृति वैसे भी एक के साथ जीवन काटने की नहीं होती, क्योंकि पुरुष का स्वभाव बहूस्त्रीवाद नेचर की है.

ले देकर उसे ही भुगतना है जो आज मॉडर्न बन रही है, इंटर कास्ट तो छोड़िए इंटर रिलिजन शादियों के लिए पागल हुए जा रही है. सनातन और सिमेटिक धर्मों में नार्थ और साउथ पोल जैसा अंतर है.

सिमेटिक धर्मों में करुणा दया की जगह नहीं होती, रेगिस्तानी कल्चर से उत्पन्न विश्वास में हमेशा कट्टरता रहेगी क्योंकि वहाँ खाने के लिये फसल नहीं उपजती थी, जीवहत्या कर मांस भक्षण एकमात्र विकल्प था..

इसलिए 35 टुकड़े किए जाने की एकाध कहानी वायरल हो पाती है अन्यथा उनके लिए ये आम बात होती है..

लड़कियों के लिए जितनी आज़ादी यहाँ की सोसाइटी ने दे रखी है उतना किस मिडल ईस्ट या अरब पाक सोसाइटी में है सर्च करके देख लेना चाहिए. वेस्ट से तुलना करेंगे तो पति को दस अलग अलग महिलाओं से शेयर करने लायक़ सोच भी रख लेना.

भारत का समाज बहुत लिबरल है, इसलिए घूँघट पर्दा प्रथा कब का उठ गया. हमारा समाज लड़कियों को जॉब करने के लिए ख़ुद प्रोत्साहित करता दिखता है.

मॉडर्न ड्रेस, मॉडर्न लाइफस्टाइल भी स्वीकार्य हो चुका है कोई रोक टोक नहीं..

लेकिन सेम रिलिजन में भी लिव इन जैसे मसलों पर लड़कियों को सौ बार सोंचना चाहिए.. हो सकता है सुंदरता के बल पर शुरू के 10-15 वर्ष अच्छे बीते लेकिन जिस दिन सुंदरता ढलेगी, चेहरे पर झुर्रियों आयेंगी, बाल चुएँगे तब देखना स्ट्रगल क्या होता है..

पुरुष का क्या है उसका सबसे बड़ा हथियार पैसा रहेगा तो 62 वर्ष में भी सुन्दरियाँ लाइन में होगी..

लेकिन तुम्हारी सुन्दरता गई और पार्टनर बहकेगा तब तुम्हारा साथ देने को ये समाज खड़ा नहीं मिलेगा.. बहुत अकेला फील होगा.. समाज को छोड़ने वाले अक्सर सुसाइड से स्वयं का अंत कर लेते हैं…

जीवन में इतना बेसिक ज्ञान होना बहुत ज़रूरी है की संकट आने पर परिवार और समाज पीछे खड़ा मिले…

❤️❤️❤️

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