24 November 2022

शंकराचार्य

सनातन संस्कृति के सर्वोच्य चार पीठों के प्रधान शंकराचार्य के रूप में जाने जाते हैं. उन्हें प्रत्येक पीठ के अंदर सभी अखाड़ों के प्रमुख माना जाता है. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के बाद ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के पद पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य नियुक्त किए जाने को लेकर सवाल उठाए गए. धर्म के रक्षक के तौर पर शंकराचार्य की उपयोगिता पर संदेह किया जा रहा है. राजनीति में लिप्त रहने के आरोप पहले भी लगते रहें हैं. चूँकि आदिशंकराचार्य द्वारा भारत के चारों कोनों में पीठ की स्थापना की गयी और अखाड़ों के नागाओं को सनातन सेना माना गया.

हम जैसे बेहद साधारण, भोग विलास में लिप्त लोगों के पास सनातन की संरचना और मठों अखाड़ों के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है. हाँ कभी महाकुंभ की विडीओ, तस्वीरें देख के या इधर उधर से पढ़कर सिर्फ़ अवधारणाएँ ही बना सकते. इतना तो समझ आता ही है की सामान्य मानव के लिए किसी अखाड़े में प्रवेश पाना और नागा बनना लगभग असम्भव है. कभी कोई संदेह हो और प्रक्रिया को अच्छे से जानना हो तो ढेरों विडीओ मिल जाएँगे यूटूब पर, डिस्कवरी ने बाक़ायदा कई स्पेशल शो ही बनाएँ है. रूह काँप सी उठती है.

प्रकृति जन्म के समय ही सब निर्धारित करके भेजती है, जैसे ही बालक को होश आता है वह चुपचाप निकल पड़ता है साधु बनने को. समाज लाख प्रयत्न कर करके थक जाता है लेकिन उसे रोक नहीं पाता. उसका जन्म ही सनातन को बैलेन्स करने के लिए होता है. संसार के सारी मोहमाया से दूर हिमालय की कन्दराओं में जीवन व्यतीत करने वाले साधु हमारी सनातन संस्कृति के मूल हैं.

इनके दर्शन महाकुंभ में होते हैं, दिशा समय और काल की सटीक गणना के आधार पर हर चार वर्षों में प्रयाग, उज्जैन,हरिद्वार और नासिक में आकर अमृत स्नान करते हैं. हर हिंदू देश के सभी अखाड़ों और पीठों को श्रद्धा भाव से ही देखता है. कुम्भ जाकर आशीर्वाद प्राप्त करता है, दान दक्षिणा देने में संकोच नहीं करता. परंतु आज के कालखंड में अपने धर्म के सर्वोच्य सत्ता की स्पष्ट भागीदारी चाहता है. राम मंदिर, काशी विश्वनाथ, मथुरा मामले में नए शंकराचार्य का क्या स्टैंड हैं और तीस हज़ार मंदिरों को पाने की रूपरेखा क्या है इस बात पर धूम मची है. धर्म के सर्वोच्य पद धारण कर क्या वह सनातनियों को व्यवस्थित कर पाएँगे, मुद्दों के समाधान में क्या रोल निभाएँगे पिछले वाले शंकराचार्य ने मर्यादा ऐसी बनाई की आज भी उनके बयानों पर आमलोग रीऐक्ट तक नहीं करते. राम मंदिर आंदोलन में सिर्फ़ बयानबाज़ी करते रहे.

काशी विश्वनाथ में आराध्य के शिवलिंग को सबके सामने सामान्य लोगों ने लाया. देश के सभी क़ब्ज़े वाले मंदिरों को हटाने के लिए यही सामान्य लोग एकदम पीले हुए हैं. अदालतों में विरोधियों को छिल कर रख दिया है. राम मंदिर को वापस पाया और भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है. ऐसे में अगर सनातन का कोई एक झंडाबरदार हो परंतु लोग उनकी बातों से चुटकी भर भी प्रभावित नहीं होते हों तो यह निश्चित अव्यवस्था का भाव है. जैसे प्रजा खुद ही अपने मान और सम्मान की रक्षा के लिए रण में अपने भविष्य की रक्षा के लिए लड़ रहा हो. मेरे जैसे लोगों की कोई औक़ात नहीं है की हम हज़ारों वर्षों से स्थापित परम्परा पर सवाल करें. हमें अपनी सनातन व्यवस्था का तो चुटकी भर ठीक से ज्ञान ही नहीं, अतः उसमें सुधार की बात कहाँ से करेंगे.

लेकिन एक राष्ट्र के परिपेक्ष्य में जहां दुनिया में सिर्फ़ भारत एकमात्र सनातनियों के लिए जगह है, और दुनिया में जितने भी सिमेटिक धर्म पनपे हैं उनका मूल ही मूर्तिपूजकों का विरोध है. भारत में सिर्फ़ मूर्तिपूजा के आधार पर लाखों सर काटे जाने का इतिहास कौन नहीं जानता. आज भी उनका लक्ष्य क्या है ये किससे छुपा है ?

ऐसी स्थिति में इन शंकराचार्यों के पास सनातन की रक्षा के लिए विशेष योजना होनी चाहिए. जातिवाद को तोड़े जाने और हिंदुओं को संगठित करने की स्पष्ट रूपरेखा होनी चाहिए.

चूँकि लोग अपनी लड़ाई स्वयं लड़ रहे इसलिए लोगों में पिठाधीशों के प्रति नाराज़गी जायज़ मानी जा सकती है.. हमारा सनातन जब भगवान से सवाल करने की छूट देता है तो ये शंकराचार्य तो उस व्यवस्था के छोटे से पालक भर ही हैं... 🚩🚩🚩






 

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