27 April 2021

● सिस्टम कैसे सुधरे ●

 

देश महामारी की गंभीर संकटों के दौर से गुजर रहा है !

ऐसे में इस महामारी के दौरान जिस कारण भी अफरातफरी की स्थिति बनी उस समस्या को अब जड़ से हटा डालने का वक्त आ गया है !

हमें उस सारे दीर्घकालिक उपाय रचने होंगे जो हमने ना तो कभी सोचा था ना हमारे पास उस तरह का कोई प्लान था..

मगर इस संकट ने हमें बहुत कुछ सिखा कर छोड़ा है !

महामारी से निपटने हेतु सरकार को समस्याओं के ऊपर एक शिकारी की तरह टूट पड़ना होगा ! 

इस सिस्टम में कितने छेद हैं इस देश की सारी जनता को सरेआम दिख गया !

अब हमें एक शानदार एक्शन प्लान पर काम करना होगा.. 

सरकार को अपना मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर व्यापक पैमाने पर बढ़ाना होगा ! जिस तरह पिछले दो दशक में हमने इंजीनियरिंग सेक्टर में एक क्रांति ला कर रख दी उस तरह से मेडिकल की दुनिया में करके रख देना है !

हर जिला अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में बदलो !

सारी पढ़ाई संबंधित फैसिलिटी ऑनलाइन करो !

बड़ी संख्या में देश के अंदर मेडिकल कॉलेजों के जाल बुन दो ! सारी जगह एकसाथ ऑनलाइन पढ़ाई.. मरीज वो लोकल सरकारी स्वास्थ केंद्र पर देखेगा और सीखेगा !

जिस तरह से पिछले दो दशकों में हमने एक एक घर से इंजीनियर पैदा किया है उसी तरह से हर एक गली मोहल्ले से हमें डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ निकालने होंगे !

शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार करना होगा.. 

बोरी भर भर के नंबर देते फिरोगे शिक्षा व्यवस्था का यही हाल होगा ! बीमार पड़ने से पहले इंजेक्शन और ऑक्सीजन लुटेरे ही समाज को मिलेंगे.. दिमाग विकसित हुआ नहीं और नैतिकता कंक्रीट के जंगलों में कभी इनके अंदर पनपी ही नहीं, ऐसे बच्चे तो भेड़ ही बनेंगे ! समझेंगे घंटा नहीं और ऑब्जेक्टिव प्रश्न पर तुक्का लगा कर, तोते की तरह आंसर रट के 99 फीसद ले आएंगे ! फिर दो नौकरी...

हमें एक सुदृढ़ प्रणाली विकसित करनी होगी जैसे आर्मी में बिना फिटनेस के बहाली नहीं  उसी तरह से बिना पढ़े साले को डिग्री मत दो ! मार्क्स छेनी से नहीं बुलडोजर से कट करो.. व्यवहारिक ज्ञान पर शिक्षा को आधारित बनाओ ! उस लायक नहीं बन रहा तो पंचर वाले, मिस्त्री वाले काम में शुरू से लगा दो GDP बढ़ाएगा..

छात्रों को एनाटॉमी जैसे विषयों को गंभीरता से पढ़ने पर मजबूर करो.. मानव शरीर के बारे में एक एक बेसिक चीज से उन्हें स्कूलों में ही परिचित कराओ.. विशेषज्ञ डॉक्टरों से ऑनलाइन पढ़ाने की व्यवस्था करो.. 

बॉटनी की क्लासेज भी अच्छे साइंटिस्ट से कराओ.. उसे वीडियो दिखा दिखा के पढ़ाओ ! उसका सिलेबस और हार्ड करो.. 

बच्चों के बाल मन में ही प्रकृति प्रेम सींच डालो.. 

एकदम लौंडे को आर्मी टाइप की सख्त पर्यावरण की ट्रेनिंग दो.. 

हमें ऐसी मानसिकता वाले बच्चे चाहिए जो पेड़ को अपने परिवार का हिस्सा समझे ! समझदार बने, लोगों को समझाए, जागरूक बनाये...

नाकाम अफसरों को जबरन रिटायर करो ! 

हर साल एक टेस्ट का आयोजन हो जिसमें उनके त्वरित निर्णय क्षमता को परखा जाए वो भी आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के द्वारा ! DA के लिए चिल्ला रहे अधिकांश गुटखा खैनीखोर कर्मचारी उस पद के काबिल ही नहीं जहां बैठ अभी वह कुर्सी तोड़ रहा.. प्रोडक्टिविटी एकदम जीरो ! जोंक की तरह चिपक कोई योजना लागू ही नही होने देता ! ये सिस्टम के फंगस है.. इनके लिए AI तकनीक ही एंटीसेप्टिक बनेगा ! ई ऑफिस जल्दी लागू हो जाये तो सारी हरामखोरी निकल जायेगी...

हम दो हमारे 10 पर तत्काल प्रतिबंध लगाओ.. सारी समस्या की जड़ यही है । सारा फसाद, अव्यवस्था का जड़ यही है ! 

अशिक्षा का बहाना नहीं चलेगा, लाइन से पैदा करोगे तो अपनी गारंटी पर कर साले ! एक पैसा भी अपने टैक्स का तुम्हारी मुफ्तखोरी पर सरकार को खर्चने नहीं देंगे ! कुत्ते की जिंदगी जी, ऐसे लोगों को मदद करना भी मानवता की श्रेणी में नहीं आता !

दुनिया के अंदर मेडिकल फार्मा इंडस्ट्री की मोनोपोली की कमर तोड़ देनी है । भारत अब इस क्षेत्र की महाशक्ति बन जानी चाहिए..

सरकार को आईडिया ना हो या थिंकटैंक बाबूगिरी से ऊपर न सोच पाता हो तो अपने mygov पोर्टल पर भी जनता से सुझाव मांगे । हेल्पलाइन नंबर जारी करें.. 

इस तरह जनता के जमीनी फीडबैक के अनुसार हमें एक बेहतरीन पॉलिसी बनानी होगी जो न केवल मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर में भारत को विकसित बनाएं बल्कि हमारे आयुर्वेद, योगा और संयमित जीवनशैली के सहारे हम दुनिया के सामने एक शानदार उदाहरण बन कर प्रस्तुत हो...

#जय_हिंद 🇮🇳



21 April 2021

● रामनवमी 🚩🚩🚩 ●


कभी भविष्य में जब आज के वर्तमान का इतिहास लिखा जाएगा, तो उसके केंद्र बिंदु 'श्री राम' ही होंगे ।
श्री राम हिन्दू आस्था के अगुआ हैं । देश की राजनीति के अहम सूत्रधार और अपने नाम से सनातन परंपरा को जीवंत रखने वाले आराध्य देव हैं हमारे राम । 
हम कितने सौभाग्यशाली हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की कई पीढियां जिस राम मंदिर के लिए म्लेच्छों से बड़ी वीरता से लड़ी, परंतु अंतिम विजय हमने देखा...
हम इस भव्य राम मंदिर को पुनः भारतभूमि पर उठते देख रहे..

जब भी अयोध्या की चर्चा होती, हिन्दू आस्था का रोम रोम राम मंदिर के लिए सिहर उठता था.. 
TV के अभिनेता को राम मान पूजने वाले सनातनी विचारधारा और किस धर्म में मिलेगी ? 
भारत वीरों की भूमि ऐसे थोड़ी कही जाती ! 600 साल की बर्बर लड़ाई के बाद हमनें अधर्मियों से विजय पायी है । 
कोई राम के आगे झुकने वाला राजा को हमने सत्ता पर बिठाया.. जो रामराज्य की परिकल्पना से शासन चलाता है...

श्री राम हमारे आदर्श हैं, वे समस्त मानव जाति को सदाचार और अनुशासन का मार्गदर्शन करने वाले मर्यादापुरुषोत्तम हैं । 
माता कौशल्या से प्राकट्य होने वाले श्रीराम, जिन्हें देखने साक्षात शिव आते और 'भय प्रकट कृपाला...' रचते । 
राजकुमार होकर भी जो गुरुकुल में पढ़ने जाते, जो सभी सुख सुविधाओं को त्याग वन को प्रस्थान कर जाते.. जो शबरी के जूठे बैर खाते.. नंगे पांव जंगल जंगल चल आगे समुद्र को भी थर्रा देते..
जिनके नाम से पत्थर तक तैर जाते.. 
हनुमान जिनके भक्त हों, लक्ष्मण जैसा सेवक - भरत जैसा भाई और सीता जैसी पतिव्रता पत्नी जो साक्षात माँ लक्ष्मी हो तो कुकर्मी रावण को मारा जाना निश्चित ही तो है...

जब तुलसीदास ने अवधी में रामचरितमानस को रचा तो उन्होंने हमारे राम का परिचय ऐसे कराया कि सीधे हमारे पूर्वजों के हृदय में उतार दिया...
अपने रघुनंदन के जन्मस्थली को पाने के लिए तब भी हम श्रीराम के दिखाए रास्ते पर ही चले । धैर्य और मर्यादा का पालन करते हुए हमने लक्ष्य को पाया है.. बर्बरता रहती तो राक्षसों का नरसंहार कब का हो जाता..
आज हमने ऐसा राजा सत्ता पर बिठाया है जो राम जन्मभूमि की नींव रखता है.. प्रभु के सामने साक्षात दंडवत हो जाता है..
एक आह्वान पर अरबों रुपये प्रभु के सामने हमनें डाल दिया । 
इतने सभ्य तरीके से राम मंदिर निर्माण होना हमारी सौम्यता को दिखाता है... कितना गर्व होता है हमें अपनी सनातन संस्कृति पर..
जहां स्वयं श्रीमन नारायण ने श्रीराम अवतार लेकर भारतभूमि को धन्य कर दिया...

सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं... 🚩🚩🚩

हरि अनंत हरि कथा अनन्ता...

20 April 2021

● न्यायपालिका vs विधायिका ●


लोकतंत्र दुनिया का एक बेहतरीन मैकेनिज़्म है । 

अब सर्वेसर्वा बनने की चाहत या खुद को भगवान समझ लेना अति ही कहा जायेगा । 

ज्यूडिशियरी के अपने दायरे हैं, यह एक व्यवस्था से बंधी है तो इसे अपने दायरे में रहकर चलना और अपनी मर्यादा की रक्षा खुद को ही करने की जिम्मेदारी है ।

अब ये न हो कि शासन को यानी जनता के चुने गए प्रतिनिधि को हर बात में उँगली की जाए.. वो चोर है, डाकू है या महात्मा है जो भी है उसे हमने चुना है । 5 साल बाद वही हमारे सामने सिर झुकाने आता है, और बेचारे हमेशा जनता के दबाब में ही काम करते हैं.. शायद इसलिए चोर लुटेरे नेता होने के बावजूद भी भारत का लोकतंत्र अन्य देशों के मुकाबले सर्वाधिक सफल है ।


इनके पास अवमानना जैसी कोई शक्ति नहीं होती । बेचारे औरतों तक से सुर्ख मिर्च टाइप गालियां सुनकर भी मुस्काते ही रहते.. 

तो पब्लिक इनकी ही सुनेगी और लगाव बेशक इनसे ही रहेगा ।

अब ज्यूडिशियरी शासन बनना चाहेगा या खुद को अपुन ही भगवान वाली attitude में हो जाएगा तो विधायिका से टकराव होना स्वाभाविक ही है । उसमें भी विधायिका महाराज जी की हो तो डंके बजा ही देंगे ।

हालिया दिनों में न्यायतंत्र अपने मूल स्वरूप से भटक कर उलूल जलूल के मुद्दों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करता दिख रहा । 

मटके कितने ऊंचे हो, फ़िल्म कौन सी चलेगी, कौन से मंदिर में कौन घुसेगा, लॉकडाउन कब कैसे लगेगा इत्यादि चीजें न्यायपालिका की मूल भावना के विपरीत है । 

उन्हें संविधान, मूल अधिकारों की रक्षा और मुकदमों के त्वरित निष्पादन पर ध्यान केंद्रित करनी चाहिए । 


इस देश में संसद और राज्यों में विधानमंडल सर्वोपरि है । वो जनता का शासन है और लोकप्रतिनिधि होने के नाते शासन प्रशासन और लोकहित के सारे मामले उनके क्षेत्राधिकार का है अतः न्यायालय का बेवजह आदेश दे देना ये एक तरह से अतिक्रमण की ही स्थिति है ।

लॉक डाउन का आदेश दे देना बेहद आसान है मगर उनसे प्रभावित होने वाली आजीविका की रक्षा की गारंटी कौन देगा । वो जनता के चुने हुए प्रतिनिधि नहीं हैं बल्कि एक प्रमोशन और वंशानुगत परंपरा के मूर्ति हैं, ऐसे में उनके बेवजह हर मामले में अपुन ही भगवान मानने की आदत से बचना चाहिए । 


क्या कोर्ट ने पिछले एक साल से बिना काम के वेतन नहीं लिया ? क्या उसके एवज में जनता के गाढ़ी कमाई के टैक्स के पैसे उन पर बेफिजूल खर्च नहीं हुए । मानते हैं कि हमारी न्यायपालिका हमारे संविधान और मूल अधिकारों की रक्षक है तो बने रहिये न । कई मामलों में तो जनता अपने न्यायपालिका के आदेशों पर गर्व भी महसूस करती है । मगर शासन के कार्यों में सोच विचार कर उन्हें एक सेफ dignity मेन्टेन करनी चाहिए ताकि विश्वसनीयता बनी रहे ।


आज योगी सरकार ने HC के लॉकडाउन का आदेश न मानकर जनभावना के अनुरूप निर्णय लिया है और इसके खिलाफ SC में SLP भी फ़ाइल कर दी है । न्यायपालिका को चुनी हुई सरकार के अधिकारों के सम्मान करना होगा, अगर नहीं 

तो फिर एक वैध और बहुमत वाली सरकार ही सर्वशक्तिमान मुद्रा में आकर हर फैसले को पलट कानून बना देगी... क्योंकि लोकतंत्र में जनता का दिया सुदर्शन चक्र उसी के पास ही तो होता है...


#जय_हिंद 🇮🇳



17 April 2021

● इम्युनिटी पावर ●


कोरोना के दूसरी लहर ने देश के पूरे हेल्थ सिस्टम को लगभग घुटनों के बल बैठा डाला है । सरकार इस बार लाचार नजर आ रही है । पब्लिक का क्या है जब तक हो न जाये बिना मास्क टहलेंगे और बकलोली करते रहेंगे । 
सरकार की अपनी सोच है, उसे हेल्थ सिस्टम को बचाये रखने की जितनी चिंता है उससे कहीं ज्यादा चुनाव की है । अपनी दिक्कत नहीं होनी चाहिए बाकी वो जनता के लिए जितना हो रहा बेचारे कर ही रहे, मगर चुनाव होगा, रोड शो होगा ही ।
भले ही एसएससी या रेलवे का रिजल्ट देने में 3 साल लग जाये लेकिन चुनाव का रिजल्ट 3 दिन में आना चाहिए ।

इस बार कोरोना की रफ्तार काफी तेज है । मतलब एक हफ्ते में इसने देश के तमाम राज्यों को अफरातफरी की स्थिति में खड़ा करके रख दिया । 
देश का हेल्थ सिस्टम रेंगते दिख रहा । पेड़ों को काटकर आलीशान इमारतें बनाने वाले बुद्धिजीवी ऑक्सीजन के लिए भटक रहे हैं । खासकर भयावह स्थिति महानगरों और बड़े शहरों में अत्यधिक है ।

गाँव क्षेत्र की आबोहवा का कोई मुकाबला नहीं । वहां बसे लोगों में इसका प्रभाव लगभग नगण्य है । 
उनकी इम्युनिटी, उनके खेत-खलिहान हैं । उनके बगीचे में लगे पेड़ हैं जिसके फल खा खा कर वे बड़े हुए । खेतों के ताजे साग-सब्जी उनका स्वास्थ्य बीमा की तरह ख्याल रखती । गाय का ताजा दूध उनकी लिए एंटीबाडी तैयार रखता है । 
बचपन से पेड़ों पर चढ़ने की कला उनके लिए जिम से कई गुना बढ़िया स्वास्थ्य देता है । नदियों में तैरना ही उनके लिए मोरिसस बिच का मज़ा देता । भैंस-गाय को खेतों में चराना ही उनके लिए मर्सिडीज को चलाने जैसा फीलिंग देता । 
पहले तो ढिबरी और लालटेन ही हमलोगों के लिए पब या डीजे लाइट से कम थोड़े न था ।

मूलभूत सुविधाओं से हमेशा जूझता गाँव आज उन महानगरों को मुंह चिढ़ा रहा । आधुनिक बनना तो ठीक है मगर अत्याधुनिक बनने के चक्कर में जड़ से ही कट चुके । अब बिना जड़ के तो सर्वाइव करना मुश्किल ही होगा न । 
मज़े से हमने प्रकृति को नष्ट कर कंक्रीट के जंगल उगा दिए..
जंगलों को हमने इकॉनमी का पार्ट बना दिया । लिमिटलेस दोहन किया । अब उसी के ऑक्सीजन सूंघने को हमें लाखों खर्चने पड़ रहे तब भी नहीं मिल रहा ।

विकासवाद ठीक है मगर इकॉनमी बचानी है तो तना काटना पहला ऑप्शन होना चाहिए न कि जड़ । 
अगर इस बार लॉकडाउन लगा तो समझ लीजिए हमने जड़ काटने को चुना है । जड़ के रूप में हमारी श्रम शक्ति और निरीह आबादी जिसे 10 10 घण्टे काम करने, दिनभर रिक्शा-ठेला खींचने के बाद बमुश्किल दो वक्त की रोटी मिलती है उसे हम काट देंगे । 
देश के 10% अमीरों के पास देश का कुल 77% धन संचित है । तो सोचिए कि अगर लॉकडाउन लगा तो ये ड्रेन ऑफ वेल्थ ही होगा जो जड़ से तना रूपी अमीरों की तरफ़ सारी एनर्जी चली जायेगी ।
अगर जड़ सुख तो पेड़ सूखते देर नही लगती । ये दुनिया के मुगालते हैं कि अमीरों से ही अर्थव्यवस्था चलती । मगर ये श्रमिक और गरीब आबादी ही मिट्टी से nutritions, जल, लवण तने की ओर सप्लाई करती है । 
भारत की सरकार अपने लोकतांत्रिक स्वरूप को बरकरार रखते हुए सही स्टैंड पर कायम रहे, उसे जड़ों का इस बार ज्यादा ख्याल रखना है । वो तबतक मिट्टी के अंदर तमाम वायरस etc से सेफ है जबतक लॉकडाउन नही लगता...

#जय_हिन्द 🇮🇳

07 April 2021

एक योगी का शासन

 

UP में राजनीतिक शासन व्यवस्था का यौवन रूप देखने को मिल रहा ।

शासन अपनी व्यवस्था को बस ढंग से ढर्रे पर उतार दे, फिर देखिए कैसे कानून का राज कायम होता है । मुख्तार अंसारी जैसे दुर्दान्त अपराधी जिसे घिसट कर योगी सरकार UP ला रही ।

जो भी हमें देखने को मिल रहा ये कोई साधारण बात नहीं है की एक समय में UP के अंदर मुख्तार की पैरलल सरकार चला करती थी । सुनने में आता है कि आज जैसे मुख्यमंत्री का काफिला सड़क पर चला करता है कभी पूर्वांचल में भाई के साथ सैकड़ों दुर्दान्त गुंडे काफिला बना चला करते थे ।

कभी योगी आदित्यनाथ को मारने का प्रयास करने वाले आज घसीट कर पंजाब से लाये जा रहे । आज जो ऐसे अपराधी को बचाने सुप्रीम कोर्ट जा रहा वो कल को कहते मिलेगा की भाई EVM हैक हो गयी । अबे हैक काहे नहीं होगी ? ऐसे खूंखार आदमी को बचाने का प्रयत्न भी करना उसके पाप में हिस्सेदार होना ही है जो न जाने कितनों का घर-परिवार और उसके सपने को उखाड़ डाला । रंगदारी वसूली, अपहरण, हत्या, बलात्कर जैसे जघन्य कांडों का सरगना है ।

मगर इधर देखिए कि देश दुनिया की मीडिया कमरे लेकर ड्रिल कर रही है कि मुख्तार कैसे मारा जा सकता ।

जनता बेहद कुटिल मुस्कान लिए महाराज जी की तरफ आशा लगाए बैठी है ।

ये कमाया है योगी ने... कानून व्यवस्था क्या चीज होती है ये दिखाया है इन्होंने देश को ।

मतलब वही अधिकारी जो सपा बसपा के समय निकम्मे समझे जाते थे, उनका पूरा ट्रांसफॉर्मेशन कर डाला है योगी सरकार ने । आंकडें बताते हैं कि योगी राज में लगभग 6000 से अधिक मुठभेड़ हुए जिसमें करीब 150 से अधिक खूंखार अपराधियों का एनकाउंटर पुलिस ने किया है ।

सोचिए कि किस will पॉवर से ये सरकार काम कर रही । यहां एक रियल एनकाउंटर में सरकार तक गिर जाती है वहीं UP में लाइन से टपाटप अपराधियों को मुठभेड़ में मार गिराया जा रहा ।

ये शक्ति जनता की है, योगी में कर्मशक्ति है वो कर रहे..

राजा पर जब जनता को भरोसा हो तो कोई फैसला कभी गलत नहीं लग सकता ।

विकास दुबे कांड में योगी सरकार ने सरेआम ताल ठोक के एनकाउंटर कर दिया । कोर्ट तक को कहना पड़ा कि ऐसा अपराधी समाज के लिए खतरा था..

आज जनता को न्यायिक व्यवस्था से ज्यादा योगी पर क्यों भरोसा होने लगा है । जब न्यायतंत्र अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहा तो लोकतंत्र का सामने आना देश की व्यवस्था के लिए अच्छा माना जा सकता और हमेशा ये लोकतंत्र ही सर्वोच्च रहा है।

मगर किसी ने पहली बार अपनी जिम्मेदारी निभाने सामने से निकल आया है ।

राजनेता ऐसा ही होना चाहिए जो दोषी को राजदंड दे..

राजदंड का विधान हमारे पुरातन दंडशास्त्रों में रहे हैं ये कोई नई चीज नहीं है ।

मुख्तार अंसारी को राजदंड मिलना निश्चित है ।

मोसाद दुनिया भर में ढूंढ कर अपने दुश्मनों को बड़ी कुटिलता से बदला लेता है । जहां दुश्मन रुकते उस होटल का बैरा बना धीरे धीरे केमिकल प्रोडक्ट मिलाकर आराम से मारते । किसी को पता भी नहीं चलता और मोसाद का बदला पूरा हो जाता ।

मुख्तार को भुगतना होगा... गाड़ी पलटे न पलटे मगर उसे कीमत चुकानी ही पड़ेगी ।

योगी आदित्यनाथ ने अगर राजदंड का पालन किया तो, यकीन मानिए की UP से अपराध का नामोनिशान मिट जाएगा । ये एक क्रांति की तरह होगा, कानून व्यवस्था में क्रांति मच जाएगी ।

अधिकारियों की ट्रेनिंग में योगी मॉडल को पढ़ाया जाएगा । की कैसे अपराधी डर से पैर में प्लास्टर चढ़वा ले मगर उसे फिर भी उसे घसीट घसीट कर एक उदाहरण सामने लाना है कि देखिए ऐसी ही कल्याणकारी राज्य की कल्पना हमारे संविधान ने की थी ।

इस तरह का डर का माहौल जनता को बहुत सुकून दे रहा ।

ये डर बना रहना चाहिए.. कानून का राज कायम रहना चाहिए चाहे इसके लिए किसी हद तक जाना पड़े तो जनता आपको डिफेंड करने को हमेशा तैयार मिलेगी ।

मतलब श्रीरामचंद्र ने ऐसे थोड़ी कहा था कि एक सन्यासी से बढ़िया राजा और कौन हो सकता है ???

योगी ने चरितार्थ कर दिया... ❤️❤️❤️

#जय_हिंद 🇮🇳



होली स्पेशल

 

ये हमारा नववर्ष है, हम यहां रंग खेलते...

और बड़े के पैरों में गुलाल रख नए साल की पावरी करते..

होली हमारी संस्कृति की बुनियाद है । हम प्रकृति की रंगों में रचे बसे होने का साक्षात प्रमाण देते ।

बचपन में वापस डूब जाने की खुशी ही तो है होली !

रंगों से अपनों को सराबोर कर देने की ललक ही तो है होली !

नववर्ष का पहला दिन और उसमें होली का त्योहार.. बचपन की यादें झकझोर देती । बिना कोई टेंशन भर मतलब रंग डालना और पिचकारी लेकर हफ्तों पहले से की जाने वाली शानदार युद्धाभ्यास.. कितनी मनमोहक थी वो होली...

आज भी बिना किसी की बकवास सुने अपनी पीढ़ियों को इस संस्कृति से सिंचित कीजिये । उन्हें पिचकारी दिलाइये, रंग दिलाइये और एकदम देशी अंदाज में होली खेलने दीजिये ।

उसे पालतू कुत्ते की तरह छत से देखने वाला गधा तो कम से कम मत बनाइये ।

इस संस्कृति को जीवंत रखने वाले वही मासूम तो हैं... जो हजारों सालों तक इसे इसी तरह बनाएं रखेंगे..

रास्ते में बच्चे पिचकारी मारे तो ठहर कर रंग डाल लेने दें उन्हें, उनकी मनमोहक खुशी का भरपूर आनंद लें । और गर्व कीजिये अपनी परंपरा पर की आप ऐसे शानदार त्योहार का अभिन्न हिस्सा बने ।

जितना हो सके बच्चों को पानी का भरपूर इस्तेमाल करने दें..

जल संरक्षण का ज्ञान पेलने वाले ठरकी टाइप लोगों को तुरंत गलिया दीजिये और कभी पाइप लगाकर कार धोते मिल जाएं तो तुरन्त शीशे फोड़ दिए जाएं । सारा ज्ञान अंदर घुस जाएगा ।

ये लोग न केवल हमारी परंपरा के दीमक है बल्कि अगर समाज इनके रास्ते चल पड़े तो ये हमारा आस्तित्व समाप्त कर देगा ।

ऐसे लोगों का बहिष्कार हो, किसी समाज-गांव-म्युनिसिपल तक किसी कुर्सी तक में कहीं भी घुसने तक न दिया जाए ।

कुछ लोग होली को फूहड़ता का नाम देकर जबरन घसीटते..

मतलब ऐसे लोगों का परिवार जब कमीना हो तो उसका एक्सपीरियंस भी तो वैसा ही होगा । बाकी होली जैसे पावन त्योहार की तुलना अपने यहाँ के कमीनेपन से सभी की की तो खैर नहीं ।

ये हमें हमारे समाज को एक दूसरे से जोड़ता है, जातीयता के बंधन से मुक्त करता है । ऐसे थोड़ी अपने नववर्ष पर बुजुर्गों के पैरों पर अबीर रख अपने माथे लगा लेते.. ऐसे थोड़ी यूँ ही उनके आशीर्वाद से हम खिल उठते...

सभी मित्रों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं... ❤️❤️



शरणार्थी संकट

 भारत अपने आंतरिक मोर्चे पर पड़ोसी देशों से होने वाले अवैध घुसपैठियों के संकट से जूझ रहा है | खासकर म्यांमार और बांग्लादेश की सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था की कमी के चलते यह संकट और गहरा गया है | म्यांमार में सैन्य शासन और राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति में वहां के नागरिकों में भय व्याप्त होने लगा है, जबकि बांग्लादेश के अवैध घुसपैठिए कई दशकों से भारत के सीमावर्ती राज्यों में बसे चले जा रहे हैं और कई जिलों में तो इनकी आबादी सघन हो चली है ।

जबकि म्यांमार का संकट वहां के रोहिंग्या के उपद्रव से शुरू होकर भारत में अवैध शरणार्थी बन मौज लूटने तक की है ।

भारत विश्व के कुल भूमि का मात्र 2.4% पर अधिकार रखता है और जो पहले से ही दुनिया की कुल आबादी का 16.7% के बोझ से कराह रहा है उस स्थिति में शरणार्थी संकट से घिर जाना किसी देश के लिए एक बड़ी राजनीतिक और सैन्य चुनौती से कम नहीं है ।

क्योंकि भारत में एक लोकतांत्रिक शासन प्रणाली होने के कारण सरकार की आमदनी का स्रोत नियत होती है । और जरूरत पड़ने पर टैक्स लगाने में सरकारों के पसीने छूट जाते । उस स्थिति में दूसरे देशों के अवैध नागरिकों का दबाव हमें आर्थिक चुनौती की तरफ धकेल देता है । साथ ही राजनीतिक कारणों से उन्हें प्रतिरक्षा मिलने लगती और धीरे-धीरे यह हमारी कानून व्यवस्था के लिए संकट पैदा कर डालती है ।

भारत प्रारंभ से ही संयुक्त राष्ट्र के किसी शरणार्थी संधि या कन्वेंशन में दिलचस्पी नहीं रखता । देश की सरकार अपने नागरिकों के चुकाए गए टैक्सों से उनके अधिकारों का हनन नहीं कर सकता तथा उसे खैरात में बेमतलब किसी पर खर्च नही कर सकता ।

सरकार अपने नागरिकों के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाती है, ऐसे में उन सुविधाओं का अवैध शरणार्थियों तक विस्तार एक तरह से 'ड्रेन ऑफ वेल्थ' की तरह है और यह हमारी आर्थिकी में एक प्रकार से सुराख का काम करती है ।

भारत की पश्चिमी सीमा पर विस्थापित हुए लोग अपने देश में अल्पसंख्यक धार्मिक-राजनीतिक आधार पर सताए गए हैं । अतः वहां भारत ने मानवीय मूल्यों को समझते हुए उन्हें वैध शरणार्थी बनने की योजना पर अमल किया है ।

जबकि पूर्वी सीमा की स्थिति एकदम उलट है वहां के ज्यादातर अवैध शरणार्थी वहां उस देश के बहुसंख्यक समुदाय के हैं वे अपने आतंकवादी कृत्यों और भारत में आराम से गुजर बसर करने की चाहत से घुसपैठ कर रहे ।

यह स्थिति अच्छे-अच्छे देशों को बर्बाद करने के लिए काफी है आज रोहंगियों की बड़ी आबादी कश्मीर तक पहुंच चुकी है । पश्चिम बंगाल से दिल्ली तक सड़कों-पटरियों के किनारे झुग्गी झोपड़ी डालकर बस चुके हैं । असम और पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में स्थिति कितनी भयावह होगी इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है ।

भारत में इनकी आबादी की वृद्धि दर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 2 सालों में इनकी आबादी 4 गुना तक बढ़ गई है ।

धीरे-धीरे इनकी संलिप्तता धार्मिक उन्माद से लेकर देश विरोधी कृत्य तक बढ़ने लगी है जो भारत के लिए घरेलू मोर्चे पर एक नया संकट के रूप में पनप रहा है ।

भारत सरकार को अपने नागरिकों की जीवन प्रत्याशा बचाने हेतु तत्काल इस समस्या पर कदम उठाने की जरूरत है ।

पूर्वी सीमा पर सुगम आवाजाही पर फौरन रोक लगाते हुए बॉर्डर को सील करना होगा ।

बेहिसाब बढ़ती आबादी पर सख्त नियंत्रण लगाई जाए और UIDAI के युग में यह बेहद आसान है ।

इसमें टेक्नोलॉजी की मदद ली जाए और सेटेलाइट के माध्यम से बॉर्डर की निगरानी हेतु तंत्र बनाया जाए । पहले लीकेज को रोका जाए फिर टंकी के अंदर को गंदगी को बाहर किया जाए...

भारत के नागरिकों की कोई सूची देश के पास ना रहना एक बड़ी चूक है और तमाम राजनीतिक विरोध को दरकिनार कर तुरंत व्यापक व्यवस्था बनाए जाने की आवश्यकता है ।

भारत पहले से गरीब देश माना जाता रहा है और अब जब आर्थिक मोर्चे पर हम आगे बढ़ने लगे हैं तो अवैध शरणार्थियों की बड़ी आबादी संकट बढ़ कर उभर रही है ।

अगर भारत आने वाले कुछ सालों में इन अवैध घुसपैठियों को रोकने में कामयाब नहीं हुआ तो हमें अगले दो-तीन दशक तक महाशक्ति बनने के सपने को छोड़ देना होगा ।

हमारी मूल आबादी निरीह बनकर यूं ही पिसती रहेगी और दूसरे लोग किसी के पीढ़ियों द्वारा संचित अर्थव्यवस्था पर खुलेआम ऐश करता रहेगा...

जय हिन्द 


महाशिवरात्रि स्पेशल

 

शिव एक शाश्वत भक्ति का मार्ग हैं !

महादेव की आराधना स्वयंस्फूर्त रक्त में प्रवाहित होने लगती..

हमारे ऐसे भगवान की आराधना जिसके लिए मनुष्य सारी सुविधाओं के परे जाकर केदारनाथ में ध्यानमग्न हो जाना चाहता !

हिमालय पर जाकर बस कैलाश का हो जाना चाहता..

शिव की भक्ति में शांति हैं.. मस्तिष्क की उथल पुथल को शांत करने का एकमात्र रास्ता महादेव की चरणों से ही है !

हमारी आस्था शिव में समाहित शांति से हैं, उनकी अलौकिकता से है !

इस दुनिया में कोई अपना हो या न हो मगर महाकाल हमेशा साथ मिलते ! कुछ मिले न मिले मगर महादेव पर भरोसे से सबकुछ मिल जाने सा सुखद एहसास ही काफी है !

भोलेनाथ सबको शरण देते.. ये उनकी महानता है कि एक चोर भी चोरी से पहले महादेव पर भरोसा करता.. उन्हें कुछ हिस्सा भी समर्पित करता..

हम कितने भी आधुनिक हो जाएं मगर शिव अनन्त ही रहेंगे.. केदारनाथ में प्रकृति ने अपना परिचय दिया, शिव की लीला दुनिया ने देखी.. क्या हैसियत थी मानव की या अब भी है क्या !

कैलाश पर कोई क्यों नही जा पाता ! विज्ञान की कहानी जहां अंत होती हमारी शिव गाथा का शून्य बिंदु है वो !

महाकाल की भस्म आरती देख लेना कभी.. रूह कांप जाएगी शिव के होने के एहसास मात्र से ! झाल ढोलक के मध्य भस्म से ज्योतिर्लिंग की आरती.. वाह !!!

सोमनाथ आज भी उसी जगह खड़े रखा है भक्तों ने ! देवघर में लोग 100 KM पैदल चलकर अभिषेक करने जाते.. रामेश्वरम में स्वयं श्रीराम जी ने शिवलिंग की स्थापना की..

अनादि काल से रुद्र की पूजा का साक्ष्य हमें मिलता है.. जितनी भी ज्ञात पुरातन सभ्यता हैं उनमें शिव किसी न किसी रूप में विधमान हैं.. पशुपति के रूप में सिंधु सभ्यता के आराध्य देव तो हमारी महादेव ही हैं..

वैराग्य देखना है तो कुम्भ के दौरान भस्म लपेटे साधु को एकटक देखना ! भावुक इंसान हो तो अगर तो तुरंत निकल जाना वहां से, वरना दिमाग अशांत हो जाएगा..

ये महामानव होते जो शिव को समझने के लिए सैकड़ों वर्षों तक हिमालय की कंदराओं में रहते.. सोचो शिव को पाना कितना कठिन हो सकता !

ये अपने मष्तिष्क के थैलेमस को नियंत्रित करते ताकि इन्हें बाहरी तापमान, चोट, दर्द महसूस ही न हो ! फिर अगला चरण सबसे महत्वपूर्ण ह्यपोथैलमस को नियंत्रित करना होता.. भूख, प्यास क्रोध, प्यार ये सब से दूर वैराग्य पा लेना ही मोक्ष है !

इनकी कोई गतिविधि की जानकारी आम नागरिक छोड़िए, सरकार तक को नहीं होती.. ये हमारे धर्म के असली मिलिटेंट हैं..

DJ बजाकर, गांजा फूंककर शिव की भक्ति नहीं होती ! समर्पित होना पड़ता महादेव के लिए.. उनके आदर्शों पर चलना होता है, उनकी भक्ति के लिए स्वयं को तपाना पड़ता है..

लेकिन शिव तो ठहरे भोले.. आपकी मस्तिष्क शिव की चरणों की तरफ झुकी और भोले बाबा पिघल जाते..

नहीं तो देवों के देव महादेव होने के बाद भी कौन ऐसे भस्म, छाल लपेट कैलाश पर वैरागी की तरह ध्यानमग्न रहते.. कौन अपनी बाराती में औघर को ले चलता.. कौन तांडव कर दुनिया को विध्वंस करने की शक्ति रखता..

और कौन हमरे भोले बाबा कह देने मात्र से अपने भक्त की परेशानी दूर कर देते..

#हर_हर_महादेव 🚩🚩🚩



सहनशीलता

 

राष्ट्र के गद्दारों को बेहद सौम्य तरीके से निपटाने की कला में मोदी-शाह के आगे चाणक्य भी शर्मा जाए..

हम जब सोशल मीडिया पर उबल रहे होते तो उनकी सहनशीलता चरस बो रही होती है.. फिर धीरे धीरे सारे कीटाणु खुद सेनिटाइजर में जाकर डुबकी लगा आते..

हमने अर्णब के मुद्दे पर, पालघर पर काफी उछल कुद मचाई, लोगों ने एक्शन न लेने के कारण सरकार को शब्दों से छलनी कर दिया !

फिर इधर आन्दोलनजीवी पनपे.. भयंकर उपद्रव मची दिल्ली में, लाल किला पर चढ़ाई देख राष्ट्रवादियों के आंखों में खून उतर गया..

मगर सरकार को कोई फर्क नहीं ! ट्विटर पर ट्रोल हुए, नाकामी ट्रेंड हुई.. मगर जंगल में शांति बरकरार रही !

हम राष्ट्रवादी किट-पतंगों के शोर मचाने से जंगल के सन्नाटे को उतना ही फर्क पड़ता जितना आंदोलन करने से मोदी को ! मतलब घण्टा फर्क नही पड़ता..

जंगल का राजा सोया रहा.. हम चिल्लाते रहे, जंगल लूट रहा मगर शेर सोया ही रहा.. शेर की दहाड़ सुनने के लिए बहुत इंतजार किया मगर उसने एक छींक तक नही ली !

शेर को निकम्मा मानकर धिक्कारा और फिर सभी अपने काम में लग गए..

बीच बीच में शेर आंखें खोलकर बस देखता रहा..

जंगल का शोर अब थमने लगा.. राष्ट्रवादियों को रोज नई नई सूचनाएं अब मिलने लगी, कई जगह पर लुटेरे गड्ढे में फंसे पड़े हैं.. कोई पेड़ की लटकती जड़ों में फंसा है, किसी को सबसे ऊंची डाल से लटका के छोड़ रखा गया है..

मगर शेर अब तक सभाएं करने में ही व्यस्त है.. क्योंकि जंगल के कुछ हिस्से में चुनाव चल रहा ! शेर की पूरी टीम को किसी मामले से कोई मतलब नहीं है !

जंगल का राजा अब भी निकम्मा है ! वो तो भला हो पेड़ों का, गड्ढों का जो हमलावरों से खुद को बचाया, अपने जंगल को बचाया..

महिला दिवस

 

प्रकृति की सबसे खूबसूरत कृति नारी को माना जाता रहा है | अनादि काल से हमारी परम्पराओं की पोषक, हमारी सभ्यता की जननी एवं भारतवर्ष की संस्कृति की रक्षक नारी शक्ति ही रही है |

दुनिया की सबसे पुरानी सिंधु सभ्यता के साक्ष्य मातृसत्तात्मक समाज की है |

वैदिक काल में लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रीई एवं अपाला जैसी विदुषी नारी का उल्लेख मिलता है, जिन्होने बड़े बड़े प्रकांड विद्वानों को ज्ञान से पराजित किया | नारी सशक्तिकरण का इतना शानदार उदाहरण दुनिया की किसी सभ्यता में नहीं मिलती | यह उदाहरण तब की है जब 1500 ई पू के लगभग का वह दौर जहां इन विदुषियों का डंका बज रहा था, उस वक्त पश्चिम और मध्य एशिया में मानव जाति चलना ही सीख रही थी |

फिर मौर्य काल के दौरान प्रशासन में स्त्रियॉं की स्थिति भी काफी अच्छी थी, उन्हें गण, सभा इत्यादि में बराबरी का दर्जा प्राप्त था और स्त्रियाँ काफी बढ़ चढ़ कर हिस्सा भी लिया करती थी |

धीरे-धीरे मध्य एशिया की बर्बर काबिलियाई लोगों ने रक्तपात मचाया और लोग महिलाओं को उनकी सुरक्षा के लिए चहरदीवारी के अंदर रखने को मजबूर हो गए | इतिहास में हमें महिलाओं के पिछड़ेपन की जो कहानी रची गयी है वो शायद ही सच हो, क्योंकि हमारे यहाँ माता मानकर पूजे जाने वाली कन्याओं की ऐसी दोयम स्थिति सोचे जाने तक की अनुमति हमारे वेद, पुराण भी नहीं देते |

नारियों के विरुद्ध शोषण और अत्याचार को रोकने को रोकने के लिए हमारे तमाम महापुरुषों ने सामाजिक कुरीतियों को दूर किया और अब हम technology और globlisation के दौर में पुनः उस स्थिति में पहुँच चुके हैं जहां से नारियों को फिर से बराबरी का अवसर मिल रहा |

आज हमारी महिला शक्ति लड़ाकू विमान उड़ा रही, सेना के सशत्र बलों में महिला टुकड़ी बन रही, कोई मणिपुरी किसान की बेटी और तीन बच्चों की माँ मुक्केबाज़ी की विश्व चैम्पियन बनी बैठी है और दुनिया जिसे मैरीकॉम के नाम से जानती |

समाज के हमेशा से दो चेहरे रहे हैं, समाज खासकर जब पित्रसतात्मक हो जाता है तो उसकी मानसिकता काफी जघन्य हो जाती है | ऐसे लोग न केवल नारियों के लिए संकट बनकर उभरते हैं बल्कि ऐसे लोग देश, समाज और संस्कृति की नींव को ही काट डालना चाहते | फिर उसी समाज का एक चेहरा तब दिखता जब शक्ति की पुजा की जाती या बेटियों की बिदाई करते चेहरे को देखा जाता |

देश के कई क्षेत्रों में अशिक्षा की वजह से आज भी लड़कियों की पैरों में बेड़ियाँ जकड़ने का प्रयास जारी है | घरेलू हिंसा इसी समाज की सच्चाई है... लैंगिक भेदभाव, छेड़छाड़ जैसी राक्षसी प्रवृति इसी समाज की घिनौनी सच्चाई है...

नारी शक्ति को पश्चिम के अंधानुकरण से बचना होगा | जब वे हमारी संस्कृति को अब तक सीख रहे हमारी आर्ट ऑफ लिविंग को सीख रहे तो हमें उनसे सीखने की कोई जरूरत नहीं | नहीं तो पश्चिम के पुरुषों की तरह यहाँ भी तलाक, धोखे जैसे शब्दों का प्रचलन बढ़ता जाएगा |

पुरुषों की बागडोर महिलाओं के हाथों में ही होती, उसे नियंत्रण में रखना, ज़िम्मेवार बनाना माँ के रूप में नारी की ही जबावदेही होती |

बेटियों को स्वच्छंद आकाश में उड़ने दो ! समाज बगुले की तरह ताकता रहेगा…

नारी खुद को कम न आंके ! इनकी हकीकत मर्दों से कई गुना बेहतर और प्रभावी है !