11 March 2016

महिला हिमायती बनने का ढोंग मत रचो...

अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर देश और दुनिया के तमाम अखबार महिला सशक्तिकरण पर अपने विचारों के माध्यम से ढोंग रचाते नज़र आये| क्या अखबार, क्या मीडिया, क्या फेसबुक सब पर महिलाओं के लिए कसीदे पढ़े जा रहे थे, उनकी बेहतरी के लिए आवाज उठाने का दिखावा कर रहे थे| वैसे लोगों को भी आवाज उठाते देखा जो हर सुन्दर और हकीकत सी दिखने वाली प्रोफाइल पिक्चर पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते है|  नेताओं की बात सुनी तो हर बार की इस बार भी लगा की अब हमारे भारत को महान बनने में देर नहीं लगेगी| लेकिन अगले चैनल पर गया तो मेरी सारी उम्मीदें हर बार की तरह इस बार भी धराशाई हो गयी, इसलिए की वो चैनल ये दिखा रहा था की एक बार दिग्विजय सिंह किस तरह से एक महिला सांसद को देखकर कह रहे थे की क्या टंच माल है| ये कुछ उसी तरह है की महिलाओं की बेहतरी का जिम्मेदार इंसान ही उसकी मजबूरी का फायदा उठाता हो, उसका नाम क्या बताना? नेता तो नाम से बदनाम हैं असली मज़ा तो दिन के उजाले में तोंद के सहारे कुकर्म छिपाने वाले अफसर उठाते हैं|

Image result for women protection india imageमहिलाओं की इज्जत करें, उसे आत्मनिर्भर बनाएं, उसे लड़कों की तरह आजादी दें या महिला सशक्तिकरण, आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान, समान वेतन, वर्किंग वुमन जैसे शब्द किताबों और नेताओं की जुबानों की शोभा बनकर रह गयी है| अपने आसपास के माहौल में इन सारी शब्दों का कभी कहीं इस्तेमाल होते ही नहीं सुना| पिछले दिनों मैं इंटरनेट पर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकडें देख रहा था, उसमें मैंने महिलाओं के प्रति ऐसे-ऐसे अमानवीय अपराधों के आंकडें पाए जिसे देखकर मुझे यकीन नहीं हुआ की क्या वाकई कोई ऐसा कर सकता है? लेकिन यह सच है... देश में महिला सुरक्षा से सम्बंधित सैंकड़ों क़ानून हैं पर किस काम के? अगर ये कानून वाकई सख्त है और महिलाओं को शोषण से न्याय दिलाती है, उसे हर तरीके की आजादी देती है तो क्यूँ आज भी महिला उत्पीडन के मामले साल दर साल बढ़ते ही जा रहे हैं?

इससे क्या साबित होता है? यही की हमारी अदालत कानून के माध्यम से इन दुराचारियों के मन में खौफ पैदा करने में असमर्थ है| दोषी कौन है? महिलाओं को पुरुषों पर इल्जाम लगाने से पहले खुद में सोंचना पड़ेगा की उसकी ऐसी हालत समाज की किस मानसिकता का परिणाम है और किन-किन तरीकों से उससे निजात पायी जा सकती है| महिला अधिकार के लिए संघर्ष कर रही वीरांगनाओं को सोंचना होगा उसे कुछ करना होगा| सबसे पहले अपने नीति-निर्माताओं को जबाबदेह बनाना होगा, उससे पूछना होगा की किसकी अनुमति से और किस मानसिकता से वे लोग विज्ञापनों में महिला बदन की नुमाइश करते हैं? अंग प्रदर्शन की इजाजत देते हैं ताकि आने वाली पीढ़ी का लक्ष्य लड़की पटाना हो?

आजकल की लडकियां भी कुछ कम नहीं| आधुनिकता की दौर में अंधे होकर वे भी मॉडर्न बनना चाहती है सुन्दर दिखना चाहती है जहाँ पब है, शराब है, नशा है, प्यार है, शक है तो धोखा भी है| जिस पश्चिमी सभ्यता का वो अन्धानुकरण कर रही है वहां की लड़कियां इस ब्लैक होल से बाहर निकलने के लिए भारत की तरफ देख रही है, जहाँ 85% से अधिक विवाहों का अंत तलाक है| अलग-अलग राजनीतिक मांगों के लिए अक्सर हाथ में तख्ते लेकर प्रदर्शन करने वाली महिलाओं को कभी ये क्यूँ नहीं सूझता की समाज में टीवी और फिल्मों में अश्लीलता जघन्य अपराधों की मूल जड़ है| ये सभी चीजें लड़कों को लड़कियों से कुछ पाने के लिए प्रेरित करते हैं, एक मकसद तैयार करते हैं जिसमें डर और शर्म जैसी कोई बात ही नहीं होती|

महिला हिमायती बनाने का ढोंग रचाने वालों से मुझे सख्त नफरत है, उससे भी ज्यादा उन लड़कियों से, जो सुन्दरता को अपना हथियार बनाकर अपना उल्लू सीधा करती है, लोगों को ठगती है, उसे बेवकूफ बनती है वही उसे गलत रास्ते पर लेकर जाने की जिम्मेदार होती है| चाहे बात पहनावे की हो या लोगों को हुस्न की आजमाइश करके रिझाने की| इनसब को ठोकर लगती है तो ठीक है फिर भी उन मासूमों की क्या गलती है जिसे दुनिया की समझ नहीं| अगर लोगों के मन में कानून का तनिक भी खौफ होता तो वो ऐसी हरकतें करने से पहले सौ बार सोंचते| शायद ये लोग इसलिए नहीं डरते क्योंकि इन्हें पता है की पेट किसका नहीं होता और भूख किसे नहीं लगती...  और यहाँ तो डाल-डाल पर भूखे ही बैठे हैं...
                                                             
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...


05 March 2016

मैं ब्लॉग लिखने लायक नहीं हूँ...

लेखन मेरा कभी शौक नहीं रहा| लेकिन ब्लॉग लिखना अब मेरा जूनून बन चूका है| मुझमें लेखन की प्रतिभा शुरू से है या नहीं मैं तो नहीं जानता पर स्कुल के दिनों में वर्ग में प्रथम स्थान बेशक रहता था, क्योंकि परीक्षा के वक्त मैं जो भी लिखता उसे देखकर शिक्षक कॉपी चेक करने के अगले दिन मुझे बुलाकर मेरी प्रशंसा करते थे, हौंसला बढ़ाते थे और उसके लिए अच्छे अंक भी मुलते थे| लेखन गतिविधियां शुरू करने से पहले मैंने कभी इसके बारे में सोंचा तक नहीं था| ये ऐसे हुआ की 2014 दशहरा कलश स्थापना के दिन पता नहीं कैसे, लेकिन मेरे मन में कुछ विचार आये और मैं एकाएक मैथ बनाने वाली कॉपी के पिछले हिस्से में भारत के मंगल यां के बारे में लिखने लगा| उसे लिखने में कुछ एक-डेढ़ घंटे लग गए थे| लिखने के बाद जब मैंने उसे पढ़ा तब पहली बार मां सरस्वती ने मुझे अपनी लेखन प्रतिभा से परिचय कराया| उससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा की मैं भी अपने विचारों को इस तरीके से लिख सकता हूँ| तभी से हफ्ते में एक-दो ज्वलंत मुद्दों पर लिखने लगा|

औपचारिक रूप से मैं अपनी वेबसाइट जून 2015 में बनाई| वो भी सर के कंप्यूटर पर जहाँ मैं टाइपिंग प्रैक्टिस करने जाता था, क्यूंकि उस वक्त मेरे पास लैपटॉप नहीं था| मैंने अपनी वेबसाइट मजे-मजे में बना ली वो भी इंटरनेट से सीखकर| सच कहूँ तो जिस समय से मैंने लेखन करना शुरू किया या ब्लॉग लिखने की बात जेहन में आई, मैं जिन्दगी में कभी सोंच भी नहीं सकता था की एक दिन मैं ब्लॉग लिखूंगा और उसे 10,000 से ज्यादा लोग पढने आयेंगे वो भी 8 महीनों में| उसमें भी 3,000 से ज्यादा लोग विदेशों में मेरी वेबसाइट को खोलेंगे| सचमुच ये मेरे लिए अकल्पनीय था, असंभव सा था या एक सपने जैसा था|  आप जानना चाहेंगे की मेरी लेखन प्रतिभा कैसे विकसित होती गयी? मेरे उम्मीदों, मेरे हौंसलों को किन-किन लोगों ने पंख दिए, उसे उड़ने लायक बनाया? सब बताउंगा...

लेकिन उससे पहले बता दूँ की ब्लॉगर बनने में मुझे किन तकलीफों का सामना करना पड़ा, कैसी-कैसी आलोचनाएं सुनने को मिली? ब्लॉग पर मेरा पहला पोस्ट ‘सब पढ़ें- सब बढें, मगर कैसे’ को मोबाइल से टाइप करके जब मैंने प्रकाशित किया था तो उसे लेकर हमने अपने दोस्तों को दिखाया| मुझे उनसे प्रशंसा की अपेक्षा होती थी मगर हर बार मैं चोर बना दिया जाता| मेरे मुंह पर तो नहीं लेकिन पीठ पीछे मेरी आलोचना की जाती और उनलोगों ने धारणा बना ली थी की मैं अखबारों और इंटरनेट पर से देखकर लिखा देता हूँ| मैं अंदर से टूट जाता था ये सोचकर की जब मेरे मित्र ही मेरी लेखन प्रतिभा को चोरी का नाम देकर कलंकित कर रहे हैं तो कहीं दूर बैठा व्यक्ति मेरे विचारों पर यकीन कैसे करता होगा? उसे क्यों पढता होगा?

मैं बता दूँ की आजतक मेरे ब्लॉग लेखन की काबिलियत के बारे में मेरे घरवालों को नहीं पता है| मेरे मम्मी-पापा, दादा-दादी किसी को नहीं पता की मैं ब्लॉग लिखता हूँ| जिस डायरी में मैं यह ब्लॉग लिखता हूँ उसे कंप्यूटर पर टाइप करके अच्छी जगह छूपा देता हूँ| क्योंकि मैं नहीं चाहता की मेरी किसी प्रतिभा से किसी को कोई उम्मीद बंधें, कोई आशा करे, किसी को कोई मेरे बारे में बताये| इसलिए की मेरी उम्र देखकर वह भी चोर ही कहेगा| दैनिक भास्कर अखबार के सम्पादकीय पृष्ठ में जब बिहार की राजनीति से सम्बंधित उम्दा लेख फोटो के साथ छपा तब घरवालों को पता चलते-चलते बचा| पूछने पर यूँ ही लिखकर भेज देने की बात से घरवालों को सफाई दी| शायद आप यकीन न करें लेकिन अखबार में छपने के बाद भी कुछ ज्वलनशील परिचितों को यकीन नहीं होता था|

इन सारी चीजों को दरकिनार करते हुए मैं अपने पेज ‘कहने का मन करता है...’ पर मुखरता और बेबाकी से अपने विचार लिखता रहा| कुछ बड़े पत्रकारों, संपादकों की राय को जानता रहा| इस दौरान मैं लाइक न मिलने के बावजूद भी चुपचाप फेसबुक पर अपने ब्लॉग को मित्रों के साथ साझा करता रहा...  मैंने पहले ही कहा है की मैं उन लोगों के बारे में जरूर बताऊंगा, जिनलोगों की वजह से ही प्रतियोगिता परीक्षा की कठिन तैयारियों में से भी वक्त निकलकर ब्लॉग लिखने की ऊर्जा मिलती रही, निडरता से लोगों तक अपनी बात पहुंचता रहा...

विजय कुमार गुप्ता जी, राजेश हलवाई, मेरे मामा संतोष कुमार, दोस्त राजीव कुमार, विक्की कुमार, रौशन गुप्ता, विकास आर्यन, कृष्णा चौहान, गणेश कुमार, पारस, laxman kumar, jitu yadav, lilly sharma, shankar prasad, kalyani sir, rahul, suman और अन्य (कई का नाम नहीं ले पाया)... ये वही लोग हैं जिन्होंने लाइक और उत्साहवर्धक कमेंटों से मेरी लगातार हौंनसलाफजाई की, मेरी लेखन शैली को तीखा किया, मुझे लगातार लिखते रहने को प्रेरित किया तो मुझे एहसास कराया की मेरा लिखा भी कोई पढता है| नहीं तो मैं सोंचता था की शायद मैं ऐसा नहीं लिख पाता हूँ की कोई उसे पढ़ेगा, अपना वक्त बर्बाद करेगा...

मैं ये लेख अपने सारे मित्रों को समर्पित करता हूँ, जिन्होनें निजी जिंदगी में या फेसबुक के माध्यम से मेरे प्रति लगाव और सक्रियता दिखाकर मुझे एक ऐसा इंसान बना दिया है जो उम्र से पहले ही व्यस्क हो गया है... औरों से अलग अपने तरीके से सोंचने वाला बना दिया है... इस लायक बना दिया है की अखबार में छपने लायक लिख देता हूँ, और कई अखबारों में छपी भी है| आप सभी मित्रों को मैं जिन्दगी भर नहीं भूल सकता, जिन्होंने पश्चिम के चकाचौंध से नज़रें बचाकर मेरे ब्लॉग को अहमियत दी... बहुत-बहुत धन्यवाद...


लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना (मेरे द्वारा लिखे लेखों की संख्या 100 होने वाले हैं...

कमाना शुरू करूँगा तो शौक के लिए अपने पैसे से कुछ बेहतरीन लेखों को सम्मलित करके एक किताब छपाऊंगा और उसका नाम होगा, कहने का मन करता है...  तब पुस्तक की पहली प्रति अपने घरवालों को समर्पित करूँगा...है ना!  ब्लॉग पर आते रहिएगा...)

01 March 2016

मोदी ने मौका गंवाया

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने देश का 2016-2017 के लिए आम बजट पेश किया| नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल का तीसरा बजट प्रस्तुत किया, लेकिन इन बजटों में सरकार आर्थिकी सुधार का रोना रोने के अलावा कोई ऐसे फैसले न ले सकी जिससे देश के दूर-दराज गांवों में रहने वाली इस देश की असली आबादी झूम उठे| शाबाशी दे, वाहवाही दे या मोदी को वोट देने के फैसले से खुद पर गर्व करे| मोदी सरकार पर जनता ने लोकसभा चुनावों के वक्त जितना विश्वास दिखाया था, मोदी बदले में एक फीसदी भी इस विश्वास को हकीकत नहीं बना पाए| देश की जनता अपने नेताओं से त्याग चाहती है, बाबुओं की बाबूगिरी को ख़त्म करवाना चाहती है, जीडीपी के आंकड़ों के बजाय अपनी तरक्की चाहती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ| मैं बजट के किसी भी मुद्दे पर बात नहीं करना चाहता| क्योंकि मुझे पता है गरीबों और किसानों की बेहतरी के लिए पिछले 67 सालों से हम मुर्ख ही बने हैं| शायद इसलिए कहा जाता है की मूर्खों के देश में ठग भूखे नहीं मरते! मुझे तो हंसी आती है इस सरकार पर, की सिंचाई प्रबंधों के लिए घोषणा करके खुद ही मसीहा बनने का ताल ठोक रही है| जबकि मैंने एक अखबार में पढ़ा की पंजाब राज्य में देश के सबसे बेहतर सिंचाई प्रबंधों के बावजूद भी किसानों की आत्महत्या करने की रफ्तार दिन प्रति दिन बढती ही जा रही है|

मैंने पहले कहा था की सरकार के लिए यह बजट आखिरी मौका था और देश को भी उम्मीद थी की मोदी कोई सनसनीखेज घोषणा जरूर करेंगे| लेकिन सरकार ने देश की आर्थिकी को सुधरने की कसम खा ली है| सरकारी खर्चे कम करेंगे, लोगों की सब्सिडी कम करेंगे और राजाओं की तरह अपनी गरीब प्रजा से लगान (टैक्स) वसूलते रहेंगे, दिन पर दिन उसे बढ़ाते रहेंगे| उन पैसों से उन्हीं प्रजा के लिए तरह-तरह के इंतजाम करेंगे| उनके लिए बुलेट ट्रेन चलायेंगे, हवाई जहाज खरीदेंगे, फर्स्ट क्लास सरकारी भवनों को इंतजाम करेंगे ताकि राजकाज से जुड़े लोग ही उसकी अय्याशी करें, जनता का हक़ डकारें विदेश घूमें और मौज करें| इसलिए की सरकार को पता है की गरीब के लिए बुलेट ट्रेन के टिकट खरीदना तो दूर खाने की सोचना भी परेशानी है|
अरबों रुपये के नए संसद भवन बनायेंगे क्योंकि पुरानी भवन को गिरने का खतरा है चाहे देश के लोग मिट्टी के घरों में दबकर कीड़े-मकोड़ों की तरह मरते रहें| इनलोगों को उस तरह थोड़े न मर जाना है... कुछ अच्छा करना है...किसी का हक़ मारना है...

मोदी सरकार का ये दूसरा साल है| पिछले रिकार्डों को देखते हुए ये संभव है की अगले साल तक चुनाव के लिए लामबंदी, गन्दी बयानबाजी, आरोप-प्रत्यारोप और घटिया राजनीति का दौर शुरू हो जाएगा सिर्फ सत्ता पाने के लिए या बरकरार रखने के लिए| जब देश में बीजेपी की सरकार बनी थी तब से लोग मोदी सरकार के कुछ अच्छा कर देने की आस वक्त के साथ धूमिल होती गयी है| मोदी से त्याग करने की अपेक्षा बेमानी साबित हुई तो मंत्रियों के क्या कहने! सरकार को सबसे पहले सांसदों-मंत्रियों को दिए जाने वाली मुफ्त की सुविधायों पर डंडा चलाना चाहिए था| चूँकि देश के 100% संसद या तो लखपति होते हैं या तो करोड़पति-अरबपति| और राजनीति में तो लोग जनता की सेवा करने के लिए आते हैं फिर इन करोड़पतियों को गरीब के पसीने की कमाई से गैर-जरूरी भत्ते क्यों दिए जाएँ? मुफ्त का मकान क्यों मिले? अपनी गाडी रखने की औकात वालों को मुफ्त में गाड़ियां क्यों दें? उनके बच्चे निजी स्कूलों में क्यूँ पढ़ें, सरकारी स्कूलों में क्यूँ नहीं? वो अपना इलाज़ विदेश में क्यूँ कराएँगे, देश में क्यूँ नहीं?

कुछ नहीं होने वाला| क्योंकि जिस पर हम नाज़ करते थे वही पीएम बन जाने के बाद भव्य एसी युक्त बंगले में रहने लगे, लाव-लश्कर के साथ मर्सिडीज से संसद जाने लगे और वे सब कुछ करने लगे जो जनता को कभी नहीं सुहाती और  जिसकी आलोचना करके जनता में विश्वास पैदा किया था| फिर भी मोदी की मंशा पर मुझे तनिक भी शक नहीं हो सकता, सैकड़ों कारण हैं| बेरोजगारों, गरीबों और अशिक्षितों की बेहतरी के प्रयास किये जाने चाहिए| उन्हें इनसब के अँधेरे में जुमलों के अलावा कुछ टिमटिमाता-जगमगाता हुआ सा दिखाने की कोशिश की जानी चाहिए ताकि भरोसा बना रहे, विश्वास बरकरार रहे| यह नहीं की उसी के बहाने अगला चुनाव जितने की कोशिश करने लगें क्योंकि जनता द्वारा नकारे व्यक्ति से देश की आर्थिकी की योजना बनाना जनता से मजाक है| जनता मोदी के फैसलों से झूम ही नहीं सकती, इसलिए की मोदी लहर में भी जेटली का 2 लाख वोटों से चुनाव हारना भगवान का स्पष्ट इशारा था... फिर तो भगवान से विपरीत जाने से लुटिया डूबेगी ही...


लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना (मैंने मोदी को वोट बेशक दिया था, लेकिन वोट डालने के बाद हर किसी को सख्त हो जाना चाहिए, सवाल पूछिये| किसी पार्टी का फैन मन बनिये... क्योंकि फैन राजनीति का नया गुंडा है...) Please visit my blog:-  ashwani4u.blogspot.com

आरक्षण के लिए कुछ भी करेंगे...

जाटों का गुस्सा किस कदर सरकार और आम जनता का नुकसान कर सकती है, उन्होंने देश और दुनिया को दिखा दिया| खेती पर निर्भर रहने वाली जातियां ऐसे-ऐसे मांग तो बेशक करेगी, क्योंकि खेती कोई फायदे का सौदा तो नहीं रहा| और जब सरकार वोट के लिए हर किसी को 27 फीसदी वाले ओबीसी कोटे में एडजस्ट करने की राजनीतिक कोशिश करती है तो जाट क्यूँ न करे| पटेलजाट व उत्तर प्रदेश-बिहार के भूमिहार सहित कई अग्रिम जातियां हैं, वो भी काफी लम्बे अरसे से ओबीसी में शामिल करने की मांग कर रहें हैं। पटेल और जाट अपने समुदाय के लोगों के खेतिहर होने के दावे करता है लेकिन, उससे ज्यादा खेतिहर पंजाब-हरियाणा के जाट, यूपी-बिहार के भूमिहार हैं। ऐसे में अगर जाटों को आरक्षण का फायदा दिया गया तो ये सभी जातियां मैदान में कुदेंगी और स्थिति को संभालना बिलकुल मुश्किल हो जाएगा। मोदी सरकार के लिए जाटों को संभालना बड़ी मुश्किल साबित होने वाली है| मान लें की अगर मोदी ने जाटों को ओबीसी वाले कोटे में आरक्षण दे दी तो क्या जो जातियां पहले से इस कोटे का फायदा उठा रही है वो क्या चुप बैठे रहेगी? क्या वो यूँ ही अपने हिस्से की नौकरी दूसरों को देना पसंद करेगी? बिलकुल नहीं!


आरक्षण देश के ज्वलंत मुद्दों में अहम स्थान रखता है। क्या आरक्षण से सचमुच देश के गरीब, पिछड़ों, शोषितों का भला हुआ है? कितने गरीब इससे लाभान्वित हुए, जिनके सर पर छत नहीं खाने को रोटी नहीं है?
गरीबी जाति देखकर नहीं आती, जाति के आधार पर किसी को दलित या शोषित कहना बेमानी है, उसका पैमाना आर्थिक आधार पर बनाया जाना चाहिए ! जिस गरीब के घर में दो वक्त की रोटी नहीं, सर छिपाने के लिए छत नहीं, बच्चो को पहनने के लिए कपडे नहीं, उसे आरक्षण नहीं, आर्थिक मदद चाहिए!

आरक्षण देने के लिए परिवार की निर्धनता को पैमाना नहीं बनाया गया, बल्कि थोक के भाव से विभिन्न जातियों को आरक्षण दे डाले गए। सरकार ऐसा कोई आयोग क्यों नहीं बनाती, जो समाज के विभिन्न तबकों की पिछड़ेपन का आंकड़ा तैयार करे और जो इस पैमाने से बाहर हो उन्हें इसके दायरे  बाहर का रास्ता दिखाए। अगर ऐसा होता भी है तो इससे स्थिति एकदम नहीं सुधर जायेगी।  ऐसे में सरकार सरकारी नौकरियों में वोटबैंक के हिसाब से तैयार किये गएआरक्षण के नियमों को बदल कर शिक्षा में समानता लाये, उसमें आरक्षण दे।  देश में जिन्हे दलित, महदलित व पिछड़ा माना गया वे उस ऊंचाई को नहीं हासिल कर पाये जिसका सपना देखा गया था।  जब गरीब के बच्चों को उस स्तर  शिक्षा नहीं मिल पाती जो स्तर कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का होता है तो वैसे लोगों के लिए आरक्षण का कोई मतलब नहीं रह जाता।  सवाल है, पायलट बनने के लिए आरक्षण क्यों नहीं दिया जाता? क्या आरक्षण के बदौलत आये पायलट के जहाज में वही नेता-मंत्री उड़ सकते हैं, जो आरक्षण को निहायती जरूरी बताते हैं?  क्या आरक्षण के दम पर आये डॉक्टरों से वही नेता अपना ईलाज करा सकता है, जो खुद को पिछड़ों-शोषितों का नेता घोषित करता है? लेकिन क्या देश चलाने वाले अफसरों के लिए प्रतिभा से ज्यादा जरूरी उनकी जाती है? आखिर ये देश आगे कैसे बढ़ेगा? जहाँ पिछड़ा बनने की होड़ लगी हो!

Image result for jaat reservation imageअगर सरकार आरक्षण पर सचमुच गंभीर है तो उसे इसमें व्यापक सुधार करने होंगे। आरक्षण का लाभ सिर्फ उन्हें दिया जाए जो इसके वास्तविक हकदार हैं। इसका दायरा सीमित करके योग्यता को तवज्जो दिया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो उन लोगों के लिए आरक्षण कोई मायने नहीं रखती जिनका काम बस कमाना-खाना और सो जाना है। इसका  असली लाभ तो रसूखदार, आर्थिक रूप से संपन्न लोग ही उठाते हैं, जो गरीबी का मुखौटा पहन गरीबों के अधिकारों को लहूलुहान करते रहते हैं..... 

लेखक:- अश्वनी कुमार (पटना), जो एक स्वतंत्र टिप्पणीकार बनना चाहता है.… 



28 February 2016

Reservation burning India…

A fact about the Reservation System in India that “The Reservation is of the leader, It is for the leader and that is by the leader”.  Similarly, The current reservation system failed to implemented adequate facilities and ensure equal opportunity to whom, which has no any way to rise in the social condition, occupation and social status.  There is nothing exist.  Unfortunately, Reservation is the one of the most profitable issue to enjoy political benefits by leaders.  No one has real anxiousity about how to improve people from poverty, helplessness, bad social status.  No, all of the politician enjoy luxurious life in free government houses, vehicles, free manpower and other benefits using tax paid by these poors.
                                                             
                                                A Research conducted by an orgnisation revealed that 90% of family’s lives in village doesn’t earn 5,000 rupees in one month.  However country’s approximately 40% population lives below the poverty level means, those can’t have more than 29 rupees a day.  Who are these people?  Who is the responsible for their plight?  In 67 years old Republic Nation can’t legislate any profitable plan for these family which don’t have shed, don’t have eat foods and don’t have cloth to get into.  Who is responsible, people or government?
                                                                                    
Image result for reservation agitation image                                                All the law makers except exception often loud voice on behalf of Reservation.  But, Why do they hesitate to clarify and show any data about reservation facility used by which type of family, Were they really eligible for reservation?  I know very well that the reservation criteria is fully politicalized.  It is heaven for buttery family, which is totally able.  However, they gazing to catch every opportunity in the name of caste.  Why not they take it?  Our government is seems to be on back foot in the front of opposition uproar over every trifling issues.
                  
                                                          No doubt that the political lethargy surely create many agitation like Jaat, Bhumihar and probably create many in future.  Altogether, anything happen related to reservation, our political system promised that they have not consider every point of reservation scheme until their personal political benefit revealed.


Writer:-  Ashwani kumar, patna (who ever want to become an
independent remarker…)