26 January 2016

गरीब देश के अमीर रईस

Image result for poors of india imageअखबारों में खबरें आई की भारत की 1% आबादी के पास देश की कुल 53% सम्पति है| मतलब साफ़ है की बाकी 99% भारत की जनता 47 फीसदी सम्पति के सहारे जीवनयापन कर रही है| उसमें भी 2.36 लाख लोग ऐसे हैं जो करोड़पति हैं| भारत के अन्दर भी दो देश हैं, एक देश अरबपतियों का है जिसके रहने का बंदोबस्त 500 करोड़ लागत वाले बंगले तक में है| जबकि दूसरे देश की तस्वीर में बेरोजगारी है तो भुखमरी भी है और उसमें कुपोषण है, गरीबी है, बीमारी है वहीँ बंगला क्या सिर पर प्लास्टिक नसीब हो जाए तो चमत्कार ही होगा|

          देश में कभी गरीबी की परिभाषा 28 रुपये तय की जाती है तो कभी 32 रुपये रोजाना कमाने की| इससे भी कम कमाने वालों की तादाद 38 करोड़ है| सोचिये की देश की सरकारें अलग-अलग टैक्स लादकर इन गरीबों का खून किस हद तक चूसेगी? देश के कॉर्पोरेट घरानों के ऊपर 28 लाख करोड़ रुपये का बकाया टैक्स यूँ ही माफ़ कर दिया जाता है, उन घरानों को जनता से मुनाफा वसूलने की खुली छुट भी दी जाती है जो मजबूर है| गरीबों की परिभाषा तय करने का किसी को क्या अधिकार है? जो लक्जरी गाड़ियों में चलता है, आलीशान बंगले में रहता है| जिनके यहाँ कुत्ते भी रोज मिठाइयाँ खाता हो, एसी-हीटर में रहता हो वो गरीबों के लिए नीतियाँ बनाते हैं| यही देश के असली रईस हैं...
बताने की जरूरत नहीं है वे कौन-कौन हैं...
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... आते रहिएगा...


25 January 2016

Why fearing Secular from ISIS?

Now, I have come once again with my English blog after long time. The large No. of secular leaders are anxious about ISIS reached India. what’s happening with this leaders and parties, who frequent demonstrate to save false propaganda against right of minorities i.e. Muslim? Entire circle of so called leaders often seen to protest with every issue of country, which gloom the image of government. But the issue of perceptional threat of Islamic State vibrate all the people specially, leaders. Because Islamic state’s terrorists assume that all anti-muslim is their enemy and they want to flag off again the throne of ‘Khalifaa’ around all over the world.
Image result for image of isis                        where did go the preach of moral and immoral of our Netas? Why are they not delivering their speech of human right? the plight of Indian society is made by that type of so called strategist of the nation who ever spree for their own interest. Islamic state apprehensiate with its power of ‘Jihad’ and also enhance their kingdom from irak & seria to iran, Saudi Arab, Afganistan. Main issue of ISIS threat for India. Islamic state has desired to take under shadow of islam at many occasion. However, our leaders don’t correct its nature to play vote bank card of muslims and appeasement of muslim law right. ISIS has gazing to find appropriate time to make first attack in India, which also proved by recently 17 accused held to spread terror in nation.
                        Narendra Modi’s government is not working properly to uproot terrorism from India specially J&K. Yet, The velly have witnessed of many anti-national activities by unfaithful kashmiries during approximate 2year of tenure. The implementation of Kashmiri pandit is on the file till now. Hence, It is time to fight solely against terror, nab them and also punish them who gives shelter. So Altogether, The conclusion extract from that the government has no time from convincing opposition and opposition has also no time to demonstrate at inferior issues. So, People will pray to god otherwise they have no way…


Writer:- Ashwani kumar, who ever want to become an independent remarker…     

20 January 2016

हाँ भैया, बिहार में गोलियों की बौछार है...

रंगदारी, लूट, मर्डर जैसे शब्दों की दहशत बिहारवासियों के मन-मस्तिष्क पर फिर से छाने लगी है| क्या वाकई बिहार जंगलराज की तरफ लौट रहा है? या लूट-हत्या जैसी घटनाएं पहले भी होती थी लेकिन इस बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना विरोधियों की साजिश हो सकती है की लालू सत्ता में बने हैं, इसलिए बिहार की दशा-दिशा बदली नज़र आ रही है! तमाम सवाल उठ रहे हैं नीतीश के कुशल नेतृत्व पर| सच ये है की राजधानी पटना की सड़कों पर रात 9 से 10 बजते-बजते रास्ते सुनसान पड़ने लगे हैं, कुत्ते की भौंकने की गूंजें सन्नाटे को चीरती हुई शहर के आलीशान खिडकियों से टकराकर प्रतिध्वनि पैदा करने लगी है| तमाम मोहल्ले वासी जरा सी आहट पर चौंक उठते हैं| चोरों के आतंक की ख़बरें नियमित कार्यक्रम की तरह अखबार में जगह बनाए हुए है| हर एक चौक-चौराहे पर डंडे लिए सिपाही खड़े होते हैं, जैसे किसी गाय-भैंस को रोकना हो| सीसीटीवी कैमरे लगे हैं यहाँ तक की इन पहरेदारों की रात में जांच करने खुद एसएसपी या डीआईजी अक्सर निकलते रहते हैं| कुल मिलाकर सुशासन का नारा कमजोर पड़ने लगा है और यदि आगे भी यही स्थिति रही तो यक़ीनन ये नारा अपने वीरगति को प्राप्त हो जाएगा|

दरभंगा में सरेआम दो इंजीनियर को गोलियों से भून देना, वैशाली में दारोगा की गोली मारकर हत्या करना हो या पटना में सरेआम दूकान में घुसकर स्वर्ण व्यवसायी को गोली मार देना, सारी घटनायों में अधिकतर वजह रंगदारी ही है| दो बैंकों में लगातार दो दिन लूट मचा पाना कतई संभव नहीं हो पाता, जबतक क़ानून का राज होता- पुलिस का खौफ होता| पुलिस के वरीय अधिकारियों के तबादले मात्र से मुख्यमंत्री अपने जिम्मेदारियों से इतिश्री नहीं कर सकते| उनकी छवि राज्य में सुशासन लाने की है जिसके लिए जनता ने उन्हें वोट भी दिया और सत्ता भी दिलाई| पुलिस-प्रशासन में राजनीतिक हक्षतेप का इतिहास काफी पुराना रहा है, पर मुख्यमंत्री के खुली छुट देने के बावजूद भी बड़े-बड़े गुंडों को पकड़ना तो दूर उनपर मुक़दमे दर्ज करने में पुलिस के पसीने छूटने लगते हैं| अगर ऐसा ही था तो क्यों  एक मामले में जदयू की मौजूदा विधायक के पति को पुलिस ने गिरफ्तार करके थाने में उसके साथ फोटो शूट करा रहे थे?

‘लालू इज किंग’ के उद्घोष के साथ लालू की राजद अध्यक्ष पद पर दिखावे के लिए ताजपोशी की गई| ‘राजद’ गरीबों की पार्टी है, जिसकी मीटिंग शहर के फाइव स्टार होटलों में होती है| बेशक, लालू किंग हैं अगर नहीं हैं तो किंग मेकर जरूर हैं\ किंग ही मानिए क्योंकि दोनों राजकुमारों की ताजपोशी भी हो चुकी है| चाहे उन राजकुमारों को भले ही तलवार चलाना न आता हो, घुड़सवारी न आती हो या राज-काज चलाना न आता हो, लेकिन राजा तो वही बनेगे क्यूंकि राजा की बेटे जो हैं| सैनिक है न तलवार चलाने के लिए! उनका हर आदेश राज्य की जनता को मानने होगा चाहे वे इसे चाहें या न चाहें| यही सच है बिहार की जीवंत राजपरिवार के पिछड़े राजनीति की| लालू कितनी भी बार पिछड़ों को अधिकार दिलाने का श्रेय खुद को देकर ताल ठोकते रहें लेकिन सिर्फ अधिकार ही नहीं दिया बल्कि लाठी-डंडे, गोली, बन्दुक चला डालने की पूरी आजादी भी दी| 15 सालों में बिहार लहूलुहान हो गया, चलने लायक भी नहीं था| अहंकार रोम-रोम से टपकता था की ‘जबतक रहेगा समोसे में आलू, तबतक रहेगा बिहार में लालू’|

Image result for bihar blood crime imageहालात जिस तरीके से बदल रहे हैं उसका श्रेय किसे जाता है ये तो जनता तय करेगी, लेकिन अगले 5 साल के बाद ही| तबतक उसे सबकुछ सहना होगा, देखना होगा| बेशक क्यूंकि जनता ने खुद पर राज करने वालों को खुद से ही चुना है| एक समय था जब माओ ने कहा था की सत्ता बंदूक की नाली से निकलती है| पर वर्मान दौर में बंदूक की नली से पैसे निकालकर पूंजीवाद को भी बढ़ाया जा रहा है वही बंदूक की नली से समाजवाद को दबाया भी जा रही है| उससे भी ज्यादा असहनीय पीड़ा नेताओं के बेलगाम जुबान देते हैं| और उससे भी ज्यादा दर्द पत्रकारों के राज-भक्ति से होती है| 
इंतजार हम सभी को है की बिहार की धरती देश की अघोषित राजनीतिक आपातकाल को कब तक झेलती है, जिसमें सत्ता का नशा भी है तो सत्ता से दूर रहने का गम भी और उसे पाने की ललक भी चाहे कितना भी खून बहे...

लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...


12 January 2016

सोशल मीडिया की ताकत से काँपता शासन

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मीडिया यानी सूचनातंत्र को कहा जाता है| देश और दुनिया के महत्वपूर्ण ख़बरों को निष्पक्षता, बेबाकी और विश्वसनीयता के साथ जनता को रूबरू कराना| लेकिन पिछले एक दशक से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की छवि राजा-रानी की कहानियां, ग्लैमर और टीआरपी की चकाचौंध में धूमिल होती चली जा रही है| बिना रोक-टोक जनता को सारी सच्चाई से अवगत कराने के जिम्मेवारी लिया मीडियातंत्र ने (राजनीति नहीं) राजनेताओं से प्रेरित संपादकों और एंकरों के सहारे अपनी डोर राजनीतिक दलों के हाथों में सौंप दी है| ऐसे में वो दल अपने ख़ास चैनल या अखबार को अपने तरीके से नचाकर जनता के सामने अपनी मनचाही छवि बना लेता है| ऐसे लोग खुद को राजा हरिश्चंद्र का अवतार और विरोधियों को शैतान बताते नहीं थकते| लोग ख़बरों के लिए पूरी तरह से समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों पर आधारित हो चुके थे| जनता को किसी ख़ास दल के लिए अच्छा सोचनें पर मजबूर किया जा रहा था और स्वाभाविक तौर पर विपक्षी दल का डर दिखाकर अखंड भारत को टूटने का खतरा भी हमें दिखाया जाता था| लोग बोर हो चुके थे| कोई उम्मीद नहीं थी जिसके सहारे लोग बिना लाठी खाए, बिना मार खाए शासन की नींव हिला डाले| सरकार को ये सोंचने को मजबूर किया जाए की आखिर उनकी जनता उस मुद्दे पर सोचती क्या थी? शायद कोई नहीं जानता था की आगे क्या होने वाला है?
देश में इंटरनेट चलानेवालों की तादाद 2009 के बाद काफी तेज़ी से बढ़ी| देश का युवा नौजवान कौतहुलवश फेसबुक, ट्विटर से जुड़ता चला गया और शायद जब मैं भी सोशल मीडिया से जुड़ा था तो दोस्तों के देखा-देखी ही| वर्ष 2013 आते-आते फेसबुक पर लोग बेबाकी से अपने विचार रखने लगे लगे थे| सरकार के निकम्मेपन की मुखर आलोचना सरकार को परेशान करने लगी थी| पहले लोग पाकिस्तान की खुनी हिमाकत पर किसी चौक-चौराहे के बीच प्रदर्शन करते और न्यूज़ वालों से फोटो खिंचवाकर वापस घर लौट आते थे| अगर कुछ जज्बाती युवा शासन को अपनी चीखों से उनकी शांति-वार्ता में भंग डालने की कोशिश करता तो उनके वर्दी वाले तथाकथित रक्षक पहले तो लाठियों से कितनों का सर फोड़ देते और हाँ न मानने पर गोलियां भी चला देते!
समूचा देश कांग्रेस के लगातार दुसरे कार्यकाल में मची लुट-खसोट से खदबदाया हुआ था| माहौल गर्म हो रहा था और सोशल मीडिया देश में अपनी फैलती लोकप्रियता से कामयाबी के झंडे गाड़ रहा था| फिर हम सब जानते हैं की किस तरह से सोशल मीडिया में नरेन्द्र मोदी एक बेजोड़, साहसी और पराक्रमी नायक की तरह उभरे और देश की सत्ता तक पहुँच गए| लोग कहते हैं की मोदी की पीएम बनने का रास्ता यूपी होकर जाता है लेकिन वास्तविकता यही है की देश में उनकी 282 सीटों का रास्ता सोशल मीडिया ने ही तैयार किया था, गुजरात का गुणगान किया, भरोसा दिलाया और सबसे महत्वपूर्ण एक सच्चे हिन्दू को राजा बना डालने की रुपरेखा भी तैयार की थी|
आज भले ही भाजपा अपने बूते सत्ता पाने की ताल ठोकती हो, राम मंदिर से किनारा करती हो, कश्मीर पर मौन बन जाती हो लेकिन सारा देश जानता है की सत्ता तक बहने वाली नदी में अपने चेहते को नाव में बिठाकर देश का मुखर युवा, धारा बनकर दिल्ली के सिहांसन तक बिना थके पूरे चुनाव में बहता रहा| पर अफ़सोस, की उन युवाओं के भविष्य की चिंता किसी को नहीं है जो बेरोजगार है, घर का सामान लाकर दस-बीस बचाकर सौ रुपये का इंटरनेट रिचार्ज कराता था उनपर इन्होने टैक्स लादकर उसकी कीमत दुगुनी तक बढ़ा दी|

सोशल मीडिया की ताकत से भलीभांति परिचित सरकार अब अपनी आलोचना से घबराने लगी है! क्या उसे अब युवाओं का पाक से उसी के जैसे वर्ताव करना, कश्मीर को पाक से आजाद कराने व दिल-तोड़ देने वाली कश्मीरी पंडितों की रक्षा की बात करना सरकार से बर्दाश्त नहीं? हमारी शांतिप्रिय सरकार और प्रधानमंत्री से अनुरोध है की वे अपने तोता-रटंत प्रवक्ताओं और फेसबुक पेज चलने वाले एडमिनों को सलाह दें की ये कायरों की धरती नहीं है| भले ही हम दाल के दाम बढ़ने पर गुस्सा दिखाएँ, पेट्रोल की कीमत कम न होने की नाराजगी दिखाएँ लेकिन हम इतने भी गांधीवादी नहीं की कोई दोनों गालों पर चांटा जड़कर चला जाए तब भी हम चुपचाप सिर झुकाकर ‘बुधं शरणम् गच्छामि’ शांति का पाठ करें| याद रहे की हम उस सनातन धर्म के वंशज है जो कभी किसी चींटी के गलती से दबकर मर जाने पर अफ़सोस जाहिर करता है लेकिन धर्म के लिए या देश के लिए किसी की जान ले लेना उससे भी श्रेष्ठ समझता है| इसलिए किसी को टमाटर या प्याज की आड़ में युद्ध न लड़ सकने की देशभक्ति पर सवाल उठाने का किसी को क्या अधिकार है?

पठानकोट में अभी क्या हुआ? मालदा में अभी क्या हुआ, पूर्णिया में क्या हुआ? कोई नहीं जानता था! सब के मुंह पर पट्टी बाँधी जा चुकी थी| लेकिन वक्त रहते सोशल मीडिया ने उस पट्टी को खोला| लोगों को पल-पल की वास्तविक हकीकत से रूबरू कराया और युवा गुस्से से उबलने लगा| अंततः मीडिया और सरकार मजबूर हो गयी| कई कठिन मौकों पर सोशल मीडिया अंधे राजनीतिक भक्तों के लिए छड़ी का सहारा बनी है| राजदीप, बरखा जैसे सेक्युलरों को सवाल के सहारे कंपकंपी छुड़ा देना हमारी फितरत रहेगी जबतक सहिष्णुता के दलालों को बिना जांचे-परखे जहर उगलने से पहले सोशल मीडिया का खौफ न हो जाए| हाँ सोशल मीडिया में अफवाह फ़ैलाने वाले भी बहुत ऐसे है जो इस राष्ट्र को हमेशा बर्बाद करने की महत्वाकांक्षा पाले मौके की तलाश में बैठे हैं| लेकिन ‘अखंड भारत’ का प्रायोजन साधू-संतों का नहीं है, बल्कि युवा नौजवानों का है| जो सेक्युलर हैं, सामने वाले से बराबरी का बर्ताव करने का क्षमता रखता है और इनमें भी कुछ कायर और डरपोक भी हैं| गुण के साथ अवगुण तो प्रकृति का नियम ही है|
खैर सोशल मीडिया भारत की वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में अहम रोल निभा रहा है उसमें न तो पूर्वाग्रह से ग्रसित असहिष्णुओं के लिए कोई जगह है और न ही इस महान भारत पर राज करते रहे की मंशा पाले नेताओं के लिए, जिनके लिए देश से ज्यादा राजनीतिक नफा-नुकसान ज्यादा मायने रखता है| हमें किसी से देशभक्ति का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए| क्योंकि हम सेक्युलर हैं, आधुनिक हैं और शांतिप्रिय भी, लेकिन वक्त आने पर हम चरखे से भी शिकार कर सकते हैं.....      (और... हम सवाल उठाते आये हैं और उठाते रहेंगे, तभी तो गलतियाँ कम होंगी... और हाँ अच्छे कामों की प्रशंसा भी कर दिया करेंगे...है ना!)

लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना   (बहुत गुस्सा आता है जब किसी की देशभक्ति पर
प्याज और दाल के सहारे ऊँगली उठाई जाती है| महत्वकांक्षाओं और उम्मीदों के सहारे जीनेवाले हम युवा गिलहरी की भाँति ही सही लेकिन सुधार और आत्मसम्मान के सेतु को विकसित करने में बेशक अपनी भूमिका निभाते रहेंगे और मुखरता-बेबाकी से अपने ब्लॉगकहने का मन करता है (ashwani4u.blogspot.com) पर लिखते रहेंगे....)अपना प्यार हमें इसी तरह देते रहिएगा...


Trembling from the strength of social media governance

The fourth pillar of democracy, the media called the Suchnatantra | The country and the world the fairness of the important reports, clearance and reliability to interact with the public | But the past decade, the image of the king and queen of the print and electronic media, stories, glamor and dazzle of the TRP is gone foggy | Freely took responsibility for informing the public of the truth of Meediatantra (not politics) driven by politicians, political parties, editors and anchors along the door is handed | The parties that particular channel or newspaper image you want to make your way to the public takes Nachakr | Raja Harishchandra incarnation of the people themselves and not tire out opponents devil | Those reports solely to newspapers and news channels were based on | Socnen good for the public at a special party was being forced and obviously showing a united opposition fear the threat of demolition to India was also shown us | People were bored | People did not expect the support staff without eating, not by without shaking the foundations of the regime casts | The government may be forced to Soncne end of what their people think that was the issue? Perhaps no one knew what is going to happen next?
Clanewalon number of Internet in the country since 2009, grew fairly rapidly | The country's young youngster Kauthulvs Facebook, Twitter went connect and maybe if I was connected to social media friends have seen seen | 2013 approached people on Facebook were beginning to discharge their views | Outspoken criticism of government inefficiency, the government began to harass | Pakistan first on a square-intersection between the murderer dared to perform and news to those who returned home from getting photographed | Their screams something emotional young regime tries to dissolve in their peace-talks his uniform so-called defenders before bursting into the head with sticks and yes some of the pills on Refusing to give away!
Congress resembled plundered the entire country for the second consecutive term of plunder was Kdbdaya | The atmosphere was warm and his expanding popularity of social media in the country was TRIUMPHSAND | And we all know what kind of a unique social media Narendra Modi, brave and mighty hero emerged as the country's power reached | UP to become PM of his way to say but the reality is that the 282 seats in the country was created by way of social media, lauded Gujarat, assured and the most important to a Hindu king The framework also had to put up |
Even today, BJP to power on our own rhythm Tokti, the temple does strand, becomes silent on Kashmir but the whole country knows the power of the flowing river in the country's outspoken young face.She sit in the boat, stream In the election to the throne of Delhi as tired spilled | Lament, of the future of young people who do not have anyone who is unemployed, household goods brought ten-twenty hundred bucks saved them, He was providing Internet Recharge tax increased to twice the value loaded |
Acutely aware of the power of social media, the government has been alarmed by criticism! He behaves like that of Pakistan's youth, to liberate Kashmir from Pakistan and the Kashmiri Pandits heartbreaking thing to defend the government stand? Our peace-loving government and the Prime Minister's request and the Facebook page of their parrot-Rtnt spokesmen advise Adminon running is not the land of the cowards | Even if we show anger at rising prices of pulses, lower the price of gasoline is not the Gandhian's displeasure show but we did not so that was hitting a slap on both cheeks when we bowed silently 'Budn Srnm Gchchhami Peace recite | We have to remember that once an ant of Sanatana Dharma descendant died accidentally buried expressed regret but for religion or country to take someone's life, even the best understands | So anyone who can not fight in the guise of tomatoes or onions to question the patriotism of anyone's rights?
Pathankot what just happened? Malda what just happened, happened in Purnia? no one knew! The face had been all folded | But the social media bar that opened in time | People from the actual reality of the moment began to simmer with anger introduced and youth | Finally, the media and the government was forced | Many difficult times social media is blind political followers stick to devise | Rajdeep, Barkha Sekyulron such wean shiver through the question will remain as long as our spirit of tolerance without brokers spit poison before check-tested social media should not fear | Yes there is a lot of social media spread the rumor that this nation has always nurtured the ambition to ruin chances are waiting for a | But the 'Akhand Bharat' sponsorship of sages and saints, but also the young youth | The secular, from the front has the potential to equal treatment and also provide some cowardly and timid | With properties demerit is the law of nature |
Well social media play an important role in India's current political and social landscape is no place for it Ashishnuon neither biased nor the intent of this great country are ruled nurtures leaders, who over the country Political pros and cons means more | We do not want a certificate of patriotism from | Because we are secular, modern and peaceful too, but when the time comes we can also victims of wheel ..... (more ... We have been and will continue to raise the question, why are fewer mistakes ... And yes, good deeds will be appreciated ... right!)
Author: - Ashwani Kumar, Patna (very angry when someone is pointing a finger along patriotism onions and lentils | aspirations and expectations of the young squirrels like us who live along the right but the levee improvements and to develop self-esteem The course will continue to play its role and assertiveness-discharge his blog saying that the mind '(ashwani4u.blogspot.com) will write on ....)
Keep your love give us the same kind ...


भारत युद्ध नहीं लड़ता

बेशक, इतिहास उठाकर देख लें की सिवाय इंदिरा गाँधी के युद्ध लड़ने की महत्वाकांक्षा किसी प्रधानमंत्री में नहीं रही| उफ़, वो ताबड़तोड़ फैसले, पाक को बाँट देने से लेकर इमरजेंसी लगाने तक और इतना होने के वाबजूद भी सत्ता में वापस लौट जाने का दमखम! आप सोंच रहे होंगे की मैं कांग्रेस का गुणगान कब से करने लगा| वो कांग्रेस जिसने देश को बंटवाया, जिसके नाती-पोतों ने इस देश को कभी तोप के बहाने तो कभी टेलीफ़ोन के बहाने देश को भेडिये की तरह नोंच डाला और तो और इसी के वंशजों ने ही देश को आपातकाल दिखाकर लोकतंत्र की हत्या कर डाली थी|

कैसा लोकतंत्र, काहे का लोकतंत्र, काहे का संविधान, काहे का नेता, जब देश का आत्मसम्मान ही न बचे! सोचें की कभी हम विदेश जाएँ और बातचीत के क्रम में विदेशी हमारे निकम्मेपन का मखौल उडायें तो हमपर क्या गुजरेगी? हमारी सारी महानता युद्ध के मोर्चे पर हमारी उदारता के नीचे दब जाती है| और ऐसा प्रवासी भारतियों के साथ घटित भी हो रहा है| कभी चाणक्य ने कहा था की सांप कितना भी विषहीन हो, लेकिन उसे फुंफकारना नहीं छोड़ना चाहिय| फिर भी भारत एक शेर होकर भी नख-दन्त विहीन भेडिये की शक्ल में छुपे भेंड से डर रहा है और भेंड को भेड़िया समझाने की भूल कर रहा है|

भारत बुद्ध की धरती है ‘बुद्हम शरणम् गच्छामि’, हम सर झुकाकर चुपचाप शांति का राग अलापने में माहिर हैं| हम अहिंसा के पैगम्बर गाँधी के पदचिन्हों पर चलने वाले हैं, जहाँ विदेशी आक्रमणकारियों को भी महान बताया जाता है उसकी वीरता के गाथाएं स्कूलों में बच्चों से रटवाए जाते हैं| भारत युद्ध लडेगा भी नहीं क्यूंकि जो हमपर शासन कर रहे हैं वो कभी शहीदे-आजम के प्रवर्तक हुआ करते थे लेकिन आजकल उन्होंने लोकतंत्र की महिमामंडन के रास्ते अपना रखे हैं| देश के राजनीतिक दल कभी किसी भी परिस्थिति में युद्ध से किनारा करते आये हैं, इसलिए की वे जानते है युद्ध होने पर आम जनता से ज्यादा असुरक्षित वही लोग होंगे! विशिष्ट और गणमान्य लोग युद्ध के वातावरण में दुश्मन के निशाने पर रहते हैं ये सबको पता है|

इसलिए मैं दाद देता हूँ इंदिरा गाँधी को, लाल बहादुर शास्त्री को, पोखरण के नायक वाजपेयी को| इंदिरा ने युद्ध के मोर्चे पर कभी तो देश का सिर शर्म से तो झुकने नहीं दिया| तब भारत पूर्ण परमाणु शक्ति भी नहीं था और सेना ने अंग्रेजों वाली एनफील्ड राइफलों, तोपों के सहारे ही पाक को सांप सुंघा दी थी| उनकी बहादुरी और आक्रामकता के आगे दुश्मनों ने घुटने टेक दिए थे| इंदिरा ने तो पाकिस्तान को ऐसी सबक सिखाई की पाक अबतक उस गम से उबर नहीं पाया है| पाकिस्तान के दो हिस्से कर दिए उन्होंने| देश को एक नई इंदिरा की तलाश है जो इस बिना ओर-छोड़ के संविधान में बदलाव दिला दे, मीडिया के अहंकार को चूर कर दे और एक विकसित, सुव्यवस्थित राष्ट्र का निर्माण करे| एक ऐसी सरकार का गठन हो जो हर फैसले के लिए अमीर-रईसों के विचारों (राज्यसभा) पर निर्भर न रहे, जनसँख्या नियंत्रण का क़ानून बने, यूनिफार्म सिविल कोड लागू हो और देश के सारे नागरिकों को एक-दुसरे के साथ शांति से बिना धर्म विस्तार की मंशा लिए सभी धर्मों की इज्जत करे|
और हाँ, देश में ये इच्छाशक्ति हो की आँखे दिखाने वाले की आँखें निकालकर उसके हाथ में दे दे| लेकिन ऐसा हो नहीं सकता... इन भैसों के आगे बेकार की बिन बजा रहा हूँ.....


लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... आते रहिएगा...

05 January 2016

भारत अपना दब्बूपन छोड़े

याद करें की मई 2014 मोदी सरकार के शपथग्रहण से पहले पाकिस्तानियों के मन में मोदी का खौफ सिर चढ़कर बोलता था| मोदी की आक्रामक भाषण शैली से सोशल मीडिया में मोदी की तूती बोलती थी| लेकिन अभी सबकुछ पलटा हुआ है| जाहिर है, हम हिन्दुओं को राज करना नहीं आता| बड़ी मुश्किल से दिल्ली का सिंहासन अपना बना है, फिर भी शायद उस सिंहासन को ये श्राप है की जो भी वहां बैठेगा वह आत्ममुग्धता, अहंकार में जियेगा और वह अपने चापलूसों के कहे अनुसार चलेगा| वही हो भी रहा है| हिंदुस्तान के अमनपरस्तों ने मोदी की पाक यात्रा पर जो तालियाँ बजाई थी वह बम और गोलियों की आवाज बनकर भारत में फूट रहे हैं| और मोदी जी तो योग के शीर्षआसन में व्यस्त हैं| शायद, भाजपा के 17 करोड़ वोटरों में से एक को भी ये उम्मीद नहीं रही होगी की जिस देश में आतंकी हमले जारी हो उस वक्त उनका प्रधानमंत्री ओलांद की तरह आतंक को मिटाने की कसमें खाने की जगह, लोगों को योग करने की सलाह दे रहे होंगे| वाकई ये तो उदासीनता की हद है, जहाँ एक तरफ गृहमंत्री ने ऑपरेशन खत्म होने की घोषणा कर दी वही दो दिन बाद भी पठानकोट में गोलियों की गूंज सुनाई दे रही है| खैर, जिनका प्रधानमंत्री ही अपने बहादुर जवानों की वीरता के बखान करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता हो, उसके मंत्री से कोई उम्मीद कैसे की जा सकती है?
नरेन्द्र मोदी ने भारत के 7 बहादुर सपूतों को खोने के बाद भी पाकिस्तान की निंदा तक करना जरुरी नहीं समझा, क्योंकि उन्होंने दोस्ती का जो माहौल बनाया है उसमें खटास कैसे आ सकती है? न ही मोदी के शांतिपसंद दोस्त शरीफ ने उन आतंकवादियों की निंदा के बजाए उसके आकाओं को पकड़ने की जहमत भी नहीं उठाई| हर मोर्चे पर भारत दब्बू बनकर आखिर कब तक बैठा रहेगा? हम 125 करोड़ भारतियों का भी कोई स्वाभिमान है या नहीं? देश के कुछ अमनपरस्त कश्मीर को पाकिस्तान के हवाले कर देने की कायराना सलाह देते हैं, लेकिन आतंकवाद या पाकिस्तान के डर से अगर ऐसा करने की भी हम सोचते हैं तो लाल किले पर चाँद-तारे लगे हरे झंडे को फहरते देखने का भी इंतजाम कर लेना चाहिए|
कहाँ हैं हमारे पुराने मोदी? कहाँ हैं उनकी तत्परता? क्यों बंद हैं उनकी जुबान? सीना चिर देने वाली वीर सपूतों के परिजनों का क्रंदन को अनसुना करने वाले प्रधानमंत्री पद पर बैठे शख्स हमारे मोदी नहीं हो सकते! अगर ये सच है तो कायरों की सूची में उनका भी नाम हो सकता है...
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... आते रहिएगा...



30 December 2015

भरोसे के पाकिस्तानी नाव पर सवार मोदी...

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विपक्ष के शोर-शराबे के काल्पनिक समुद्री लहर में पाकिस्तानी नौके पर सवार होकर बेहताशा शांति और भाईचारे के तलाश में भागे चले जा रहे हैं| नौके में ताशकंद, शिमला, कारगिल, मुंबई ब्लास्ट जैसे काफी छेद हैं फिर भी जबतक की उनका नौका डूब ना जाए वो मानने को तैयार नहीं की उनका नौका डूब सकता है| इतना ओवर कॉन्फिडेंस उन्हें बेशक चुनाव का समुद्री लहर डूबा ले जायेगी अगर इस बीच कोई अनहोनी हो गयी तो| सारा दोष मोदी के ऊपर जाएगा| अभी तो डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत या क्लीन गंगा जैसे उनके अभियानों की चर्चा दूर-दराज के गांवों में उनकी विफलता के उदाहरण में गिनाये जाते हैं| फिर भी तो गोल्ड स्कीम लाने का सुझाव उन्हें किसने दिया, उसे ढूंढ़कर ‘ग्रेट थिंकर ऑफ़ द वर्ल्ड’ का अवार्ड दिया जाना चाहिए| वे अपने सिपह्सलाहरों की भंवर में फंसकर मान बैठे हैं की वे जो भी फैसले लेंगे, जनता उसे सिर-आँखों पर लेगी| वे इंदिरा की तरह मानने लगे हैं की ‘मोदी इज इंडिया’!
              मोदी अपने कार्यकाल के दूसरे साल में 2.5 लाख किलोमीटर की विदेश यात्रा कर चुके हैं| इस बार तो हद ही कर दी, गए थे रूस आते समय उतर गए पाकिस्तान में| पता है, उनके इस फैसले से पूरा देश सन्न रह गया| पाकिस्तान, जहाँ की मिट्टी को चूमने वाले हर भारतीय प्रधानमंत्री को बदले में खंजर ही मिला है| यह सच्चाई है उस पाकिस्तान की जिसने हमेशा भारत की बर्बादी के सपने देखे हैं, उसे बर्बाद करने की कई सफल साजिश भी की है| चंद पाकिस्तानियों की वजह से हमारी घाटी सुलग रही है| कश्मीरी पंडितों को फिर से बसाने का दावा करने वाले मोदी असहाय-बेबसी से पाकिस्तान की तरफ देख रहे हैं| 17 साल पहले अटल ने भी कोशिश की की थी भाईचारा निभाने की, लेकिन क्या हुआ? आज चीन हमारे कश्मीर से सड़क ले गया, वहां हवाई अड्डे बना रहा है, रेल की पटरियां बिछा रहा है, लेकिन हम क्या कर रहे हैं? वही तोता-रटंत जुमले की ‘कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है’ वो भी तब जब पाकिस्तान हमारी कश्मीर की दो-तिहाई हिस्से पर कब्जे कर चुका है| नेहरु की बसाई कश्मीर भंवर में हमारा कोई प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र से आगे क्यों नहीं सोच पाता? देश को अब तो जानने का अधिकार मिलना ही चाहिए की ऐसा कौन सा डर है जो मोदी जैसे स्पष्टवादी व्यक्ति को भी मौन धारण करा देता है? कब तक हम POK को सिर्फ भारत के नक़्शे पर ही दिखाते रहेंगे? क्या मजबूरी है हमारे देश की?
                   क्या हम युद्ध से डरते हैं या हमारी डर की वजह इस्लामिकImage result for modi with nawaz imageImage result for modi with nawaz image देश हैं? या हम अमेरिका के इशारों पर चलने के लिए बेबस हैं? हम सम्पूर्ण प्रभुतत्व संपन्न परमाणु शक्ति हैं, लेकिन किस काम के? 125 करोड़ आबादी वाले देश को 18 करोड़ आबादी वाला पाकिस्तान जैसा मामूली और भ्रष्ट देश परमाणु हमले की धमकियाँ देकर डरा जाता है| हमारे सैनिकों के सिर काट लिए जाते हैं, पाकिस्तान में बैठकर भारत के हृदय मुंबई को दहला देने की सफल साजिश रची जाती है, सीमा पर अंधाधुंध गोलीबारी करके सैकड़ों मासूमों की जान ले ली जाती है| हमारे साथ ही ऐसा क्यों होता है? चाइना के साथ ऐसा क्यों नहीं होता, इजराइल के साथ ऐसा क्यों नहीं होता? क्योंकि हमारे देश के तथाकथित शांतिप्रिय और सहिष्णु लोगों ने हमारे परमाणु अस्त्रों को चूड़ियाँ पहना रखी है| ‘नो फर्स्ट यूज़’! मतलब हम पहला प्रयोग नहीं करेंगे| जब तक की पाकिस्तान अपने परमाणु बम हमपर न गिरा जाए| हंसी आती है मुझे ऐसे मूर्खतापूर्ण समझौतों से, क्योंकि तब न तो बम के बटन दबाने के लिए हमारे प्रधानमंत्री मौजूद रहेंगे और न ही पाकिस्तान पर निंदा प्रस्ताव पास करने के लिए हमारे नुमाइंदे! और न रहेगी इन सब का विश्लेषण करने के लिए हमारी जनता| क्योंकि पाकिस्तान कभी नहीं कहता की हम पहला प्रयोग नहीं करेंगे!
              हमारे प्रधानमंत्री बखूबी जानते हैं की इस तरह की यात्राओं से उन्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला! नवाज शरीफ तो प्रधानमंत्री के पुतले हैं| पाकिस्तान में सेना की ताकतों के आगे सारा पॉलिटिक्स नतमस्तक है| ऐसा हमने तख्तापलट के रूप में कई बार देखा है| बेशक, हम जानते हैं की भारत और पाक के बीच मधुर संबंध स्थापित हो जाए तो दोनों को हथियारों पर की जाने वाली बेहताशा खर्च दोनों देशों की गरीबी, अशिक्षा का उन्मूलन करने में सार्थक होगी| ऐसे में न तो दोनों को हथियार के लिए अमेरिका-रूस की चमचागिरी करनी पड़ेगी और न ही उनके उलुलजुलुल के प्रतिबंधों को मानने के बाध्यता| फिर भी ऐसा करने कौन देगा दोनों देशों को? संयुक्त राष्ट्र जैसी दोगली मानसिकता वाली संस्था के रहते विश्व-शांति दूर-दूर तक फटक भी नहीं सकती| अमेरिका के टुकड़ों पर पल रही पाक की कश्मीर पर सीनाजोरी पर सारा संसार आँखें मुंदा बैठा है| हथियार के पैसे से फल-फुल रहे अमेरिका के पैरों में बेड़ियाँ पहनाने की जुर्रत इजराइल के अलावा है किसी में? इस सदी में तो दुनिया में शान्ति हो ही नहीं सकती क्योंकि, इस शोरशराबे से भरी दुनिया में शांति की वकालत वो करता है जिसने कभी ‘डाईनामाइट’ की अविष्कार की थी? (अल्फ्रेड नोबेल)...

लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... आते रहिएगा...


28 December 2015

मेरी इलाहाबाद यात्रा...(सेकुलरिज्म से मेरा परिचय)

नमस्कार! पिछले कुछ दिनों से मैं प्रतियोगिता परीक्षा के तैयारियों में जुटा था, इस कारण मेरे पाठकों को नए-नए ब्लॉग से महरूम रहना पड़ा| खैर, परीक्षा के सिलसिले में मुझे अपने दोस्त राजीव के साथ इलाहाबाद जाना था| 19 दिसम्बर की सुबह हमदोनों ने पटना जंक्शन से ट्रेन पकड़ी और खड़े-खड़े पूरी यात्रा की| वहां पहले से मौजूद पटना शहर के दो और परीक्षार्थी अपने कुशल व्यक्तित्व से मेरे दोस्त बन गए| बता दूँ की उनमें से एक मुसलमान था, और उसका नाम आलम था| ये मेरे लिए हैरत की बात थी क्यूंकि आजतक मैंने संघ के दर्शन को मानते हुए कभी ऐसे किसी भी शख्स को नहीं देखा था जो मेरे विचारों पर खड़ा उतरता हो| छः-सात सालों का लम्बा समय मैंने विभिन्न समुदायों के छात्रों के साथ कोचिंग और कॉलेजों में गुजारा है| पटना, एक ऐसा शहर जहाँ हर-एक धर्मों का मिलन स्थल है| यहाँ जैन का भी पवित्र मंदिर है तो बोद्ध का पावन स्तूप भी है तो ईसाईयों के बड़े-बड़े चर्च (पादरी की हवेली) भी हैं| दशमेश गुरु गुरु गोविन्द सिंह जी की जन्मस्थली पर तो आम दिनों में सिखों से ज्यादा दुसरे समुदाय के लोग गुरुवाणी शबद का आनंद ले रहे होते हैं| मुसलमानों के इबदातखानों की तो भरमार है| बेशक, यहाँ की बहुसंख्यक आबादी हिन्दू है लेकिन हिन्दुओं का सहिष्णु व्यवहार अगर किसी सेक्युलर बयानवीरों को देखना है तो वो पटना आये, घूमकर इसकी वास्तविकता देखे| पर कोई ऐसा करेगा ही क्यों?

इलाहाबाद पहुँचने के बाद मैं, राजीव, रिक्की और आलम हम चारों ने स्टेशन के पास एक होटल लिया| कुछ देर तक पढने के बाद शाम को कमरे में मैं और रिक्की देश के कुछ ज्वलंत मुद्दों पर शालीनता से डिस्कशन कर रहे थे ताकी कुछ मनोरंजन हो जाए| उस वक्त आलम चुपचाप बैठा था, जब हमदोनों ने असहिष्णुता-संप्रदायिकता का जिक्र किया तो वो एकाएक बरस पड़ा| कहने लगा “अगर देश के साथ कोई मुसलमान गद्दारी करता है तो सबसे पहले उसे वह गोली मारेगा और साथ ही आमिर जैसे लोगों की जमकर आलोचना की| उसने कहा “कभी किसी राजनीतिक दल ने या किसी धर्मगुरुओं ने उससे कभी पूछने की जहमत क्यूँ नहीं उठाई की की वास्तव में वो चाहता क्या है? उसकी तकलीफ क्या है? कौन होते हैं ये लोग जिनकी एक बयान से सारे सेक्युलर हाय-तौबा करने लगे? बहुत ऐसे हैं जो खाते भारत का हैं और गाते पाक का हैं? हमें सुविधाएँ पाक सरकार तो नहीं देती? फिल्म बनाना है तो भारत आना है, गायक बनना है तो भारत आना है, हीरो-हेरोइन बनना है तो भारत आना है, सामान बेचना है तो भारत आना है, बम फोड़ना है तो भारत आना है| तो क्या सिर्फ बम बनाने के लिए देश का बंटवारा किया था?   कभी आकर देखा है हमारे इलाकों की सहिष्णुता को की भेदभाव किसे कहते हैं? बता रहा था की उसके इलाके में मुस्लिम महिलायें बुर्के पहनकर हिन्दुओं के घर शादी-पार्टी में जाया करती है, इसे मीडिया क्यों नहीं दिखता? खुले विचारों वाला आलम अपने इस्लाम से जितनी मोहब्बत करता है, उतना ही वो दुसरे धर्मों की इज्जत भी करता है और अजब-गजब धार्मिक पाबंदियों की मुखर आलोचना भी| इलाहाबाद में ही वे हम सभी के साथ संगम स्नान के लिए तैयार था लेकिन वक्त की कमी के कारण जा नहीं पाए| वापस लौटते समय ट्रेन की खचाखच भीड़ में भी वो हमलोगों के साथ संगम पुल से गुजरते वक्त माँ-गंगा को प्रणाम किया और उसने महाकुम्भ में इलाहाबाद आने की इच्छा दिखाई| उसके तौर-तरीकों से तो हम सभी लोग हैरान थे| इसे कहते हैं सेकुलरिज्म! प्रधानमंत्री जी कहते हैं ना की अलवर के इमरान में बसता हैं मेरा भारत; वैसे ही मैं कह सकता हूँ की पटना के आलम में बसता है मेरा हिंदुस्तान, पटना के आलम का है यह हिंदुस्तान|

फिर भी इनसब से अलग वापस लौटते हुए ट्रेन में लगभग पन्द्रह-बीस हजार परीक्षार्थियों की उबाऊ भीड़ साँस लेने में तकलीफ दे रही थी| ट्रेन को आये कुछ ही देर हुआ था की स्टेशन पर एक दम्पति मेरे ही बोगी में चढ़ा| महिला सम्मान के तकाजे से एक लड़के ने उनके लिए सीट छोड़ दिया| भीड़ इतनी थी की आजतक मैंने खड़े-खड़े भी ऐसी यात्रा नहीं की| किसी को पैर हिलाने के पहले सोचना पड़ता था, बैठना दूर की बात थी| दोनों को वाराणसी में उतरना था, सो ट्रेन चल पड़ी| वे शख्स मेरे ही पास थोड़ी सी जगह बनाकर खड़े थे| दोस्तों के साथ हो रही डिस्कशन में वे दोनों पति-पत्नी शामिल हो गए| मैंने लगभग दो घंटे तक उस शख्स से काफी बातचीत की| उन दोनों का कम्युनिकेशन स्किल बेहद उच्च क्वालिटी का था| मुझे एहसास हो रहा था की ये बिल्कुल प्रोफेशनल हैं| तभी मैंने पूछ दिया की आप करते क्या हैं? पहले तो हंसे, फिर बताया की वे बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (BHU) के सिक्यूरिटी एडवाईजर हैं और वो इसी प्रतियोगिता परीक्षा के सिलसिले में आब्जर्वर बनकर वहां आये थे| ये सुनकर बोगी के सारे लड़के उनका मुंह देखने लगे तभी मैंने सवाल किया की आप इतने सक्षम होने के बावजूद भी जनरल बोगी में खड़े-खड़े यात्रा कर हैं? चाहते तो तत्काल टिकट ले सकते थे? फिर उन्होंने मुझे बताया की जब वो दिल्ली, गाजियाबाद या मेरठ जाते हैं तो ऐसी ही भीड़ का सामना करने को मजबूर हो जाते हैं और उनका शरीर मुश्किलें झेलने को आदि है इसलिए वे जिन्दगी में हर मुश्किल से आसानी से लड़ लेते हैं| और भी काफी बातें हुई जिसे लिखना संभव नहीं, अंततः वाराणसी में हाथ मिलकर वे उतर गए और मैं खड़े-खड़े 12 घंटे का सफ़र तय करके पटना पहुँचा तब तक सुबह हो चुकी थी...

अविश्मरनीय बात रही की पहले आलम के साथ और अब इन दोनों के साथ खासकर एक बात कॉमन थी की दोनों इस्लाम को मानने वाले थे| मेरी ब्लॉगर यात्रा में सेकुलरिज्म के साथ ये मेरा पहला साक्षात्कार था| क्यूंकि आलम में देशभक्ति का जज्बा दिखा क्योंकि उसकी भैया सेना में थे और वे दम्पति बेधड़क सामाजिक-धार्मिक बुराइयों की अज्ञानता को मिटाने के लिए प्रतिबद्ध थे| ख़ास बात रही की वे महिला मुझे अपने बेटे की उम्र से तुलना करके अपने पास थोड़ी जगह में बिठाया और अपनी बेटे-बेटियों की शैक्षणिक स्थिति की चर्चा की| इस तरह इस यात्रा से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला, धार्मिक बेड़ियों में जकड़ी हुई मानवीय आजादी को पाने की ललक देखी, उनका गुस्सा देखा और उनकी धर्मपरायणता भी देखने को मिली| इसलिए, कुल मिलाकर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की हमारा भारत सेक्युलर है, आधुनिक है और लिबरल भी है| बस इंसानियत के गद्दरों से नागरिकता का अवार्ड छिना जाना बाकी है...(फिर भी ऐसा हो नहीं सकता, हम जानते हैं...)


लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... आते रहिएगा...

05 December 2015

वेतन आयोग से गरीबों को क्या फायदा?

सातवां वेतन आयोग सरकारी कर्मचारियों के वेतन-भत्ते को 24 फीसदी तक बढाने की सिफारिश सरकार से कर चुकी है| इस समय भारत सरकार में लगभग 40 लाख कर्मचारी सेवारत हैं, जबकि 58 लाख पेंशनभोगी बेमतलब सरकार का खजाना खाली कर रहे हैं| यानी अगर आयोग की सिफारिशों को जस का तस लागू कर दिया जाए तो देश पर एक लाख करोड़ रूपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा| लगभग एक करोड़ लोगों की वेतन वृद्धि योजना पर लगता नहीं है की मोदी सरकार उन्हें नाराज करने का जोखिम ले पाएगी| क्योंकि किसी भी सरकार के लिए सबसे जरूरी चीज होती है, सत्ता में बने रहना| मोदी सरकार अपनी घटती लोकप्रियता के धारे में वेतन आयोग नहीं मानने जैसा बवंडर शामिल नहीं कर सकती| यह उसकी मजबूरी है, लेकिन क्या ऐसी सिफारिशें भारत की आर्थिकी में पंख लगा देगी या उसके पर कतर के मंदी को न्योता देगी? जाहिर बात है की देश पर एकाएक एक लाख करोड़ रुपये का बोझ मुद्रास्फीति, मंदी और महंगाई बढाने का कारण बन सकती है|

वेतन वृद्धि का पैमाना परफॉरमेंस के आधार पर बने| प्राइवेट सेक्टर की तरह, जितना काम-उतना पैसा| लेकिन यहाँ काम करने वाले भी और न करने वाले भी दोनों की वेतन में वृद्धि कर दी जाती है| सातवाँ वेतन आयोग बिना किसी शर्त या फेरबदल के लागू कर दी गयी तो सरकारी कर्मचारी, प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोगों को मुंह नहीं चिढ़ाएंगे? बेशक, उनकी कुंठा बढेगी, जब किसी को बिना काम किये वेतन मिलेंगे! ऐसे में जनता का पैसा बेवजह कामचोर कर्मचारियों पर खर्च करना मुर्खता ही है|

लेकिन भारत के उन 30 करोड़ गरीबों की चिंता किसे है? उनका क्या होगा, जिनकी 29 रुपये की दैनिक क्रय शक्ति से चुकाए गए उनके टैक्सों से नौकरशाह 2.50 लाख का वेतन पायेंगे? रिटायर होने पर भी कर्मचारियों को भारत में जितनी सुविधाएँ मुहैया कराई जाती है, उतनी दुनिया के किसी देश में नहीं मिलती| क्या अबतक हमारी सरकारों ने गरीबी, महंगाई से लड़ने के लिए बयानों और योजनाओं के अतिरिक्त कुछ किया है? कभी गरीबी उन्मूलन के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता नहीं दिखी| उसे वेतन आयोग के जैसे ही किसान आयोग का भी गठन करना देश के लिए फायदेमंद होता| फिर भी जो है उसमें सुधार की गुंजाइश है| देश है, संसद है, क़ानून है और व्यवस्था भी है| लेकिन गरीबों के लिए नहीं! ये बातें वेतन आयोग के सन्दर्भ में लागू भी होती है|

गरीबों की कोई नहीं सुनता! अगर कोई सुनता तो उसे भी खाद्ध सब्सिडी, वृद्धावस्था पेंशन, छात्रवृति जैसी योजनाओं में वृद्धि की भी सिफारिशें होती| फिर हंगामा मचता और आर्थिक बोझ का हवाला देकर सिफारिश रद्द कर दी जाती!  सरकार हर महीने देश के गरीब बुजुर्गों को 400रु० का पेंशन देती है, जब कर्मचारियों के लिए महंगाई बढ़ रही है तो देश के अन्य लोगों के लिए क्यूँ नहीं? मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी क्यूँ नहीं बढती है? अनाज का न्यूनतम समर्थन मूल्य स्थिर करके किसानों को खेती छोड़ने पर मजबूर क्यूँ कर रही है? अक्सर हमारे देश की सरकार राजकोषीय घाटे का रोना रोती है| कहती है, खर्च बढ़ रहे हैं| लेकिन कभी उसने अपने लापरवाह और जिम्मेदार अफसरों की ठाठ-बाट या उसकी फिजूलखर्ची देखी है? सरकारी आयोजनों में 100रु प्रति प्लेट का खाना वो 400 रु/प्लेट खरीद कर लाते हैं, लाखों रूपये किराए वाले एसी होटलों में घंटे भर की मीटिंग कराते हैं उसका क्या? किसी महापुरुष की जयंती पर दिखावटी सम्मान जताने के लिए पूरे देश के सरकारी दफ्तरों में फिजूल खर्चे करके जनता का करोड़ों रुपये यूँ ही फूंक डालते हैं| इनसब पर कभी सोचा है हमारी सरकारों ने? फिर भी सब कुछ देखते हुए भी आँख बंद कर लेना उनकी राजनीतिक मजबूरी है!

मेरे कहने का कतई ये मतलब नहीं है की कर्मचारियों की वेतन में वृद्धि नहीं हो| हो पर परफॉरमेंस के आधार पर, काम के आधार पर, सामाजिक न्याय और समानता की शपथ को याद करते हुए| समानता का मतलब यह नहीं होता की देश में एक व्यक्ति को 2.50 लाख हर महीने मिले तो एक ओर 30 करोड़ की आबादी भूखे रहने को मजबूर हो, खुले में शौच करने को मजबूर हो|  इसलिए मोदी सरकार ये मान कर न चले की उनका हर फैसला उनके 19 करोड़ वोटर सर-आँखों पर लेंगे क्योंकि कांग्रेस के उत्पात से समूचा देश खदबदाया हुआ था| उसी के क्रोध ने मोदी की राजगद्दी पर पर बैठने का योग बनाया| सरकार हर सिफारिशों को आँख-मूंदकर मानने के बजाए उसे अच्छी तरह ठोक-बजाकर राष्ट्रहित सुनिश्चित करे इसी में देश की भलाई है...

लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता
है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... आते रहिएगा...