भारत की मौजूदा सामरिक और आर्थिक ताकत महाशक्ति बनने के अनुकूल है|
जनसँख्या, सेना, एटमी ताकत, मिसाइल इत्यादि भी इसका समर्थन करती है, फिर भी दुनिया
भारत को महाशक्ति मानने से इनकार क्यूँ कर रही है? हमें हर चीज के लिए अमेरिका,
रूस या चीन का सर्टिफिकेट क्यों चाहिए? संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी
सदस्यता तो दूर NSG जैसे संगठनों का हिस्सा बनने को हमें अमेरिका, चीन और पश्चिमी
देशों की चमचागिरी करनी पड़ रही है, उनसे मिन्नतें करनी पड़ रही है| उन देशों का
इतिहास भारत के आगे विश्वशांति के आसपास भी नहीं फटकता| जिनका आस्तित्व, हकीकत
साम्यवाद या पूंजीवाद के अत्याचारों से ओतप्रोत है| बावजूद इसके चीन और कुछ अन्य
देशों ने भारत विरोध का स्वर पैदा किया, शांति के लिए खतरा बताया|
अक्सर सोशल मीडिया पर चीनी सामानों का बहिष्कार करने के नारे दिख जाते
हैं| पर क्या हम सचमुच ऐसा कर सकते हैं? बिलकुल नहीं! क्योंकि जिस देश में लोग
मुफ्त या सस्ती सामानों को खरीदने के लिए दुसरे शहर तक जाकर सैकड़ों रूपये का
पेट्रोल जला सकते हैं, किसी को भी अपना मत यूँ ही मुफ्त के वायदे के लिए दे सकते
हैं तो वो भला क्यूँ न इन सस्ते चीनी सामानों को खरीदेंगें| क्यों देशभक्ति के
झूठे नारों में अपना पॉकेट ढीला करे| सोचिये की अगर सरकार ने चीन को सबक सिखाने की
सोची और उसके सामानों के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया तो क्या होगा? इससे चीन की
आर्थिकी पर जितना प्रभाव पड़ेगा उससे कहीं ज्यादा प्रभाव भारत की मासूम और गरीब
जनता पर पड़ेगा| जरूरी सामानों की कमी से कालाबाजारी बढ़ेगी, उससे कीमतें बढेंगी और
हम उन्हीं सामानों को चीन विरोध के नाम पर महंगा खरीदकर पश्चिमी देशों से खुद का
शोषण करवाएंगे|
भारत की अर्थव्यवस्था बिना किसी मुकम्मल योजना के एक बड़ा
बाजार बनता चला जा रहा है| इससे ऐसा भी नहीं है की हम दुनिया को आकर्षित कर रहें
हैं या दुनिया हम पर निर्भर हो जायेगी| इससे हम खुद को उन देशों पर निर्भर कर
लेंगें| जहाँ अमेरिका जैसे महत्वकांक्षी देशों ने इस पर अपनी नज़रें टिका ली है,
तभी वो भारत की हर दावेदारी का बन्दर की भाँति रोटी तौलकर अपना हित साध रहा है|
चीन का विरोध करने का साहस न तो हम सामरिक तकाते से जुटा सकते हैं और
न ही आर्थिक नीतियों से| क्यूंकि इस विरोध से चीन से ज्यादा हम मुश्किल में फँस
सकते हैं| चीन विरोध की गुंजाइश केवल कुटनीतिक स्तर पर संभव है| दुनिया की धुरी
बनने की चाहत चीन और अमेरिका में एक-दुसरे को नीचा और ताकतवार दिखाने की होड़ है| इस परिदृश्य में भारत को एक अनुभवी कूटनीतिज्ञ की तरह पेश आकर
चीन की वैश्विक नेता की छवि को कम करना होगा, उसकी दिवार को अपनी अर्थवयवस्था के
टिमटिमाते तारे से नीची रखने को बाध्य करना होगा| जहाँ पाकिस्तान परस्ती या भारत
विरोध की कोई गुंजाइश न बचे| तभी हमारा बाज़ार, हमारी महत्वकांक्षा हमें महाशक्ति
बनने का मार्ग प्रशस्त करेगी|
नहीं तो हम यूँ ही फडफडाते, कोसते और सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाते रह
जायेंगें...
लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं...
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