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17 June 2017

उपजाऊ खेतों में भूखा अन्नदाता

देश में किसानों की हो रही आर्थिक दुर्दशा भविष्य में कृषि क्षेत्र के प्रति किसानों की बेरुखी गंभीर खाधान्न संकट पैदा कर सकती है| भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के योगदान को चुनावी लाभ का अड्डा बना देना बेहद निराशाजनक है| एक कृषि प्रधान देश में किसानों की आत्महत्या साबित करती है की खेती अब फायदे की जगह घाटे और मजबूरी का सौदा बनते जा रही है| राजनीतिक रंजिश में किसानों को बलि का बकरा बनाया जाना सबसे बड़ी भूल साबित हो सकती है|

मंदसौर में किसानों के साथ जो हुआ वो कोई नयी बात नहीं है| अक्सर सरकार और किसान भिड़ते रहे हैं और अपने हक़ के लिए लड़ने वाला किसान मारा जाता रहा है| लेकिन महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश से लेकर देश के अन्य खेतिहर राज्यों में किसान आन्दोलन का बढ़ता दायरा सरकार के लिए संकट पैदा कर सकता है| मतलब साफ़ है की किसान अब कर्ज माफ़ी और न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे प्रावधानों को बेअसर मान रहे हैं| भयंकर सूखे या बाढ़ जैसे हालातों में किसानों को अपने हाल पर छोड़ना भारी पड़ रहा है| प्राकृतिक आपदाओं में किसान फसल बचाने की कोशिशों में पूरी तरह साहूकारों और सूदखोरों के चुंगुल में फंस रहे हैं| सरकार की फसल बीमा योजना धरातल पर किसी जुमले से अधिक नहीं दीखता| ऊपर से सरकारी महकमे का शिथिल और भ्रष्टाचारी रवैया इस योजना में किल ठोक देता है| ऐसा बिलकुल भी नहीं है की इस योजना का लाभ किसी को नहीं मिल रहा बल्कि इसका लाभ वो लोग उठा रहे हैं जो शिक्षित और संपन्न हैं|

कर्ज के जाल में छटपटा रहे किसानों की हालात बदतर होती जा रही है| आश्वासनों और कर्ज माफ़ी के वायदों से किसान कब तक अपना पेट भरता रहेगा? कर्ज लेने की आदत को सरकार दिन प्रति दिन बढ़ावा देती जा रही है| किसान को तो एक किलो प्याज के पचास पैसे मिल रहे हैं और उपभोक्ता उसे बाजार में तीस रूपये किलो तक खरीद रहे हैं| ये मुनाफाखोरी सरकार के अस्पष्ट नीतियों के कारण हो रही है| मुनाफाखोरी का ये खेल स्थानीय नेताओं के इशारों पर होता है जो अंदरूनी तौर पर जमाखोरी और मुनाफाखोरी को संरक्षित करते हैं| स्थानीय स्तर पर नेताओं का सहयोग न मिलना किसानों के शोषण के लिए कथित तौर पर जिम्मेदार है|
विभिन्न कृषि वैज्ञानिकों के सलाह को नजरंदाज करके राजनीतिक नफा-नुकसान हमेशा कृषि-सुधार में अड़ंगे लगाता है| सिंचाई के उचित प्रबंधन के मसले पर अरबों रूपये बहाने के बावजूद भी खेतों में पानी न के बराबर पहुँच रहा है| सरकार की मौसमी परिवर्तनों से फसलों को बचने की कोई स्पष्ट योजना अबतक नहीं दिखी है|

Image result for kisan andolanवर्तमान मोदी सरकार से किसानों को जो अपेक्षाएं है वो तीन साल गुजरने के बावजूद भी प्रभावी नहीं दिखती| न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढाकर पीठ थपथपाने के बजाये सरकार को ये देखना चाहिए की क्या किसान वास्तव में निर्धारित मूल्य पर खाधान्न बेच पा रहे हैं या उनके अफसरों की मनमानी का शिकार होकर बाजार में शोषित हो रहे हैं| स्थिति का अंदाजा सभी को है| सरकार की प्रतिबद्धता सभी को ख़बरों में दिख जाती है और कांग्रेस के वक्त भी दिख जाती थी, पर बदला क्या ये बताना जरुरी हो जाता है|

कर्जमाफी एक चुनावी हथियार है जिसका इस्तेमाल किसानों को लहूलुहान करने के लिए उसी के ऊपर किया जाता है| सबका भला हो जाता है, शौक से कर्ज लेने वालों का भी और किसानों को लुटने वालों का भी| लेकिन किसान से नहीं उबरता और न ही उबरेगा! कितना भी कोशिश कर लीजिये, कर्ज बाँट दीजिये फिर भी उसे आत्महत्या ही करना होगा| चमचे की नज़र में शौक हो सकता है पर वास्तव में वो मिट्टी के लिए दी गई कुर्बानी का एक उदाहरण बन जाता है|

खूब आयात कीजिये! सब बाहर से मंगवाइये! सस्ता पड़ता है और भारत बाजार के रूप में बड़ा भी बनता है! निवेशक आते हैं उससे खूब टैक्स वसुलिये, जनता का उद्धार कर दीजिये! किसान की क्या जरुरत है देश में! स्मार्ट बनो, खेतों में बिल्डिंग बनाओ, कंक्रीट के जंगल उगाओ और खाने के लिए भिखमंगे बन जाओ!
फिर देखो विकास किसे कहते हैं!...

लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग परकहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...

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मेरे देश की मिट्टी नेता उगले!

देश के निक्कमे किसान अनपढ़ हैं!
उसे न तो जीएम टाइप फसलों की कोई जानकारी है और न ही हाइब्रिड बीजों और तेजी से बढ़ने वाले रासायनिक दवाओं का!
जब देखो सड़क पर उतरकर सरकार को कोसते हैं!
अरे भाई मेहनत करो, नेता टाइप जैसा!
देखो कैसे कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है!
सीखो कुछ इससे!

इन सारे किसानों ने सरकार और नेताओं का हमेशा भेजा खाया है!
भाई फसल नष्ट होती है तो सरकार को ठेका देते हो क्या?
मुनाफा में से एक हिस्सा पार्टी को चंदा दे दें ये भी तो न होता तुमसे!
साले फालतू का सड़क पर उतारकर डांस करते हो!
दूसरों के खेतों से चुराई सब्जियां फेंकने का नाटक करते हो!
तुमलोगों से बड़ा ड्रामेबाज और कमीनापन का मास्टर डिग्री है भाई इधर!

चुतिया समझते हो नेताओं को तुमलोग! 
सब वसूल कर लेंगे धीरे-धीरे!
सड़क पर आकर लौंडघेरी करना छोड़ दो नहीं तो अभी छह को ठोकवाये हैं आगे से लिस्ट में एक पेज और लगेगा!

आन्दोलन-फान्दोलन से कुछ नहीं उखाडोगे मेरा! है ही नहीं कुछ क्या उखाडोगे! ही ही ही....!

संभल जाओ भाई, जनता को चुतिया बनाना बंद करो!
सीधी बात है खेत में जाओ चुपचाप जोतो, उपजाओ और बेचो! फालतुगिरी नहीं करो!
कर्ज है तो चुनाव तक इन्तजार करो, उपाय हो जाएगा 10 परसेंट पर!
ज्यादा उछलोगे तो खेत में फैक्ट्री लगवा देंगे! जो है उससे भी हाथ धो बैठोगे!
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को-ऑपरेट करो, साथ आओ, पार्टी के हित में चलो!
जनता का पैसा है तो का, लूटा दें क्या निकम्मों पर! 
फैसलिटी और विजिबिलिटी नेताओं का अधिकार है! 
चक्कर में मत पड़ो! 
और कानून संविधान का ज्ञान मत पेलो! अन्दर हो जाओगे तुरंत!

समझ लो बेटा ठंढे दिमाग से!
ज्यादा बौराओ नहीं! न तो सब बाहर से मंगवाने लगेंगे, ठंढा जाओगे तुरंत!
इसलिए कीप्स गोइंग ऑन विथ योर खेती एंड फॉलो संविधान!................


लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग परकहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...

05 July 2016

कृषि का सत्यानाश

Image result for bhartiye krishi imageभारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है| देश के ग्रामीण इलाकों में रहनेवाली आबादी भारी तौर पर कृषि पर ही आधारित है| इस देश का किसान अपनी मेहनत और परिश्रम के बल पर अनाज उगाता है, उसे सींचता है फिर भी उनकी मेहनत का मूल्य उपजाने में लगी लागत से भी कम मिलता है| अब कृषि फायदे का सौदा नहीं रहा| लोग कृषि से दूसरी क्षेत्र की ओर पलायन को मजबूर हो रहे हैं| कृषि पर निर्भर रहनेवाले लोगों की तादाद तेजी से घाट रही है| देश में 45 फीसदी यानी आधे से भी कम लोग कृषि पर निर्भर है| देश का 64% क्षेत्र खेती के लिए मानसून और बारिश की मेहरबानी पर निर्भर है| आबादी बढ़ रही है, खाधान्नों की मांग बढ़ रही है, खपत में इजाफा होने से महंगाई भी बढ़ रही है तो वहीँ सबसे चिंताजनक बात ये है की देश में कृषि योग्य जमीनें काफी तेज़ी से घट रही है| बिना किसी स्पष्ट नीतिओं के देश की कृषि विकास के अन्धानुकरण में फंसकर उसकी चमक फीकी पड़ती जा रही है| क्या कृषि के साथ हो रही नजरंदाजी वैश्वीकरण या औधोगीकरण में सहायक है या फिर हम पश्चिमी भागदौड़ और उनकी सुख-सुविधाओं के पीछे भागते-भागते अपनी कृषि की पुरातन विरासत को यूँ खो देंगे? इस तरह हमें एक भीषण और व्यापक खाधान्न संकट का सामना करना पड़ सकता है|

Image result for bhartiye krishi imageभारतीय कृषि के साथ 1960 के बाद हरित क्रांति के रूप में किये गए प्रयोग काफी सफल रहे| पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों का खाधान्न उत्पादन न केवन आश्चर्यजनक रूप से बाधा, बल्कि नये-नये रासायनिक प्रयोगों से खेती पहले की तुलना में काफी सरल भी हुई| हाइब्रिड बीजों का प्रयोग शुरू हुआ, रासायनिक उर्वरक को पारम्परिक उर्वरक की जगह बेहताशा इस्तेमाल में लाया गया, सिंचाई की व्यवस्था हुई, नये-नये कृषि यंत्रों का आविष्कार हुआ| इस तरह से हमारी कृषि वैज्ञानिक तरीके से बेहतर हो हुई पर, भविष्य में उसके परिणामों की चिंता न कर सकी| नतीजा यह हुआ की कम जगह में ज्यादा पाने की ललक किसानों पर भरी साबित हुई| इसलिए की अब मिट्टी की उर्वरता, रासायनिक तत्त्वों के बेजा इस्तेमाल से घटने लगी है| मिट्टी को मिलने वाली पोषण कीटनाशकों और खरपतवार नाशी दवाओं के कारण बंद हो गई है| नदी, तालाब व कुओं पर निर्भर पुरानी सिंचाई व्यवस्था की जगह नलकूपों, मोटरपाइपों का बेजा इस्तेमाल होने लगा और इस तरह से सूखे व जलस्तर नीचे चले जाने की समस्या शुरू हो गई|

Image result for bhartiye krishi imageपुरातन कृषि परम्परा जो पूरी तरह से प्राकृतिक स्त्रोतों पर आधारित थी उसकी जगह मानवजनित यंत्रों द्वारा उन स्त्रोतों का दोहन शुरू कर दिया गया| इस तरह से भारतीय कृषि में सम्मलित पाशुपालन, मत्स्य पालन, कीटपालन और बागवानी जैसे कृषि के स्वरूप कम होते गए या विलुप्त होने के कगार पर हैं| लोगों में विलासित बढ़ रही है, मेहनत करने के बजाए मशीनों का इस्तेमाल बढ़ रहा है| इस तरह से पारिस्थितिकी से छेड़छाड़ करने का परिणाम लोगों को अब दिखने लगा है| अगर कृषि में बढ़ रही बेरोजगारी और पलायन की स्थिति को रोकने के लिए जल्द कोई कारगर कदम न उठाये गये तो ये हमारी अर्थव्यवस्था, हमारी आबादी के लिए एक भीषण संकट का कारण बन सकती है| अगर ऐसा हुआ तो हमारा भविष्य निश्चित तौर पर कृषि की विरासत से वंचित हो सकता है... इसमें कोई दो राय नहीं...

लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...