भारत अपने आंतरिक मोर्चे पर पड़ोसी देशों से होने वाले अवैध घुसपैठियों के संकट से जूझ रहा है | खासकर म्यांमार और बांग्लादेश की सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था की कमी के चलते यह संकट और गहरा गया है | म्यांमार में सैन्य शासन और राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति में वहां के नागरिकों में भय व्याप्त होने लगा है, जबकि बांग्लादेश के अवैध घुसपैठिए कई दशकों से भारत के सीमावर्ती राज्यों में बसे चले जा रहे हैं और कई जिलों में तो इनकी आबादी सघन हो चली है ।
जबकि म्यांमार का संकट वहां के रोहिंग्या के उपद्रव से शुरू होकर भारत में
अवैध शरणार्थी बन मौज लूटने तक की है ।
भारत विश्व के कुल भूमि का मात्र 2.4% पर अधिकार रखता है और जो पहले से
ही दुनिया की कुल आबादी का 16.7% के बोझ से कराह रहा है उस
स्थिति में शरणार्थी संकट से घिर जाना किसी देश के लिए एक बड़ी राजनीतिक और सैन्य
चुनौती से कम नहीं है ।
क्योंकि भारत में एक लोकतांत्रिक शासन प्रणाली होने के कारण सरकार की आमदनी
का स्रोत नियत होती है । और जरूरत पड़ने पर टैक्स लगाने में सरकारों के पसीने छूट
जाते । उस स्थिति में दूसरे देशों के अवैध नागरिकों का दबाव हमें आर्थिक चुनौती की
तरफ धकेल देता है । साथ ही राजनीतिक कारणों से उन्हें प्रतिरक्षा मिलने लगती और
धीरे-धीरे यह हमारी कानून व्यवस्था के लिए संकट पैदा कर डालती है ।
भारत प्रारंभ से ही संयुक्त राष्ट्र के किसी शरणार्थी संधि या कन्वेंशन में
दिलचस्पी नहीं रखता । देश की सरकार अपने नागरिकों के चुकाए गए टैक्सों से उनके
अधिकारों का हनन नहीं कर सकता तथा उसे खैरात में बेमतलब किसी पर खर्च नही कर सकता
।
सरकार अपने नागरिकों के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाती है, ऐसे में उन
सुविधाओं का अवैध शरणार्थियों तक विस्तार एक तरह से 'ड्रेन
ऑफ वेल्थ' की तरह है और यह हमारी आर्थिकी में एक प्रकार से
सुराख का काम करती है ।
भारत की पश्चिमी सीमा पर विस्थापित हुए लोग अपने देश में अल्पसंख्यक
धार्मिक-राजनीतिक आधार पर सताए गए हैं । अतः वहां भारत ने मानवीय मूल्यों को समझते
हुए उन्हें वैध शरणार्थी बनने की योजना पर अमल किया है ।
जबकि पूर्वी सीमा की स्थिति एकदम उलट है वहां के ज्यादातर अवैध शरणार्थी
वहां उस देश के बहुसंख्यक समुदाय के हैं वे अपने आतंकवादी कृत्यों और भारत में
आराम से गुजर बसर करने की चाहत से घुसपैठ कर रहे ।
यह स्थिति अच्छे-अच्छे देशों को बर्बाद करने के लिए काफी है आज रोहंगियों
की बड़ी आबादी कश्मीर तक पहुंच चुकी है । पश्चिम बंगाल से दिल्ली तक
सड़कों-पटरियों के किनारे झुग्गी झोपड़ी डालकर बस चुके हैं । असम और पश्चिम बंगाल
के सीमावर्ती जिलों में स्थिति कितनी भयावह होगी इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है ।
भारत में इनकी आबादी की वृद्धि दर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है
कि पिछले 2 सालों में इनकी आबादी 4 गुना तक बढ़ गई है ।
धीरे-धीरे इनकी संलिप्तता धार्मिक उन्माद से लेकर देश विरोधी कृत्य तक
बढ़ने लगी है जो भारत के लिए घरेलू मोर्चे पर एक नया संकट के रूप में पनप रहा है ।
भारत सरकार को अपने नागरिकों की जीवन प्रत्याशा बचाने हेतु तत्काल इस
समस्या पर कदम उठाने की जरूरत है ।
पूर्वी सीमा पर सुगम आवाजाही पर फौरन रोक लगाते हुए बॉर्डर को सील करना
होगा ।
बेहिसाब बढ़ती आबादी पर सख्त नियंत्रण लगाई जाए और UIDAI के युग में यह
बेहद आसान है ।
इसमें टेक्नोलॉजी की मदद ली जाए और सेटेलाइट के माध्यम से बॉर्डर की
निगरानी हेतु तंत्र बनाया जाए । पहले लीकेज को रोका जाए फिर टंकी के अंदर को गंदगी
को बाहर किया जाए...
भारत के नागरिकों की कोई सूची देश के पास ना रहना एक बड़ी चूक है और तमाम
राजनीतिक विरोध को दरकिनार कर तुरंत व्यापक व्यवस्था बनाए जाने की आवश्यकता है ।
भारत पहले से गरीब देश माना जाता रहा है और अब जब आर्थिक मोर्चे पर हम आगे
बढ़ने लगे हैं तो अवैध शरणार्थियों की बड़ी आबादी संकट बढ़ कर उभर रही है ।
अगर भारत आने वाले कुछ सालों में इन अवैध घुसपैठियों को रोकने में कामयाब
नहीं हुआ तो हमें अगले दो-तीन दशक तक महाशक्ति बनने के सपने को छोड़ देना होगा ।
हमारी मूल आबादी निरीह बनकर यूं ही पिसती रहेगी और दूसरे लोग किसी के
पीढ़ियों द्वारा संचित अर्थव्यवस्था पर खुलेआम ऐश करता रहेगा...
जय हिन्द
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