लोकतंत्र दुनिया का एक बेहतरीन मैकेनिज़्म है ।
अब सर्वेसर्वा बनने की चाहत या खुद को भगवान समझ लेना अति ही कहा जायेगा ।
ज्यूडिशियरी के अपने दायरे हैं, यह एक व्यवस्था से बंधी है तो इसे अपने दायरे में रहकर चलना और अपनी मर्यादा की रक्षा खुद को ही करने की जिम्मेदारी है ।
अब ये न हो कि शासन को यानी जनता के चुने गए प्रतिनिधि को हर बात में उँगली की जाए.. वो चोर है, डाकू है या महात्मा है जो भी है उसे हमने चुना है । 5 साल बाद वही हमारे सामने सिर झुकाने आता है, और बेचारे हमेशा जनता के दबाब में ही काम करते हैं.. शायद इसलिए चोर लुटेरे नेता होने के बावजूद भी भारत का लोकतंत्र अन्य देशों के मुकाबले सर्वाधिक सफल है ।
इनके पास अवमानना जैसी कोई शक्ति नहीं होती । बेचारे औरतों तक से सुर्ख मिर्च टाइप गालियां सुनकर भी मुस्काते ही रहते..
तो पब्लिक इनकी ही सुनेगी और लगाव बेशक इनसे ही रहेगा ।
अब ज्यूडिशियरी शासन बनना चाहेगा या खुद को अपुन ही भगवान वाली attitude में हो जाएगा तो विधायिका से टकराव होना स्वाभाविक ही है । उसमें भी विधायिका महाराज जी की हो तो डंके बजा ही देंगे ।
हालिया दिनों में न्यायतंत्र अपने मूल स्वरूप से भटक कर उलूल जलूल के मुद्दों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करता दिख रहा ।
मटके कितने ऊंचे हो, फ़िल्म कौन सी चलेगी, कौन से मंदिर में कौन घुसेगा, लॉकडाउन कब कैसे लगेगा इत्यादि चीजें न्यायपालिका की मूल भावना के विपरीत है ।
उन्हें संविधान, मूल अधिकारों की रक्षा और मुकदमों के त्वरित निष्पादन पर ध्यान केंद्रित करनी चाहिए ।
इस देश में संसद और राज्यों में विधानमंडल सर्वोपरि है । वो जनता का शासन है और लोकप्रतिनिधि होने के नाते शासन प्रशासन और लोकहित के सारे मामले उनके क्षेत्राधिकार का है अतः न्यायालय का बेवजह आदेश दे देना ये एक तरह से अतिक्रमण की ही स्थिति है ।
लॉक डाउन का आदेश दे देना बेहद आसान है मगर उनसे प्रभावित होने वाली आजीविका की रक्षा की गारंटी कौन देगा । वो जनता के चुने हुए प्रतिनिधि नहीं हैं बल्कि एक प्रमोशन और वंशानुगत परंपरा के मूर्ति हैं, ऐसे में उनके बेवजह हर मामले में अपुन ही भगवान मानने की आदत से बचना चाहिए ।
क्या कोर्ट ने पिछले एक साल से बिना काम के वेतन नहीं लिया ? क्या उसके एवज में जनता के गाढ़ी कमाई के टैक्स के पैसे उन पर बेफिजूल खर्च नहीं हुए । मानते हैं कि हमारी न्यायपालिका हमारे संविधान और मूल अधिकारों की रक्षक है तो बने रहिये न । कई मामलों में तो जनता अपने न्यायपालिका के आदेशों पर गर्व भी महसूस करती है । मगर शासन के कार्यों में सोच विचार कर उन्हें एक सेफ dignity मेन्टेन करनी चाहिए ताकि विश्वसनीयता बनी रहे ।
आज योगी सरकार ने HC के लॉकडाउन का आदेश न मानकर जनभावना के अनुरूप निर्णय लिया है और इसके खिलाफ SC में SLP भी फ़ाइल कर दी है । न्यायपालिका को चुनी हुई सरकार के अधिकारों के सम्मान करना होगा, अगर नहीं
तो फिर एक वैध और बहुमत वाली सरकार ही सर्वशक्तिमान मुद्रा में आकर हर फैसले को पलट कानून बना देगी... क्योंकि लोकतंत्र में जनता का दिया सुदर्शन चक्र उसी के पास ही तो होता है...
#जय_हिंद 🇮🇳
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