07 April 2021

सहनशीलता

 

राष्ट्र के गद्दारों को बेहद सौम्य तरीके से निपटाने की कला में मोदी-शाह के आगे चाणक्य भी शर्मा जाए..

हम जब सोशल मीडिया पर उबल रहे होते तो उनकी सहनशीलता चरस बो रही होती है.. फिर धीरे धीरे सारे कीटाणु खुद सेनिटाइजर में जाकर डुबकी लगा आते..

हमने अर्णब के मुद्दे पर, पालघर पर काफी उछल कुद मचाई, लोगों ने एक्शन न लेने के कारण सरकार को शब्दों से छलनी कर दिया !

फिर इधर आन्दोलनजीवी पनपे.. भयंकर उपद्रव मची दिल्ली में, लाल किला पर चढ़ाई देख राष्ट्रवादियों के आंखों में खून उतर गया..

मगर सरकार को कोई फर्क नहीं ! ट्विटर पर ट्रोल हुए, नाकामी ट्रेंड हुई.. मगर जंगल में शांति बरकरार रही !

हम राष्ट्रवादी किट-पतंगों के शोर मचाने से जंगल के सन्नाटे को उतना ही फर्क पड़ता जितना आंदोलन करने से मोदी को ! मतलब घण्टा फर्क नही पड़ता..

जंगल का राजा सोया रहा.. हम चिल्लाते रहे, जंगल लूट रहा मगर शेर सोया ही रहा.. शेर की दहाड़ सुनने के लिए बहुत इंतजार किया मगर उसने एक छींक तक नही ली !

शेर को निकम्मा मानकर धिक्कारा और फिर सभी अपने काम में लग गए..

बीच बीच में शेर आंखें खोलकर बस देखता रहा..

जंगल का शोर अब थमने लगा.. राष्ट्रवादियों को रोज नई नई सूचनाएं अब मिलने लगी, कई जगह पर लुटेरे गड्ढे में फंसे पड़े हैं.. कोई पेड़ की लटकती जड़ों में फंसा है, किसी को सबसे ऊंची डाल से लटका के छोड़ रखा गया है..

मगर शेर अब तक सभाएं करने में ही व्यस्त है.. क्योंकि जंगल के कुछ हिस्से में चुनाव चल रहा ! शेर की पूरी टीम को किसी मामले से कोई मतलब नहीं है !

जंगल का राजा अब भी निकम्मा है ! वो तो भला हो पेड़ों का, गड्ढों का जो हमलावरों से खुद को बचाया, अपने जंगल को बचाया..

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