प्रकृति की सबसे खूबसूरत कृति नारी को
माना जाता रहा है | अनादि काल से हमारी परम्पराओं की पोषक, हमारी सभ्यता की जननी एवं भारतवर्ष की संस्कृति की रक्षक नारी शक्ति ही
रही है |
दुनिया की सबसे पुरानी सिंधु सभ्यता के
साक्ष्य मातृसत्तात्मक समाज की है |
वैदिक काल में लोपामुद्रा, गार्गी,
मैत्रीई एवं अपाला जैसी विदुषी नारी का उल्लेख मिलता है, जिन्होने बड़े बड़े प्रकांड विद्वानों को ज्ञान से पराजित किया | नारी सशक्तिकरण का इतना शानदार उदाहरण दुनिया की किसी सभ्यता में नहीं
मिलती | यह उदाहरण तब की है जब 1500 ई
पू के लगभग का वह दौर जहां इन विदुषियों का डंका बज रहा था, उस
वक्त पश्चिम और मध्य एशिया में मानव जाति चलना ही सीख रही थी |
फिर मौर्य काल के दौरान प्रशासन में
स्त्रियॉं की स्थिति भी काफी अच्छी थी, उन्हें गण, सभा इत्यादि में बराबरी का दर्जा प्राप्त था और स्त्रियाँ काफी बढ़ चढ़ कर
हिस्सा भी लिया करती थी |
धीरे-धीरे मध्य एशिया की बर्बर
काबिलियाई लोगों ने रक्तपात मचाया और लोग महिलाओं को उनकी सुरक्षा के लिए
चहरदीवारी के अंदर रखने को मजबूर हो गए | इतिहास में हमें
महिलाओं के पिछड़ेपन की जो कहानी रची गयी है वो शायद ही सच हो, क्योंकि हमारे यहाँ माता मानकर पूजे जाने वाली कन्याओं की ऐसी दोयम स्थिति
सोचे जाने तक की अनुमति हमारे वेद, पुराण भी नहीं देते |
नारियों के विरुद्ध शोषण और अत्याचार
को रोकने को रोकने के लिए हमारे तमाम महापुरुषों ने सामाजिक कुरीतियों को दूर किया
और अब हम technology और globlisation के दौर में
पुनः उस स्थिति में पहुँच चुके हैं जहां से नारियों को फिर से बराबरी का अवसर मिल
रहा |
समाज के हमेशा से दो चेहरे रहे हैं, समाज
खासकर जब पित्रसतात्मक हो जाता है तो उसकी मानसिकता काफी जघन्य हो जाती है |
ऐसे लोग न केवल नारियों के लिए संकट बनकर उभरते हैं बल्कि ऐसे लोग
देश, समाज और संस्कृति की नींव को ही काट डालना चाहते |
फिर उसी समाज का एक चेहरा तब दिखता जब शक्ति की पुजा की जाती या
बेटियों की बिदाई करते चेहरे को देखा जाता |
देश के कई क्षेत्रों में अशिक्षा की
वजह से आज भी लड़कियों की पैरों में बेड़ियाँ जकड़ने का प्रयास जारी है | घरेलू
हिंसा इसी समाज की सच्चाई है... लैंगिक भेदभाव, छेड़छाड़ जैसी
राक्षसी प्रवृति इसी समाज की घिनौनी सच्चाई है...
नारी शक्ति को पश्चिम के अंधानुकरण से
बचना होगा | जब वे हमारी संस्कृति को अब तक सीख रहे हमारी आर्ट ऑफ
लिविंग को सीख रहे तो हमें उनसे सीखने की कोई जरूरत नहीं | नहीं
तो पश्चिम के पुरुषों की तरह यहाँ भी तलाक, धोखे जैसे शब्दों
का प्रचलन बढ़ता जाएगा |
पुरुषों की बागडोर महिलाओं के हाथों
में ही होती, उसे नियंत्रण में रखना, ज़िम्मेवार
बनाना माँ के रूप में नारी की ही जबावदेही होती |
बेटियों को स्वच्छंद आकाश में उड़ने दो
! समाज बगुले की तरह ताकता रहेगा…
नारी खुद को कम न आंके ! इनकी हकीकत मर्दों से कई गुना बेहतर और प्रभावी है !
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