17 April 2021

● इम्युनिटी पावर ●


कोरोना के दूसरी लहर ने देश के पूरे हेल्थ सिस्टम को लगभग घुटनों के बल बैठा डाला है । सरकार इस बार लाचार नजर आ रही है । पब्लिक का क्या है जब तक हो न जाये बिना मास्क टहलेंगे और बकलोली करते रहेंगे । 
सरकार की अपनी सोच है, उसे हेल्थ सिस्टम को बचाये रखने की जितनी चिंता है उससे कहीं ज्यादा चुनाव की है । अपनी दिक्कत नहीं होनी चाहिए बाकी वो जनता के लिए जितना हो रहा बेचारे कर ही रहे, मगर चुनाव होगा, रोड शो होगा ही ।
भले ही एसएससी या रेलवे का रिजल्ट देने में 3 साल लग जाये लेकिन चुनाव का रिजल्ट 3 दिन में आना चाहिए ।

इस बार कोरोना की रफ्तार काफी तेज है । मतलब एक हफ्ते में इसने देश के तमाम राज्यों को अफरातफरी की स्थिति में खड़ा करके रख दिया । 
देश का हेल्थ सिस्टम रेंगते दिख रहा । पेड़ों को काटकर आलीशान इमारतें बनाने वाले बुद्धिजीवी ऑक्सीजन के लिए भटक रहे हैं । खासकर भयावह स्थिति महानगरों और बड़े शहरों में अत्यधिक है ।

गाँव क्षेत्र की आबोहवा का कोई मुकाबला नहीं । वहां बसे लोगों में इसका प्रभाव लगभग नगण्य है । 
उनकी इम्युनिटी, उनके खेत-खलिहान हैं । उनके बगीचे में लगे पेड़ हैं जिसके फल खा खा कर वे बड़े हुए । खेतों के ताजे साग-सब्जी उनका स्वास्थ्य बीमा की तरह ख्याल रखती । गाय का ताजा दूध उनकी लिए एंटीबाडी तैयार रखता है । 
बचपन से पेड़ों पर चढ़ने की कला उनके लिए जिम से कई गुना बढ़िया स्वास्थ्य देता है । नदियों में तैरना ही उनके लिए मोरिसस बिच का मज़ा देता । भैंस-गाय को खेतों में चराना ही उनके लिए मर्सिडीज को चलाने जैसा फीलिंग देता । 
पहले तो ढिबरी और लालटेन ही हमलोगों के लिए पब या डीजे लाइट से कम थोड़े न था ।

मूलभूत सुविधाओं से हमेशा जूझता गाँव आज उन महानगरों को मुंह चिढ़ा रहा । आधुनिक बनना तो ठीक है मगर अत्याधुनिक बनने के चक्कर में जड़ से ही कट चुके । अब बिना जड़ के तो सर्वाइव करना मुश्किल ही होगा न । 
मज़े से हमने प्रकृति को नष्ट कर कंक्रीट के जंगल उगा दिए..
जंगलों को हमने इकॉनमी का पार्ट बना दिया । लिमिटलेस दोहन किया । अब उसी के ऑक्सीजन सूंघने को हमें लाखों खर्चने पड़ रहे तब भी नहीं मिल रहा ।

विकासवाद ठीक है मगर इकॉनमी बचानी है तो तना काटना पहला ऑप्शन होना चाहिए न कि जड़ । 
अगर इस बार लॉकडाउन लगा तो समझ लीजिए हमने जड़ काटने को चुना है । जड़ के रूप में हमारी श्रम शक्ति और निरीह आबादी जिसे 10 10 घण्टे काम करने, दिनभर रिक्शा-ठेला खींचने के बाद बमुश्किल दो वक्त की रोटी मिलती है उसे हम काट देंगे । 
देश के 10% अमीरों के पास देश का कुल 77% धन संचित है । तो सोचिए कि अगर लॉकडाउन लगा तो ये ड्रेन ऑफ वेल्थ ही होगा जो जड़ से तना रूपी अमीरों की तरफ़ सारी एनर्जी चली जायेगी ।
अगर जड़ सुख तो पेड़ सूखते देर नही लगती । ये दुनिया के मुगालते हैं कि अमीरों से ही अर्थव्यवस्था चलती । मगर ये श्रमिक और गरीब आबादी ही मिट्टी से nutritions, जल, लवण तने की ओर सप्लाई करती है । 
भारत की सरकार अपने लोकतांत्रिक स्वरूप को बरकरार रखते हुए सही स्टैंड पर कायम रहे, उसे जड़ों का इस बार ज्यादा ख्याल रखना है । वो तबतक मिट्टी के अंदर तमाम वायरस etc से सेफ है जबतक लॉकडाउन नही लगता...

#जय_हिन्द 🇮🇳

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